जहाँ सुमति तहँ संपति नाना पर निबंध: भारतीय संस्कृति में नैतिकता, बुद्धि और विवेक को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रामचरितमानस में तुलसीदास
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना पर निबंध (Jaha Sumati Taha Sampati Nana Hindi Nibandh)
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना पर निबंध: भारतीय संस्कृति में नैतिकता, बुद्धि और विवेक को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस सत्य को बड़ी सरलता और गहराई से व्यक्त किया है—
इस चौपाई का अर्थ यह है कि जहाँ सद्बुद्धि होती है, वहाँ हर प्रकार की समृद्धि, सुख-शांति और सफलता निवास करती है, जबकि जहाँ दुर्बुद्धि होती है, वहाँ विपत्तियाँ, संकट और विनाश अनिवार्य रूप से आते हैं। यह एक सार्वभौमिक सत्य है, जिसे हम इतिहास, समाज और व्यक्तिगत जीवन में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
सुमति और कुमति का प्रभाव
मनुष्य और पशु के बीच सबसे बड़ा अंतर उसकी बुद्धि और विचार शक्ति है। यह बुद्धि दो प्रकार की होती है—सुमति (सद्बुद्धि) और कुमति (दुर्बुद्धि)। सुमति व्यक्ति को परोपकार, सत्य, ईमानदारी और सहयोग की ओर प्रेरित करती है। इसके विपरीत, कुमति व्यक्ति के भीतर लोभ, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या और छल जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करती है। इतिहास साक्षी है कि जिन्होंने सुमति का अनुसरण किया, वे समृद्धि और उन्नति के शिखर पर पहुँचे, जबकि जिन्होंने कुमति को अपनाया, उनका पतन निश्चित हो गया।
इतिहास और उदाहरणों से सीख
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहाँ सद्बुद्धि ने न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामूहिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया। रावण एक अत्यंत विद्वान और शक्तिशाली राजा था, लेकिन उसकी कुमति ने उसे विनाश के मार्ग पर धकेल दिया। दूसरी ओर, श्रीराम ने सदैव धर्म और सुमति का पालन किया, जिससे उन्होंने आदर्श राज्य की स्थापना की। उनकी नीति के कारण अयोध्या समृद्ध और खुशहाल बनी। इसी प्रकार चाणक्य की बुद्धिमत्ता ने साधारण बालक चंद्रगुप्त को एक महान सम्राट बना दिया। उनकी नीतियों के कारण मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई और भारत की अखंडता बनी रही।
इसके विपरीत, इतिहास में कई उदाहरण ऐसे भी हैं, जहाँ दुर्मति (बुद्धिहीनता या गलत सोच) के कारण विनाश हुआ। रावण, कौरव, दुर्योधन, हिटलर जैसे अनेकों उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि जब मनुष्य अहंकार, लोभ और कपट के मार्ग पर चलता है, तो उसका अंत दुखद होता है। यही कारण है कि एक कहावत प्रचलित है—
"विनाश काले विपरीत बुद्धि।"
जब व्यक्ति का अंत समीप होता है, तब उसकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है। इसके विपरीत, सुमति व्यक्ति को न केवल स्वयं के उत्थान की ओर ले जाती है, बल्कि समाज और राष्ट्र के उत्थान में भी सहायक होती है।
सत्संग का प्रभाव
सुमति प्राप्त करने का सबसे प्रभावी माध्यम अच्छे लोगों की संगति है। जिस प्रकार चंदन का संपर्क पाकर साधारण लकड़ी भी सुगंधित हो जाती है, ठीक उसी प्रकार अच्छे व्यक्तियों की संगति से हमारी बुद्धि भी शुद्ध और निर्मल बनती है। तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में सत्संग की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है—
"संत मिलन सम लाभ न कोई।"
संतों और ज्ञानी व्यक्तियों के संग से सद्बुद्धि प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सही दिशा मिलती है। वहीं, कुसंगति दुर्बुद्धि को जन्म देती है, जिससे व्यक्ति का पतन निश्चित हो जाता है।
निष्कर्ष: "जहाँ सुमति तहँ संपति नाना" केवल एक साधारण कहावत नहीं, बल्कि यह एक गहरा जीवन दर्शन है, जो हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि हमारी सोच और विचारधारा ही हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करती है। सद्बुद्धि (सुमति) को अपनाने से व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं, जबकि दुर्बुद्धि (कुमति) विनाश, पतन और अराजकता का कारण बनती है। अंततः, यह कहना गलत नहीं होगा कि सुमति ही वह दीपक है जो हमारे जीवन के अंधकार को दूर करता है और हमें उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाता है।
COMMENTS