बैसाखी का त्योहार पर निबंध: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अन्नदाता को देवता की संज्ञा दी गई है। जब किसान महीनों की मेहनत के बाद अपनी फसल को पकते हु
बैसाखी का त्योहार पर निबंध (Baisakhi festival Essay in Hindi)
बैसाखी का त्योहार पर निबंध: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अन्नदाता को देवता की संज्ञा दी गई है। जब किसान महीनों की मेहनत के बाद अपनी फसल को पकते हुए देखता है, तो उसकी आत्मा खुशी से झूम उठती है। इसी उल्लास और आभार की अभिव्यक्ति का पर्व है—बैसाखी। यह केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि प्रकृति, श्रम, और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। यह पर्व हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है और खासकर पंजाब और हरियाणा में इसे बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
बैसाखी: किसानों के परिश्रम का उत्सव
भारत का किसान केवल बीज नहीं बोता, वह अपने भविष्य के सपने भी धरती की कोख में डालता है। जब वह रातों को जागकर अपनी फसल की रखवाली करता है, जब वह मौसम की मार झेलता है, तब उसकी आशाएं भी उसी फसल के साथ बड़ी होती हैं। फिर जब अप्रैल का महीना आता है, खेतों में सुनहरी फसल लहलहाने लगती हैं और पसीना सोने में बदलने लगता है।
इस खुशी में जब बैसाखी का दिन आता है, तो किसान उल्लास से झूम उठता है। वह अपने किसानी जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण को मनाने के लिए ढोल-नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा करता है। उसकी मेहनत को सफलता का प्रमाणपत्र मिल जाता है और वह पूरे समाज के साथ इस खुशी को साझा करता है।
बैसाखी मनाने का तरीका
बैसाखी का त्यौहार जितना धार्मिक है, उतना ही सामाजिक भी। इस दिन लोग गुरुद्वारों में जाकर अरदास (प्रार्थना) करते हैं, कड़ाह प्रसाद ग्रहण करते हैं और सामूहिक लंगर का आनंद लेते हैं। गुरुद्वारे में श्रद्धालु अपने परिवार और दोस्तों के साथ जाकर भगवान का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने उन्हें इस वर्ष अच्छी फसल प्रदान की।
ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष मेले लगते हैं, जहां लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर आते हैं। ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य किया जाता है, जो इस पर्व की ऊर्जा और उत्साह को दोगुना कर देता है। पुरुष जहां जोश से भांगड़ा करते हैं, वहीं महिलाएं रंग-बिरंगे परिधानों में गिद्दा प्रस्तुत कर इस त्यौहार की शोभा बढ़ाती हैं।
इसके अलावा, इस दिन पंजाब के किसान अपने नए अनाज को अग्नि को अर्पित कर प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। यह संदेश देता है कि अन्न केवल एक पदार्थ नहीं, बल्कि मेहनत, समर्पण और प्रकृति का आशीर्वाद है।
बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व
बैसाखी केवल फसल कटाई का पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाओं से भी जुड़ा है। सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में इसी दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने पांच सिखों को अमृतपान कराकर ‘पंज प्यारे’ घोषित किया और उन्हें त्याग, वीरता और सच्चाई का प्रतीक बनाया। इस दिन को सिख धर्म के इतिहास में एक पवित्र और ऐतिहासिक दिवस माना जाता है।
बैसाखी का एक और ऐतिहासिक पहलू जलियांवाला बाग हत्याकांड से जुड़ा है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन ही ब्रिटिश जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाईं, जिसमें हजारों निर्दोष लोगों की जान गई। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक निर्णायक मोड़ बनी और इस दिन को बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम की भावना के रूप में भी याद किया जाता है।
भारत के अन्य राज्यों में बैशाखी का त्यौहार
बैसाखी केवल पंजाब और हरियाणा का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। बंगाल में यह "नव वर्ष" के रूप में मनाया जाता है, जिसे 'पोइला बैशाख' कहते हैं। असम में इसे "रोंगाली बिहू" के रूप में मनाया जाता है, जो वसंत का स्वागत करता है। केरल में यह "विशु" कहलाता है, जिसमें समृद्धि और नए अवसरों की कामना की जाती है। उत्तर भारत में इसे "मेष संक्रांति" के रूप में भी मनाया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बैसाखी केवल पंजाब का ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का त्यौहार है। और कहीं न कहीं भारत के सभी राज्यों की संस्कृति आपस में जुडी हुई है। जो भारत की विविधता में एकता को दर्शाता है।
बैशाखी और आधुनिक समाज
समय के साथ हमारे त्यौहारों का स्वरूप भी बदल रहा है। अब गांवों से शहरों तक यह त्यौहार मनाया जाने लगा है। हालांकि, आधुनिकता के प्रभाव में रिश्तों की गर्माहट और सामूहिकता कहीं खो रही है। पहले जहां पूरा गांव मिलकर उत्सव मनाता था, वहीं आज डिजिटल युग में ये त्यौहार अधिकतर व्यक्तिगत समारोह बनकर रह गए हैं। लेकिन, इसके बावजूद बैसाखी का महत्व कम नहीं हुआ है। चाहे खेतों में कटती फसल हो, गुरुद्वारों में गूंजती अरदास, या विदेशों में बसे भारतीयों का उल्लास—बैसाखी की चमक सीमाओं से परे जाकर हमारी जड़ों से हमें जोड़े रखती है।
निष्कर्ष: इस प्रकार बैसाखी केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति का प्रतीक है। यह एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति और किसान के बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है, जहां परिश्रम का हर बीज सुनहरी फसल में बदलकर नई आशाओं को जन्म देता है। इसलिए, जब भी ढोल की थाप पर भांगड़ा-गिद्दा गूंजे, जब भी खेतों में मेहनत रंग लाए, और जब भी कोई अपने परिश्रम के फल का आनंद ले—वहां बैसाखी की आत्मा जीवंत होगी।
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