बिस्मिल्लाह खान पर निबंध: बिस्मिल्लाह खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान कलाकार थे, जिन्होंने अपनी शहनाई की मधुर ध्वनि से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनि
Essay on Bismillah Khan in Hindi - बिस्मिल्लाह खान पर निबंध for Class 5, 6, 7, 8, 9 & 10
बिस्मिल्लाह खान पर निबंध: बिस्मिल्लाह खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान कलाकार थे, जिन्होंने अपनी शहनाई की मधुर ध्वनि से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उनका जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। वे न केवल शहनाई को संगीत की मुख्यधारा में लाए, बल्कि उन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी।
प्रारंभिक जीवन
बिस्मिल्लाह खान का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका असली नाम "क़मरुद्दीन खान" था, लेकिन जब उनके दादा ने उन्हें "बिस्मिल्लाह" कहते हुए देखा, तो उनके माता-पिता ने उनका नाम बिस्मिल्लाह रख दिया। उनका परिवार संगीत के क्षेत्र से जुड़ा हुआ था। उनके पिता पैगंबर बख्श खान बिहार के महाराजा के दरबार में शहनाई वादक थे।
बचपन से ही बिस्मिल्लाह खान का झुकाव संगीत की ओर था। उन्होंने अपने मामा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई वादन की प्रारंभिक शिक्षा ली। अली बख्श वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई वादन करते थे। बिस्मिल्लाह खान ने अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए छोटी उम्र से ही रियाज़ करना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि संगीत को साधना और समर्पण से ही समझा और सीखा जा सकता है।
संगीत के प्रति समर्पण और संघर्ष
बिस्मिल्लाह खान ने बहुत ही साधारण परिस्थितियों में जीवन की शुरुआत की। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन उनके जुनून और मेहनत ने उन्हें आगे बढ़ने से कभी रोका नहीं। उन्होंने वाराणसी के घाटों पर बैठकर गंगा की लहरों के बीच शहनाई वादन का अभ्यास किया। उनका मानना था कि गंगा की धारा से उन्हें संगीत की प्रेरणा और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।
शुरुआती दिनों में उन्हें लोगों के सामने अपनी कला दिखाने के बहुत कम मौके मिलते थे। लेकिन धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा को पहचान मिलने लगी। बिस्मिल्लाह खान ने अपने जीवन के हर संघर्ष को अपनी कला को निखारने का माध्यम बनाया।
संगीत और जीवन का कार्यक्षेत्र
बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई को न केवल एक वाद्य यंत्र के रूप में अपनाया, बल्कि इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण अंग बना दिया। इससे पहले शहनाई मुख्य रूप से विवाह और धार्मिक अवसरों पर बजाई जाती थी। लेकिन बिस्मिल्लाह खान ने इसे एक नई पहचान दिलाई।
1947 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर उनकी शहनाई वादन ने उन्हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया। उन्होंने राष्ट्रगान 'जन गण मन' के साथ अपनी शहनाई की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद, उनका नाम भारतीय संगीत के सबसे महान कलाकारों में शुमार हो गया।
उपलब्धियाँ और सम्मान
बिस्मिल्लाह खान ने अपने जीवनकाल में कई बड़े सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए। उनकी उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
- भारत रत्न (2001): यह भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो उन्हें उनकी कला और भारतीय संगीत के प्रति योगदान के लिए दिया गया।
- पद्म विभूषण (1980): यह सम्मान भारतीय संगीत में उनके उत्कृष्ट योगदान को स्वीकार करते हुए दिया गया।
- पद्म भूषण (1968): संगीत में उनकी अमूल्य सेवाओं के लिए उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया।
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1956): यह पुरस्कार भारतीय संगीत के प्रति उनके योगदान को मान्यता देता है।
बिस्मिल्लाह खान को भारत और विदेशों में कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और शहनाई वादन को वैश्विक पहचान दिलाई।
बिस्मिल्लाह खान का भारतीय संस्कृति से जुड़ाव
बिस्मिल्लाह खान भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रतीक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में वाराणसी और गंगा नदी को हमेशा अपने दिल के करीब रखा। उनका मानना था कि उनकी शहनाई की धुनें वाराणसी के घाटों और गंगा की लहरों से जुड़ी हुई हैं।
वह धर्म और संगीत को एक साथ जोड़ने में विश्वास रखते थे। उनकी शहनाई की मधुर ध्वनि में आध्यात्मिकता, भक्ति और संगीत का संगम सुनाई देता था। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई वादन करके यह साबित किया कि संगीत किसी धर्म या समुदाय की सीमाओं से परे है।
निधन और संगीत की विरासत
21 अगस्त 2006 को बिस्मिल्लाह खान का निधन हो गया। उनके निधन से भारतीय संगीत ने अपना एक अमूल्य रत्न खो दिया। लेकिन उनकी कला और संगीत आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। उन्होंने शहनाई को जो ऊँचाई प्रदान की, वह आज भी हर संगीत प्रेमी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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