महाश्वेता का चरित्र-चित्रण: महाश्वेता गन्धर्वराज हंस की पुत्री और एक गंधर्व राजकुमारी है। स्वभाव से महाश्वेता सरल, उदार हृदयवाली, अतिथि सेवा परायण, तर
महाश्वेता का चरित्र चित्रण (Mahashweta ka Charitra Chitran)
महाश्वेता का चरित्र-चित्रण: महाश्वेता गन्धर्वराज हंस की पुत्री और एक गंधर्व राजकुमारी है। स्वभाव से महाश्वेता सरल, उदार हृदयवाली, अतिथि सेवा परायण, तर्कशीला एवं बुद्धिमती है। उसकी माँ गौरी चन्द्रमा के वंश में उत्पन्न अप्सराओं के कुल में पैदा हुई थी। इससे स्पष्ट है कि कादंबरी की सहेली महाश्वेता का जन्म अप्सराओं के कुल में हुआ था। महाश्वेता अपनी माँ गौरी से भी अधिक गौर वर्ण की और अत्यन्त आकर्षक थी। इसी कारण मुनिकुमार पुण्डरीक इसकी तरफ आकर्षित हुआ और अल्पकालिक विछोह भी सहन करने में अक्षम होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया था।
दृढ़ संकल्पवती: महाश्वेता दृढ़ संकल्पवाली युवती है। मुनिकुमार पुण्डरीक को प्रथम दर्शन में ही आकर्षित होकर उसे प्राप्त करने का निश्चय कर लेती हैं। कपिञ्जल से पुण्डरीक की अस्वस्थता की सूचना पाकर वह रात्रि में उससे मिलने तरलिका के साथ निर्भय होकर सरोवर की तरफ जाती है। वहाँ पुण्डरीक की मृत्यु की दशा में पाकर उसके साथ सती होने का निर्णय लेती है। आकाशवाणी सुनकर कि “तुम प्राणों का परित्याग मत करना, तुम्हारा इसके साथ फिर मिलन होगा", महाश्वेता ने तपस्विनी के रूप में वहीं रहने का संकल्प किया। पिता के राजमहल में वैभवपूर्ण सुखमय जीवन का परित्याग करके निर्जन वन- प्रान्तर में रहकर कठोर तपस्यारत जीवन व्यतीत करना उसके दृढ़ संकल्पी व्यक्तित्व का ही द्योतक है।
पतिव्रता: महाश्वेता मानसिक रूप से पुण्डरीक को अपना पति स्वीकार कर चुकी थी। सामाजिक मान्यता के अभाव में भी पतिपरायण होकर एकनिष्ठ भारतीय आदर्श नारी का वह प्रतिनिधित्व करती है। वह दृढ़ चरित्र की स्वामिनी है। आकाशवाणी की सूचना पर वह पुण्डरीक के पुनर्भागमन तक तपस्विनी का जीवन व्यतीत करने का संकल्प लिए है। वैशम्पायन के प्रेम प्रदर्शन करने पर वह उसे शुक होने का श्राप देती है। यह उसके पातिव्रत्य धर्म पालन की गरिमा का स्पष्ट उदाहरण है।
व्यवहार कुशल एवं कोमल हृदयवाली: महाश्वेता के व्यक्तित्व की मुख्य विशेषता उसकी व्यवहार कुशलता एवं दयालुता है। वह उच्च कुलीन गन्धर्वराज हंस की पुत्री है। राजमहल में उसका बचपन व्यतीत हुआ । कोमल हृदयवाली होने के कारण ही वह तपस्वी कुमार पुण्डरीक को अपना हृदय दे देती है। वह राजकुमार चन्द्रापीड का आतिथ्य सत्कार करती है। कादम्बरी उसकी प्रिय सहेली है। उसके कल्याण की कामना हेतु चन्द्रापीड को साथ लेकर वह उसके पास जाती है। अपने सम्पर्क में आने वाले केयूरक, पत्रलेखा आदि प्रत्येक व्यक्ति से वह बड़ी ही कुशलतापूर्वक व्यवहार करती है। सभी उसका सम्मान करते हैं। उसका व्यवहार चातुर्य उस समय भी प्रकट होता है जब पुण्डरीक अपनी अक्षमाला लौटाने के लिए कहता है तो वह अपनी एकावली उसके हाथ पर रखकर चली जाती है। वह सद्गुणी, निश्छल और सरल हृदया है। उसके चरित्र में कहीं भी अशिष्टता या कपटता का दर्शन नहीं होता है। चन्द्रापीड को वह अपनी आपबीती बिना कुछ छिपाये बता देती हैं। उसे सत्य के उद्घाटन करने में कभी लज्जा या ग्लानि का अनुभव नहीं करती हैं ।
कठोर तपोव्रती: महाश्वेती कठोर तपोव्रती है। मुनिजनों का आदर करने वाली है। पुण्डरीक की दुरवस्था की सूचना देने जब कपिञ्ञल राजमहल में जाकर उससे मिलता है तो महाश्वेता उसका चरण धुलकर अपने आँचल से साफ करती है। पुण्डरीक से मिलने के लिए वह गुरुजनों की आज्ञा लिये बिना ही रात्रि में ही यह सोचकर चल पड़ती है कि कहीं पुण्डरीक के प्राणों पर संकट न आ जाये। पुण्डरीक की मृत्यु पर वह पहले सती होने का निर्णय लेती है किन्तु आकाशवाणी एवं दिव्य पुरुष के कथन पर वह तपस्विनी बन कर वहीं निर्जन वन में गुफा में रहने लगती है। वह पाशुपत व्रत एवं कठोर अनुष्ठानों में अपना जीवन लगा देती हैं। यह क्रम तब तक चलता है जब तक शाप का अन्त नहीं हो जाता है।
स्पष्ट है कि महाश्वेता प्रेम, त्याग, करुणा, सहानुभूति, सरलता, निष्कपटता आदि अनेक मानवीय सद्गुणों से युक्त एक आदर्श भारतीय नारी सिद्ध होती है।
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