बस स्थानक पर एक घंटा हिंदी निबंध: एक दिन मुझे भी एक जरूरी काम के सिलसिले में बस पकड़ने के लिए बस स्थानक पर जाना पड़ा। बस पकड़ने के लिए मैं बस स्थानक प
बस स्थानक पर एक घंटा हिंदी निबंध (Bus Sthanak Par Ek Ghanta Hindi Nibandh)
बस स्थानक पर एक घंटा हिंदी निबंध: एक दिन मुझे भी एक जरूरी काम के सिलसिले में बस पकड़ने के लिए बस स्थानक पर जाना पड़ा। बस पकड़ने के लिए मैं बस स्थानक पर पहुंचा। बस आने में अभी भी देर थी। इस दौरान मैंने बस अड्डे पर कुछ देर बिताई। यह आधा घंटा मेरे लिए काफी दिलचस्प रहा। बस स्थानक एक ऐसा स्थान है जहां हर तरह के लोग मिल जाते हैं। अमीर से लेकर गरीब, पढ़ा-लिखा से लेकर अनपढ़, हर कोई अपनी मंजिल की तलाश में यहां इकट्ठा होता है।
बस स्टैंड पर एक चाय की दुकान थी, जिसके आस-पास हमेशा भीड़ लगी थी। गर्म चाय की चुस्कियां लेते हुए लोग आपस में बातें कर रहे थे। कुछ लोग अपने गंतव्य के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो कुछ यात्रा की थकान को दूर करने की कोशिश कर रहे थे। चाय की दुकान के पास ही एक समाचार पत्र विक्रेता था, जो ताजा खबरों से लोगों को अपडेट कर रहा था।
बच्चों की किलकारी ने भी बस स्टैंड की रौनक बढ़ा दी थी। वे इधर-उधर दौड़-भाग कर खेल रहे थे, मानो उनके लिए यह कोई खेल का मैदान हो। कुछ बच्चे अपने माता-पिता का हाथ थामे शांत बैठे थे, उनकी आंखों में बस की प्रतीक्षा की उत्सुकता झलक रही थी।
बस की देरी से उत्पन्न बेचैनी ने लोगों के चेहरों पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। कुछ लोग घबराहट में इधर-उधर घूमने लगे, तो कुछ ने फोन पर अपने परिजनों को सूचना देनी शुरू कर दी। बच्चों की बेचैनी और अधिक बढ़ गई थी। इस तरह से, एक छोटी सी देरी ने भी लोगों के मनोभावों में उतार-चढ़ाव ला दिया।
अंततः बस आ गई। यात्रियों की भीड़ ने एकाएक ही रूप बदल लिया। सबके चेहरे पर एक ही भाव था - बस में चढ़ने की जल्दी। धक्का-मुक्की के बीच लोग बस में घुसने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान कुछ लोगों के हाथों से सामान गिर गया, तो कुछ लोग गिरकर चोटिल भी हो गए।
बस स्टैंड पर बिताया गया यह एक घंटा मेरे लिए जीवन का एक छोटा सा पाठशाला बन गया। मैंने देखा कि कैसे विभिन्न वर्ग के लोग एक ही स्थान पर आकर एक-दूसरे से जुड़ते हैं। मैंने देखा कि कैसे छोटी सी असुविधा भी लोगों के मनोभावों को बदल सकती है। इस छोटी सी दुनिया ने मुझे जीवन की विविधता को समझने का मौका दिया।
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