यदि मैं न्यायाधीश होता तो हिंदी निबंध: कहते हैं न्याय की देवी अंधी होती हैं। पर क्या न्याय सिर्फ अंधेपन का नाम है? यदि मैं न्यायाधीश होता, तो शायद मेर
यदि मैं न्यायाधीश होता तो हिंदी निबंध - Yadi Main Judge Hota Hindi Nibandh
यदि मैं न्यायाधीश होता तो हिंदी निबंध: कहते हैं न्याय की देवी अंधी होती हैं। उनकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है, ताकि वे धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा या सामाजिक रुतबे से प्रभावित न हों। वे केवल सत्य को देखती हैं, और न्याय का संतुलन बनाए रखती हैं। पर क्या न्याय सिर्फ अंधेपन का नाम है? क्या यह केवल दंड देने और निर्णय सुनाने की प्रक्रिया है? यदि मैं न्यायाधीश होता, तो शायद मेरा दृष्टिकोण थोड़ा भिन्न होता। मैं मानता हूँ कि न्याय एक तराजू है, जिसका संतुलन विवेक से ही संभव है।
यदि मैं न्यायाधीश होता तो न्यायपालिका और समाज के बीच एक सेतु का कार्य करता। मैं जनता को कानून के बारे में, उनके अधिकारों और न्याय पाने के तरीकों से अवगत कराता। आम आदमी के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काटना, कानूनी पेचीदगियों को समझना एक दुःस्वप्न जैसा होता है। इसलिए मैं लोक अदालतों को और सशक्त बनाता, गाँवों और कस्बों में त्वरित न्याय का प्रावधान करता। गरीबों के लिए निःशुल्क वकीलों का पैनल बनाता, ताकि धन की कमी कभी न्याय पाने में बाधा न बने।
अपराध को दंड मिलना लाज़मी है, पर सज़ा का मकसद बदला नहीं, बल्कि सुधार होना चाहिए। इसलिए यदि मैं न्यायाधीश होता तो जेलों को यातना गृह नहीं, बल्कि कैदियों को कौशल सिखाने वाले सुधार गृह बनाता। अपराध के पीछे के कारणों को समझा जाता और उनकी जड़ को मिटाने का प्रयास किया जाता। शायद गरीबी, अशिक्षा या टूटे परिवार ने उन्हें इस रास्ते पर धकेला हो। जेल से बाहर निकलने के बाद वे समाज की मुख्यधारा में लौट सकें, यही मेरा लक्ष्य होता।
यदि मैं न्यायाधीश होता तो भ्रष्टाचार का सफाया करता। न्यायपालिका का भ्रष्ट होना, न्याय व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। कठोर कानून और सख्त सजा के माध्यम से भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। मैं भाई-भतीजावाद (nepotism) का भी सफाया करता। रिश्तेदारी और साठगाँठ के जाल में फँसा न्याय, न्याय नहीं होता, बल्कि अन्याय का दूसरा रूप होता है। सख्त कानून बनाकर और कठोर दंड देकर भाई-भतीजावाद को जड़ से मिटाता।
यदि मैं न्यायाधीश होता तो, बाल अपराध को जड़ को समाप्त करने का प्रयास करता। अक्सर बच्चे गलत संगति, अभावों या अशिक्षा के कारण अपराध के रास्ते पर चले जाते हैं। ऐसे बच्चों के लिए विशेष बाल न्यायालय स्थापित करता, जहाँ बाल मनोविज्ञान को समझने वाले न्यायाधीश मौजूद हों। दंड देने के बजाय, इन बच्चों को शिक्षा और उचित परवरिश दी जाती। मैं बाल कल्याण समितियों को और सक्रिय बनाता, ताकि वे ऐसे बच्चों को सही दिशा दिखा सकें।
यदि मैं न्यायाधीश होता तो, न्यायालयों में पारदर्शिता लालाता। अस्पष्ट फैसलों और बंद कमरों में लिए गए निर्णयों से जनता में अविश्वास पैदा होता है। न्याय प्रक्रिया को पारदर्शी बनाता। फैसलों के आधारों को सार्वजनिक करता, ताकि जनता न्यायपालिका पर अपना भरोसा बनाए रख सके।
यदि मैं न्यायाधीश होता तो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता। विवेकशील न्यायाधीश होने का अर्थ है, पूर्वाग्रहों से मुक्त होना। धर्म, जाति, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव न्याय प्रणाली की गरिमा को कम करता है। इसलिए मैं त्वरित सुनवाई और निष्पक्ष फैसले सामाजिक सद्भाव कायम रखने में सहायक होते हैं।
यह मेरा दृष्टिकोण है। न्यायपालिका तभी सार्थक है, जब वह समाज के कल्याण के लिए कार्य करे। जहाँ कानून का राज हो, वहीं सच्चा न्याय निवास करता है। शायद मेरा यह न्याय अंधेपन पर आधारित न हो, पर विवेकशील विवेक और मानवीय संवेदना से ज़रूर लैस होगा।
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