यदि लोकतंत्र न होता हिंदी निबंध: यदि लोकतंत्र न होता तो सत्ता कुछ चुनिंदा लोगों या एक ही परिवार के हाथ में केंद्रित होती। विधायिका का अस्तित्व समाप्त
यदि लोकतंत्र न होता हिंदी निबंध - Yadi Loktantra Na Hota Hindi Nibandh
लोकतंत्र, मानव सभ्यता की एक ऐसी देन है जिसने सत्ता को जनता के हाथों में सौंपकर एक नई क्रांति को जन्म दिया है। यह एक ऐसा शासन तंत्र है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को महत्व देता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर लोकतंत्र न होता तो दुनिया कैसी होती? आइए, इस काल्पनिक यात्रा पर निकलें और देखें कि लोकतंत्र के अभाव में हमारी दुनिया कितनी अलग होती।
सत्ता का केंद्रीकरण:
यदि लोकतंत्र न होता तो सत्ता कुछ चुनिंदा लोगों या एक ही परिवार के हाथ में केंद्रित होती। विधायिका का अस्तित्व समाप्त हो जाता। कानून बनाने का अधिकार सर्वोच्च शासक के हाथों में होता। जनता की इच्छाओं और आवश्यकताओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता, और कानून शासक के हितों को ध्यान में रखकर बनाए जाते। चुनावों का कोई मतलब नहीं रह जाता। जनता को यह अधिकार नहीं रहता कि वे अपने नेताओं को चुनें। सिंहासन वंश परम्परा से चलता, या फिर शासक स्वयं अपना उत्तराधिकारी चुनता। नेता जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते, और उनकी शक्तियां असीमित होतीं। जनता की आवाज़ दब जाती और उनके अधिकारों का हनन होता रहता। इतिहास गवाह है कि ऐसे शासन में अत्याचार, भ्रष्टाचार और कुशासन फलता-फूलता है।
स्वतंत्रता का अभाव:
लोकतंत्र में व्यक्ति को बोलने, लिखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है। लेकिन यदि लोकतंत्र न होता तो, व्यक्ति को अपनी बात कहने का कोई अधिकार नहीं होता। सरकार अपनी नीतियों को थोपती है और जनता को बस उनका पालन करना होता। सलाखों के पीछे बंद विचारों का जन्म होता, और सवाल पूछना गुनाह बन जाता। कलम की नोक टूट जाती, और प्रेस की स्वतंत्रता एक खोया हुआ सपना बनकर रह जाती।
असमानता:
लोकतंत्र में सभी नागरिक समान होते हैं। लेकिन बिना लोकतंत्र के, समाज में कुछ लोग दूसरों पर हावी हो जाते। धन, जाति, धर्म या अन्य आधार पर भेदभाव होता है। अवसर केवल कुछ चुनिंदा लोगों के लिए ही उपलब्ध होते, बाकी सबके लिए दरवाजे बंद कर दिए जाते। गरीब और शोषित वर्ग का शोषण होता और समाज में असमानता बढ़ती जाती। यदि लोकतंत्र न होता तो न्याय का तराजू भी असंतुलित हो जाता। कानून की किताबें कुछ चुनिंदा लोगों के लिए कवच बन जातीं, और आम आदमी के लिए हथकड़ी। गरीब का रोना अनसुना कर दिया जाता, और सत्ताधारी के हाथों में ही न्याय का सिक्का घूमता। निर्दोष सज़ा भुगतते, और अपराधी खुलेआम घूमते।
अशिक्षा और अंधविश्वास का प्रकोप
यदि लोकतंत्र न होता, तो शिक्षा प्रणाली सरकारी एजेंडे के अनुसार संचालित होती। आलोचनात्मक चिंतन को दबा दिया जाता और लोगों को सरकार द्वारा प्रचारित विचारधारा को ही सत्य मानने के लिए बाध्य किया जाता। वैज्ञानिक प्रगति रुक जाती और अंधविश्वास पनपने लगते।
युद्ध और अशांति:
लोकतंत्र में मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जाता है। लेकिन यदि लोकतंत्र न होता, तो मतभेदों का समाधान हिंसा के माध्यम से होता है। देश में अशांति और युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी तनावपूर्ण हो जाते। शासक अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए युद्धों का सहारा लेते। शक्ति ही अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का आधार बन जाती, और कमजोर देश दमन का शिकार होते। मानवाधिकारों का उल्लंघन आम बात हो जाती, और शांति कायम करना असंभव हो जाता।
हालाँकि, यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। यदि लोकतंत्र न होता तो कुछ फायदे भी जरूर होते, भले ही उनकी संख्या कम होती। लोकतांत्रिक प्रणाली में बहस, चर्चा और सहमति बनाने की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है। एक तानाशाही व्यवस्था में, निर्णय तेजी से लिए जा सकते हैं, क्योंकि किसी एक व्यक्ति या समूह के पास अंतिम फैसला होता है। लोकतांत्रिक सरकारें कभी-कभी राष्ट्रवादी या धार्मिक भावनाओं को भड़काकर समर्थन हासिल करने के लिए दंगे और गृह-युद्ध जैसे स्थिति उत्पन्न कर देती हैं। परन्तु राजशाही या ताना शाही में ऐसा नहीं होता।
निष्कर्ष:
लोकतंत्र के अभाव में कानून का राज खत्म हो जाएगा, और शासक की मनमानी चलेगी। लोकतंत्र भले ही एक आदर्श व्यवस्था न हो, लेकिन यह निरंकुशता के अंधकार से कहीं बेहतर है। यह जनता को अपनी आवाज उठाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार देता है। इसलिए हमें लोकतंत्र के सिद्धांतों की रक्षा करनी चाहिए और इसे मजबूत बनाना चाहिए।
COMMENTS