पालतू प्राणी गाय की आत्मकथा: मैं एक गाय हूँ. जी हाँ, वही गाँव की गाय, जिसे आप सुबह दूध देते समय देखते हैं. मुझे अपना नाम तो याद नहीं, पर गाँव के सभी ब
पालतू प्राणी गाय की आत्मकथा हिंदी निबंध - Paltu Prani Gaye Ki Atmakatha Hindi Essay
पालतू प्राणी गाय की आत्मकथा: मैं एक गाय हूँ. जी हाँ, वही गाँव की गाय, जिसे आप सुबह दूध देते समय देखते हैं. मुझे अपना नाम तो याद नहीं, पर गाँव के सभी बच्चे मुझे गौरी बुलाते हैं. मैं इस छोटे से गाँव, चंपापुर, की सबसे प्यारी गाय हूँ, ऐसा सभी कहते हैं. आप इंसानों को लगता होगा कि हम गायें सिर्फ चारा खाती हैं और दूध देती हैं. लेकिन, मेरी आत्मकथा बताएगी कि हमारी ज़िंदगी भी उतनी ही सुख-दुख से भरी है, जितनी आपकी.
बचपन मे मैं . कभी माँ के पीछे, कभी तितलियों के पीछे, तो अपनी सहेलियों के साथ दौड़ती थी, पूंछ हिलाती थी, और कभी-कभी शरारत में किसानों के खेत चर लिया करती थी. उनकी डांट सुनकर हमें और भी मजा आता था. धीरे-धीरे, मैं बड़ी हुई और दूध देने का सिलसिला शुरू हुआ.
सुबह होते ही रामू काका प्यार से मेरी पीठ पर थपथपाते और फिर प्यार से मेरा दूध निकालते. वो दूध बेचकर ही अपना और सुधा मौसी का गुजारा चलाते थे. गाँव के दूसरे बच्चों को भी मेरा दूध पसंद आता. वो अकसर रामू काका के पास आते हैं और ताजा दूध पीने के लिए जिद करते.
लेकिन मेरी जिंदगी सिर्फ खेतों और गोशाला तक ही सीमित नहीं है. कभी-कभी वह मुझे गाँव के बाहर के खेतों में ले जाकर चरने देते. खेतों में तरह-तरह की घास और जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं. हर मौसम में खाने के लिए नया स्वाद मिलता है - बरसात की ताजी घास, सर्दियों में सूखी पत्तियाँ, और गर्मियों में आम के मीठे पत्ते.
मेरी जिंदगी सिर्फ खाने-पीने और दूध देने तक ही सीमित नहीं है. मैं गाँव के अन्य जानवरों - बूढ़े घोड़े धरमराज, शरारती बंदरों के झुंड, और चंचल बछियों के साथ भी मेलजोल रखती हूँ. खेतों में चरते समय हम सब मिलकर बातें करते हैं, एक-दूसरे की खुशियाँ बाँटते हैं, और कभी-कभी आपस में छोटे-मोटे झगड़े भी कर लेते हैं.
दोपहर को, जब सूरज चरम पर होता है, तब गाँव की सारी गायें मिलकर तालाब की तरफ जाती हैं. ठंडा पानी पीना और तालाब में नहाना मेरा पसंदीदा काम है. तालाब के किनारे अक्सर गाँव की बूढ़ी दादीयाँ इकट्ठी होती हैं. वे मेरी पीठ थपथपाती हैं, और कभी-कभी मीठा गुड़ भी खिलाती हैं.
दोपहर बाद रामू मुझे वापस खलिहान ले जाता है. वहाँ मैं थोड़ी देर सुस्ताती हूँ, पेड़ की छाव में खड़ी होकर आसमान को निहारती हूँ. शाम ढलने पर गाँव के सभी घरों से रोटी बनाने की खुशबू आती है. रामू काका फिर मुझे घर ले जाते है, जहाँ मैं रात भर के लिए बाँध दी जाती हूँ.
गाँव की हर चीज़ मुझे अपनी लगती है. खेतों की खुली हवा, पेड़ों की सरसराहट, और शाम को दूर से आती हुई मोरों की आवाज़ - यही सब मेरी दुनिया बनाते. लेकिन कभी-कभी मुझे गाँव के बाहर जाने का भी मन करता है. मंदिर के पीछे वाली पहाड़ी पर जाने की ख्वाहिश रहती है, जहाँ जंगली फूल खिलते हैं और ऊँची घास उगती है. पर रामू काका मुझे वहां जाने नहीं देते.
गाँव की ज़िंदगी सरल है, पर सुख-दुख से भरी है. मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे यहाँ रहने का मौका मिला. मुझे शहरों की तेज रोशनी और बड़े-बड़े भवनों की चमक-दमक की कोई ख्वाहिश नहीं है. मेरी खुशी इन हरे-भरे खेतों में, रामू के प्यार में, और गाँव वालों के स्नेह में ही है. शायद यही मेरी असली दौलत है.
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