नीम के पेड़ की आत्मकथा निबंध: मैं विशालगढ गाँव के मध्य में स्थित एक नीम का वृक्ष हूँ। मेरी आत्मकथा बड़ी ही निराली है। बचपन में, मैं एक छोटा सा पौधा था,
नीम के पेड़ की आत्मकथा निबंध (Neem ke Ped ki Atmakatha in Hindi)
नीम के पेड़ की आत्मकथा निबंध: मैं विशालगढ गाँव के मध्य में स्थित एक नीम का वृक्ष हूँ। मेरी आत्मकथा बड़ी ही निराली है। बचपन में, मैं एक छोटा सा पौधा था, जिसे किसान ने प्यार से रोपा था। समय बीतता गया और मैं एक विशाल वृक्ष बन गया। मेरी छाया दूर-दूर तक फैलने लगी। ग्रामीण लोग मेरी छाँव में विश्राम करते, बच्चे मेरे नीचे खेलते और पशु-पक्षी मेरी डालियों पर आश्रय लेते।
मेरा जीवन काल मानव जीवन से कहीं अधिक लंबा है। मैंने इस धरती पर कई पीढ़ियों को आते और जाते देखा है। पहले यह एक छोटा सा गाँव था, जहाँ लोग प्रकृति के साथ एकात्मक जीवन जीते थे। धीरे-धीरे झोपड़ियाँ पक्के मकानों में तब्दील हुईं, खेतों की हरियाली कंक्रीट के जंगल में बदलती गई। धीरे-धीरे विकास के नाम पर प्रकृति का शोषण होने लगा। पेड़ काटे गए, नदियाँ प्रदूषित हुईं और जीवन का संतुलन बिगड़ने लगा।
मैंने इस गाँव की कई पीढ़ियों को देखा है। बच्चे बड़े हुए, बूढ़े हो गए और चले गए, लेकिन मैं यहाँ खड़ा रहा। मैं इस बदलते समय का मूक साक्षी रहा हूँ।
मेरी पत्तियों, छाल और बीजों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है। ग्रामीण मुझे आयुर्वेदिक औषधि मानते हैं। बुखार हो या दांत का दर्द, मैं ही रामबाण हूँ। मेरी पत्तियां कड़वी परंतु गुणकारी हैं। मेरी छाल भी कम उपयोगी नहीं है। इससे दंत मंजन बनाया जाता है जो दांतों के लिए वरदान है।
मेरे फल कड़वे होते हैं, परंतु इनमें औषधीय गुण भरपूर हैं। नीम का तेल कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे फसलों को कीटों से बचाया जा सकता है। मैं एक प्राकृतिक कीटनाशक हूँ, जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता।
ग्रीष्म ऋतु में मेरी छाया, थकान से व्याकुल लोगों को राहत पहुँचाती है। बच्चे मेरी डालियों पर झूलते हैं, बूढ़े मेरी छाँव में सुकून पाते हैं। मेरी हरियाली इस गाँव की शोभा बढ़ाती है। सैंकड़ों पक्षियों के लिए मैं घर हूँ, उनके चहचहाने से मेरा दिन सुहाना हो जाता है। मैं इस गाँव के हर प्राणी के लिए उपयोगी हूँ, फिर चाहे वह इंसान हो, पशु हो या कीट-पतंगा।
परंतु, आजकल के युग में मानव का स्वार्थ बढ़ता जा रहा है। लोग पेड़ों को काट रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। मुझे भी कभी-कभी डर लगता है कि कहीं मेरा अस्तित्व ही खतरे में न पड़ जाए। मैं चाहता हूँ कि लोग प्रकृति के महत्व को समझें। हमें पेड़ों को बचाना होगा, तभी हम स्वयं को बचा पाएँगे।
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