वीर सिंह का चरित्र चित्रण: "मातृभूमि का मान" नाटक में सेनापति वीर सिंह एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वह मेवाड़ महाराणा लाखा के सेनापति हैं परन्तु उसकी मातृ
वीर सिंह का चरित्र चित्रण - Veer Singh ka Charitra Chitran
"मातृभूमि का मान" नाटक में सेनापति वीर सिंह एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वह मेवाड़ महाराणा लाखा के सेनापति हैं परन्तु उसकी मातृभूमि बूंदी थी। उसके चरित्र में वीरता, स्वाभिमान और मातृभूमि के प्रति प्रेम जैसे गुण विद्यमान हैं।
मातृभूमि के प्रति प्रेम: वीर सिंह के लिए उनकी मातृभूमि, बूंदी, उनके जीवन से भी अधिक महत्वपूर्ण है। वीर सिंह के अनुसार, "जिस जन्मभूमि की धुल में हम खेलकर बड़े हुए हैं, उसका अपमान भी कैसे सहन किया जा सकता है? जब कभी मेवाड़ की स्वतंत्रता पर आक्रमण हुआ है, हमारी तलवार ने उनके नमक का बदला दिया है।लेकिन जब मेवाड़ और बूंदी के मांनपर प्रश्न आएगा, हम मेवाड़ की दी हुई तलवारें महाराणा के चरणों में चुपचाप रखकर विदा लेंगे और बूंदी की ओर से प्राणों की बलि देंगे।" वह आगे कहता है कि महाराणा आज आश्चर्य के साथ देखेंगे कि नकली बूंदी को जीतने का यह कोई साधारण खेल नहीं है। यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा।
वीर और स्वाभिमानी: वीर सिंह एक कुशल योद्धा हैं, जो युद्ध कला में निपुण हैं। जब मेवाड़ के महाराणा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए बूंदी का नकली किला बनाकर उसे जीतने की योजना बनाई तो वीर सिंह को यह बात अपमानजनक लगी। वीर सिंह के शब्दों में, "यहाँ की भूमि का कण-कण आज सिसोदियों एवं हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगा।" वह अपने कई साथी सिपाहियों के साथ जन्मभूमि का मान रखने के लिए इस नकली किले की भी रक्षा करता है। अंततः वह अपने साथियों के साथ युद्ध में शहीद हो जाता है। उनकी वीरता और देशभक्ति महाराणा लाखा को प्रभावित करती है और उन्हें अपनी गलती का एहसास दिलाती है।
निष्कर्ष: वीर सिंह "मातृभूमि का मान" नाटक में एक प्रेरणादायक पात्र हैं। वे वीरता, त्याग, देशभक्ति और नैतिकता के प्रतीक हैं। वे हमें सिखाते हैं कि एक सच्चा देशभक्त अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन भी न्यौछावर करने को तत्पर रहता है।
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