जब मैंने पहली बार झूठ बोला हिंदी निबंध: जीवन में गलतियां करना स्वाभाविक है, लेकिन कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो हमें जीवन भर सिखाती रहती हैं। मेरे जीवन
जब मैंने पहली बार झूठ बोला हिंदी निबंध - Jab Maine Pahli Bar Jhooth Bola Nibandh
जब मैंने पहली बार झूठ बोला हिंदी निबंध: जीवन में गलतियां करना स्वाभाविक है, लेकिन कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जो हमें जीवन भर सिखाती रहती हैं। मेरे जीवन में भी एक ऐसी ही घटना घटी जब मैंने पहली बार झूठ बोला और उसके परिणामस्वरूप मुझे एक कड़वा सबक मिला।
यह छठी कक्षा की बात है। उस दिन मेरा गणित का होमवर्क पूरा नहीं हुआ था। डर के मारे मैं स्कूल नहीं जाना चाहता था, लेकिन स्कूल जाना मजबूरी थी। सुबह स्कूल में पहुंचते ही शिक्षक ने होमवर्क जमा करने के लिए कहा। डर और घबराहट में मैंने शिक्षक से झूठ बोल दिया कि मैं अपना कॉपी घर पर भूल गया हूँ। मैंने सोचा कि यह तो सिर्फ एक छोटा सा झूठ है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन मैं गलत था।
शाम को स्कूल से लौटते समय मुझे पता चला कि मेरे शिक्षक मेरे घर आने वाले हैं। यह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। घर पहुंचकर मैंने जल्दी-जल्दी कॉपी पर काम करना शुरू किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कुछ ही देर में शिक्षक मेरे घर पहुंच गए। उन्होंने मेरे माता-पिता से पूछा कि क्या मैंने होमवर्क पूरा किया है। मेरे माता-पिता ने मुझसे होमवर्क दिखाने को कहा। डर और शर्म से मेरा सिर झुक गया। मैंने अपने माता-पिता और शिक्षक से सारी सच्चाई बता दी। उन्होंने मुझे समझाया कि झूठ बोलना कितना बुरा काम है। उस दिन मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैंने अपने शिक्षक और माता-पिता से माफी मांगी और वादा किया कि मैं भविष्य में कभी झूठ नहीं बोलूंगा।
अगले दिन कक्षा में मैंने सबके सामने अपनी गलती स्वीकार की। मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। लेकिन टीचर ने मुझे माफ़ कर दिया और कहा कि अब मैं कभी झूठ न बोलूँ।
उस दिन मुझे एक कड़वा सबक मिला। मैंने सीखा कि झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होता। सच बोलना ही वास्तविक समझदारी होती है। इस घटना के बाद बाद मैंने कभी झूठ नहीं बोला और हमेशा सच बोलने का प्रयास किया है। आज भी जब कभी मैं किसी मुश्किल परिस्थिति में होता हूँ, तो मैं सच बोलने का साहस जुटाता हूँ।
जब मैंने पहली बार झूठ बोला हिंदी निबंध - 2
बचपन में हम सभी कुछ न कुछ गलतियां करते ही हैं। कभी-कभी ये गलतियां इतनी छोटी होती हैं कि हमें इनका एहसास भी नहीं होता। लेकिन कुछ गलतियों का प्रभाव हमारे जीवन पर गहरा होता है और हमें उनसे महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ जब मैंने पहली बार झूठ बोला था। तब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। आज भी जब मैं उस घटना को याद करता हूँ, तो मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है।
वह दिन मेरा स्कूल खुलने का पहला दिन था। सुबह स्कूल जाते समय मैंने देखा कि रास्ते में एक स्टेशनरी की दुकान है। दुकान में बहुत सारे रंगीन पेंसिल बॉक्स थे। मैं दुकान में गया और दुकानदार से बोला कि मुझे एक पेंसिल बॉक्स चाहिए। दुकानदार ने मुझे पेंसिल बॉक्स दिखाया और उसका दाम बताया।
जब दुकानदार ने मुझसे पैसे मांगे, तो मैंने झूठ बोलते हुए कहा, "मैंने पैसे दे दिए हैं, भीड़ में आपने ध्यान नहीं दिया।" दुकानदार ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया और मुझे पेंसिल बॉक्स लेकर जाने दिया।
मैं बहुत खुश था कि मुझे पेंसिल बॉक्स मिल गया। लेकिन घर पर पापा ने मुझसे पूछा कि "नए पेंसिल बॉक्स खरीदने के पैसे कहाँ से आये?" मैं घबरा गया और झूठ बोला कि मैंने पैसे बचाकर रखे थे।लेकिन पापा को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने मुझसे सच बोलने के लिए कहा। मैं डर गया और मैंने सारी बात सच-सच बता दी।
पापा बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने मुझे समझाया कि झूठ बोलना कितना गलत है। उन्होंने कहा कि मैंने दुकानदार को धोखा दिया है और बेईमानी की है। उन्होंने मुझे पेंसिल बॉक्स वापस स्टेशनरी की दुकान में ले जाने के लिए कहा।
अगले दिन सुबह मैं पापा के साथ स्टेशनरी की दुकान गया। मैंने दुकानदार से माफ़ी मांगी और पेंसिल बॉक्स के पैसे दिए। दुकानदार ने मुझे माफ़ कर दिया और कहा कि अब मैं कभी ऐसा गलत काम न करूं।
उस दिन मैंने एक बहुत महत्वपूर्ण सबक सीखा। मैंने समझा कि झूठ बोलने और बेईमानी करने से हमेशा परेशानी ही होती है। इसलिए हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और ईमानदार रहना चाहिए।
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