भक्तिन का चरित्र चित्रण: महादेवी वर्मा का रेखाचित्र "भक्तिन" एक ऐसी स्त्री की कहानी है जिसका जीवन कठिनाइयों से भरा है। लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपन
भक्तिन का चरित्र चित्रण - Bhaktin ka Charitra Chitran
महादेवी वर्मा का रेखाचित्र "भक्तिन" एक ऐसी स्त्री की कहानी है जिसका जीवन कठिनाइयों से भरा है। लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी बेटियों का पालन-पोषण करते हुए एक सम्मानजनक जीवन जीने का प्रयास किया। भक्तिन का चरित्र साहस, आशावादिता, मेहनती, स्वाभिमानी जैसे गुणों से युक्त है।
साहसी: महादेवी जी ने भक्तिन को एक साहसी महिला के रूप में चित्रित किया है। भक्तिन के जीवन में दुखों की कमी नहीं थी। बचपन में माँ का साया छूटना, सौतेली माँ की क्रूरता, कम उम्र में विवाह, पति की मृत्यु, विधवापन का कलंक, बेटी का विधवा होना, परिवारिक कलह - मानो दुर्भाग्य भक्तिन का पीछा कर रहा था। परन्तु, भक्तिन इन परिस्थितियों से टूटने वाली नहीं थीं। वह हर चुनौती का सामना डटकर करती रहीं।
आशावादी: पति की मृत्यु के बाद, दोनों बेटियों की परवरिश और विवाह का दायित्व अकेले संभालते हुए, भक्तिन ने साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। ज़मींदार के अपमान से भक्तिन टूट नहीं गईं, बल्कि उन्होंने अपनी बेटियों के साथ शहर आकर जीवनयापन का नया रास्ता ढूंढा।
कर्मठ और मेहनती: छोटी बहू होने के बावजूद, भक्तिन ने घर-गृहस्थी और खेती-बाड़ी का सारा काम कुशलता से संभाला। लेखिका के घर में भी, भक्तिन ने अथक परिश्रम और समर्पण से लेखिका का ध्यान रखा। वह लेखिका का पूरा ध्यान रखती थीं और उनकी हर जरूरत को पूरा करने के लिए तत्पर रहती थीं।
स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर: जब जमींदार ने लगान न चुका पाने के कारण भक्अतिन को दिन भर धुप में खड़े रखा तो वह यह अपमान सहन नहीं कर सकीं। वह अकेले शहर आने का निर्णय लेकर अपनी बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करना चाहती थीं। विधवा होने के बावजूद, उन्होंने दूसरों पर आश्रित रहने के बजाय, आत्मनिर्भर होकर अपनी बेटियों का पालन-पोषण किया।
पतिव्रता और समर्पित: पति के प्रति भक्तिन का प्रेम अटूट था। पति की मृत्यु के बाद भी, भक्तिन ने दूसरा विवाह नहीं किया और अपने जीवनकाल में उनके प्रति समर्पित रहीं।
दयालु और सहानुभूतिपूर्ण: भक्तिन विद्यार्थियों और छात्रावास की लड़कियों के प्रति दयालु थीं और उनकी मदद करती थीं। बच्चों के प्रति उनका वात्सल्य भी स्पष्ट था। जब कोई विद्यार्थी जेल जाता तो उसे बहुत दुख होता था।
रुढिवादिता: भक्तिन की पढ़ने में उनकी रुचि नहीं थी इसलिए वह छुआछूत जैसी कुरीतियों से ग्रस्त थीं। घर के कामकाज में वह निपुण थीं, लेकिन रसोईघर में उसे किसी का प्रवेश पसंद नहीं था।
भक्तिन का चरित्र पाठकों को प्रेरित करता है और सिखाता है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना साहस और दृढ़ संकल्प के साथ करना चाहिए।
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