मैं हिमालय बोल रहा हूं! पृथ्वी के मुकुट हिमालय की आत्मकथा, समय के साक्षी से लेकर वर्तमान खतरों तक। जानें मेरी यानि हिमालय की कहनी।
मैं हिमालय बोल रहा हूँ हिंदी निबंध (Autobiography of the Himalaya Essay in Hindi)
मैं हिमालय बोल रहा हूँ: मैं हूँ हिमालय, धरती का मुकुट, पर्वतों का राजा। अनगिनत चोटियों को अपने शिर पर सजाए, मैं सदियों से खड़ा हूँ, गगनचुम्बी शिखरों से आकाश को छूता हुआ। मेरा जन्म कब हुआ, इसका कोई लिखित इतिहास नहीं है। परन्तु वैज्ञानिकों का कहना है कि करोड़ों वर्ष पूर्व टेथिस सागर के सूखने से मेरा विशाल शरीर अस्तित्व में आया। भारत, नेपाल, भूटान, चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं को स्पर्श करता हुआ मैं विराजमान हूँ। आज मैं हिमालय आपको सुनाता हूँ मेरी कथा - जन्म की गाथा, देखे गए परिवर्तन और वो किंवदंतियां जो मेरे अस्तित्व से जुड़ी हैं।
मेरे जन्म के पीछे एक रोमांचक कथा छिपी है। दो विशाल भूखंडों - भारतीय उपमहाद्वीप और यूरेशियन प्लेट - की टक्कर से मैं बना। यह टक्कर इतनी भयंकर थी कि धरती की पपड़ी तह-दर-तह ऊपर उठ गई, और इस तरह हिमालय का जन्म हुआ। मेरी रगों में मैग्मा का उबाल आज भी महसूस होता है।
परिवर्तन का साक्षी: असंख्य युगों से मैं पृथ्वी पर घटते परिवर्तनों का मूक दर्शक रहा हूँ। मैंने पृथ्वी पर बहुत कुछ बदलते देखा है। विशाल समुद्रों का स्थान विशाल मैदानों ने ले लिया। जीवों का विकास हुआ, विलुप्त हुए, और नए जीव अस्तित्व में आए। मैंने डायनासोरों को धरती पर घूमते देखा है, ग्लेशियरों के पिघलने और जमने का चक्र अनगिनत बार देखा है। प्रारंभिक मानव सभ्यताओं का उदय और पतन मेरी निगरानी में हुआ है।
मैंने प्राचीन सभ्यताओं को भी जन्म देते देखा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग मेरी ही तलहटी में बसे थे। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध को भी मेरी शांत वादियों में ज्ञान प्राप्त हुआ था। मेरी चोटियों पर ध्यान लगाते हुए ऋषियों और योगियों ने आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया है।
प्रकृति का निरंतर प्रहार (Nature's Constant Challenge):
मेरा सफर कभी भी सहज नहीं रहा। प्रकृति की शक्तियाँ लगातार मुझे तराशती रहीं। भूकंपों ने मुझे झकझोरा है, हिमस्खलन ने मेरा रूप बदला है। मूसलाधार बारिशों ने मेरी चोटियों को धोया है और तेज जल-धाराओं ने मेरी चट्टानों को चीरा है। फिर भी, मैं अडिग खड़ा रहा हूँ, पृथ्वी के पहरेदार के रूप में।
दृश्यों में भी निरंतर बदलाव आया है। कभी मैं हरे-भरे जंगलों से ढका हुआ था, तो कभी विशाल ग्लेशियरों से सफेद। मौसमों का चक्र भी निरंतर चलता रहा है। कड़ाके की सर्दियों में मेरी चोटियाँ बर्फ की चादर से ढक जाती हैं, तो गर्मियों में हिमस्खलन होते रहते हैं।
देवताओं का वास (Abode of Gods):
मेरे अस्तित्व के साथ अनेक मिथक जुड़े हैं। हिंदू धर्म में, मुझे मेरु पर्वत माना जाता है, जो ब्रह्मांड का केंद्र है। भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर विराजमान बताया जाता है। बौद्ध धर्म में माउंट कैलाश को पवित्र माना जाता है। ये मिथक मेरी दिव्यता और पवित्रता का प्रतीक हैं।
जीवन का स्रोत: मैं सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं हूँ, मैं जीवन का स्रोत हूँ। मेरी बर्फीली चोटियों से निकलने वाली नदियाँ - गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु - एशिया की प्रमुख नदियाँ हैं, जो करोड़ों लोगों की जीवन रेखा हैं। ये नदियाँ सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती हैं और विशाल नदी घाटियों का निर्माण करती हैं, जो कृषि के लिए उपजाऊ भूमि प्रदान करती हैं। मेरी तलहटी में बसे शहरों की संस्कृति समृद्ध है। मैं वनस्पतियों और जीवों की अविश्वसनीय विविधता का घर हूँ। हिम तेंदुए, बर्फीले चीते, लाल पांडा और कस्तूरी मृग जैसे दुर्लभ जीव मुझ पर विचरण करते हैं। मेरी तलहटी में साल, देवदार और चीड़ के घने जंगल पाए जाते हैं, जो वन्यजीवों को आश्रय देते हैं और पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य: हालांकि मेरा अतीत गौरवशाली रहा है, परन्तु वर्तमान में मैं एक नए खतरे का सामना कर रहा हूँ - मानव गतिविधियाँ। मानव गतिविधियों से मेरा पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में बाढ़ और सूखा दोनों का खतरा बढ़ रहा है। वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव हो रहा है, जिससे भूस्खलन का खतरा बना रहता है।
कुछ हिस्सों में पहले जैसी हरियाली नहीं रही। प्रदूषण की कालिख कभी-कभी मेरी चोटियों को भी ढक लेती है। ये सब देखकर मेरा मन व्यथित होता है। फिर भी, मैं आशा नहीं खोता। मानव जाति में पर्यावरण जागरूकता बढ़ रही है। वनों की कटाई रोकी जा रही है, सफाई अभियान चलाए जा रहे हैं, और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि मनुष्य समझेंगे कि मेरा संरक्षण उनके ही भविष्य के लिए आवश्यक है।
संरक्षण का आह्वान: मैं मानव जाति से विनती करता हूँ कि मेरा सम्मान करें। मुझे हरा-भरा बनाए रखें, प्रदूषण को कम करें और मेरे जंगलों को नष्ट न करें। मेरा अस्तित्व पृथ्वी के संतुलन के लिए आवश्यक है। यदि मैं नष्ट हुआ, तो पृथ्वी का जलवायु चक्र बिगड़ जाएगा और लाखों लोगों का जीवन प्रभावित होगा।
उपसंहार: आने वाली पीढ़ियों के लिए मैं एक संदेश देना चाहता हूँ। मेरा संरक्षण, तुम्हारा भविष्य है। मेरी नदियाँ तुम्हें जीवन देती हैं, मेरे जंगल तुम्हारी सांसें बनाते हैं। मेरा पर्यावरण तुम्हारे अस्तित्व की रक्षा करता है। मेरा सम्मान करो, मेरी रक्षा करो, तभी मैं सदियों से धरती का मुकुट बना रह पाऊँगा। मेरी बर्फ से ढकी चोटियाँ सूर्य की किरणों में चमकती रहें, मेरी नदियाँ हमें जीवनदायिनी जल देती रहें, और मेरी तलहटी में संस्कृतियाँ फली-फूलती रहें। यही मेरी इच्छा है, यही मेरा सपना है।
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