इस निबंध में, एक सिक्का अपनी आत्मकथा यात्रा का वर्णन करता है - कारखाने से संग्रहालय तक।
एक सिक्के की आत्मकथा हिंदी निबंध - Autobiography of a coin Essay in Hindi
मैं हूँ एक सिक्का, धातु का बना एक छोटा सा टुकड़ा, पर मेरी कहानी है बड़ी विस्तृत। मेरा जन्म कब और कहाँ हुआ, ये मैं ठीक से नहीं बता सकता। शायद किसी विशाल कारखाने की भट्टी में, जहां आग की लपटों के बीच गर्म धातु को मेरा आकार दिया गया। फिर तेज प्रेस मशीनों के नीचे से गुजरा, जहाँ मेरी सतह चिकनी और सपाट बनी। मेरी एक तरफ राष्ट्रीय चिन्ह और दूसरी तरफ मूल्य अंकित हुआ। रोशनी में आते ही, मैंने अपने आसपास सैकड़ों सिक्कों को देखा, सब एक जैसे, चमचमाते हुए। भविष्य की यात्रा का इंतजार करते हुए, हमें बड़े डिब्बों में पैक कर दिया गया। उस अंधेरे में भी, मुझे एक अजीब सी उत्सुकता थी - यह दुनिया कैसी होगी, जिसमें मैं जाऊंगा?
मेरी अनोखी यात्रा:
फिर आया वह दिन, जब बैंक के दराजों से निकलकर मैं किसी के हाथ में थमाया गया। पहली बार किसी की जेब की गर्मी महसूस हुई, फिर गिनती में खनखनाहट। यही मेरा सफर था - हाथ बदलना, जेब बदलना। हर नए हाथ से एक नई कहानी जुड़ती गई।
मैंने बाजार की रौनक देखी है। सब्जी विक्रेता से लेकर चाय वाले तक, हर किसी के हाथों से गुजरा हूँ। कभी किसी को मिठाई दिलाई है, तो कभी बस का टिकट बन गया हूँ। कभी किसी बच्चे की गुल्लक में मीठी नींद सोया, तो कभी भिखारी के झोली में स्नेह पाया। मैंने गरीब की रोटी खरीदी है, अमीर की शान बढ़ाई है। मैंने बच्चों की आंखों में खिलौने खरीदने की लालसा देखी है, और गरीबों के हाथों में तकदीर बदलने की उम्मीद को भी महसूस किया है। मैं मंदिरों के दानपात्र में चढ़ाया गया हूँ, जुए के खेल में हारा भी गया हूँ। हर हाथ में छूते हुए मैंने समाज का असली चेहरा देखा है। उनकी ख़ुशी और गम को करीब से महसूस किया है।
समय के साथ बदलता मेरा रूप:
समय के साथ मेरा रूप बदलता गया। नया चमकता हुआ सिक्का धीरे-धीरे घिसने लगा। जेबों में घूमते हुए खरोंचें आईं, चमक फीकी पड़ गई। मूल्य कम होने के कारण दुकानों पर चलन भी कम हो गया। फिर आया वह समय, जब दान के डिब्बे में जा गिरा। वहाँ भी कई सिक्कों के साथ, मैं गिड़गिड़ाता रहा, किसी जरूरतमंद की मदद करने की आस में।
लेकिन आज भी, दीपावली और अक्षयतृतीय जैसे शुभ अवसरों पर, सोने और चांदी के सिक्कों के रूप में मुझे घर लाया जाता हूँ। नई पीढ़ी के हाथों में आकर, मैं एक बार फिर शुभकामनाओं का प्रतीक बन जाता हूँ।
मेरे सफर में बहुत कुछ बदला है। रुपयों के रंग बदल गए, राजा-महाराजाओं की जगह राष्ट्रीय नेताओं के चित्र आए। अर्थव्यवस्था बदली, महंगाई बढ़ी, मेरी ख़रीदार शक्ति कम हो गई। अब धीरे-धीरे मेरी जगह डिजिटल लेनदेन ले रहा है। पर एक सिक्के के रूप में, मेरा महत्व कम नहीं हुआ। मैं इतिहास का एक टुकड़ा हूँ। जिस देश में चलता था, उसकी आर्थिक स्थिति और सरकार को दर्शाता हूँ। शायद किसी संग्रहालय में, या किसी पुराने डिब्बे में पड़ा हुआ, भविष्य की पीढ़ी को अपने समय की कहानी सुनाऊँगा।
इतिहास का साक्षी:
मैं सिर्फ एक सिक्का हूँ, पर इतिहास का एक सच्चा गवाह हूँ। जेबों से निकलकर, राज्यों के उत्थान-पतन का साक्षी बना। मुद्रा बदलती रही, पर मूल्य का ये सिलसिला अनवरत रहा। आज, मैं जेबों में कम, संग्रहालयों की शोभा अधिक बढ़ाता हूँ। एक ज़माने में जिस चमक के लिए ललचाते थे, वही चमक अब इतिहास की याद दिलाती है।शायद आने वाली पीढ़ियाँ भी मुझे देखेंगी और समझेंगी कि इतिहास कभी मिटता नहीं, बस रूप बदल लेता है।
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