त्यागपत्र उपन्यास की नायिका मृणाल का चरित्र चित्रण: मृणाल, हिंदी साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना, "त्यागपत्र" की नायिका है। मृणाल का जीवन सामाजिक रीति-रि
त्यागपत्र उपन्यास की नायिका मृणाल का चरित्र चित्रण कीजिये
मृणाल, हिंदी साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना, "त्यागपत्र" की नायिका है। मृणाल का जीवन सामाजिक रीति-रिवाजों और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के दबावों से भरा हुआ है। शीला के भाई के साथ उसके संबंधों के कारण उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। इसी वजह से उसका बेमेल विवाह होता है और अंततः उसे अपना पति-गृह छोड़ना पड़ता है। उसके चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं
मृणाल की चारित्रिक विशेषताएँ
पतिव्रता: मृणाल के अनुसार वह पतिव्रता है। वह कहती है, "उन्होंने ही मुझे छोड़ा है। मैं स्त्री-धर्म पतिव्रत धर्म ही मानती हूँ। उसका स्वतंत्र धर्म मैं नहीं मानती। क्या पतिव्रता को यह चाहिए कि पति उसे नहीं चाहता तब भी वह अपना भार उस पर डाले रहे?"
मृणाल भी अन्ततः उसी पतिव्रता धर्म को ही अपनाती है। उस से विद्रोह नहीं करती, बल्कि उसका नया अर्थ करती है। वह प्रमोद से कहती है, "ब्याह के बाद मैंने बहुत सोचा, बहुत सोचा । सोचकर अंत में यह पाया कि मैं छल नहीं कर सकती। छल पाप है। हुआ जो हुआ, ब्याहता को पतिव्रता होना चाहिए। उसके लिए पहले उसे पति के प्रति सच्ची होना चाहिए । सच्ची बनकर ही समर्पित हुआ जा सकता है।"
पीड़ित: मृणाल का जीवन त्रासदी से भरा है। शीला के भाई के साथ अनजाने में हुए संबंधों के कारण उसे शारीरिक और मानसिक यातना सहनी पड़ती है। एक बेमेल विवाह, पति-गृह से निष्कासन, और अकेलेपन का सामना करते हुए भी वह हार नहीं मानती। जब उसे जबर्दस्ती वापस ससुराल भेजा जाता है। भतीजा बुआ की स्थिति को देखता है और लिखता है "ज्यों ज्यों जाने का दिन आता उनकी निगाह कुछ बंधती - सी जाती थी । जहाँ देखती, देखती रह जाती थी। जैसे सामने उन्हें और कुछ नहीं दीखता, बस भाग्य दीखता है, और भाग्य चीन्हा नहीं जाता। ऐसी अपेक्षित पूछती हुई सी निगाह से देखती मानो प्रश्न रोककर भी उत्तर मांगती है कि 'मैं कुछ चाहती हूँ, पर अरे कोई बताएगा कि क्या ......."
अकेलापन: परिवार और समाज के दबाव के कारण मृणाल अकेलेपन का बोझ ढोती है। मृणाल का अकेलापन और वह भी अपने पीहर में उसका अकेलापन बहुत मारक है। वह कहती है कि उसका कोई नहीं है। उसे कोई बताने वाला नहीं है, समझाने वाला नहीं है, समझने वाला नहीं है। उसकी अभी उम्र ही क्या है, जो देश, दुनिया, समाज और अपने आपको समझ सके। उसे कोई सहारा नहीं मिलता, कोई उसे समझने की कोशिश नहीं करता। बहिन को जब भाई की आवश्यकता पड़ी तो भाई बहिन के साथ खड़ा नहीं दिखा, बल्कि सामाजिक मान्यताओं के साथ खड़ा पाया गया।
सौंदर्य की प्रतिमा: प्रमोद अपनी बुआ के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि बुआ बहुत अधिक सुंदर थी। यहां तक कि सभी उसके रूप को देखकर दंग रह जाते थे। उसकी हंसी में जीवन की सार्थकता नजर आती थी। प्रमोद के शब्दों में,“बुआ का तब का रूप सोचता हूं तो दंग रह जाता हूं। ऐसा रूप कब किसको विधाता देता है। पिताजी तो बुआ की मोहनी सूरत पर रीझ रीझ जाते थे। मुझे उसे देखकर कहानी की परियों का ध्यान हो आता और मैं मुक्त भाव से बुआ की ओर आकृष्ट हो जाता।"
पितृसत्तात्मक समाज का शिकार: मृणाल का जीवन इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध मौन चीत्कार है। एक ऐसी चीत्कार है जिसे हिंदी समाज ने अनदेखा किया है वह नहीं जानती कि वह क्या करे। वह सारी दुनिया को वह अपने विरुद्ध खड़ा पाती है। माँ-बाप होते तो एक बात थी। भाई- भौजाई, पति, कोयले वाला - सभी पित्तृसत्ता की मान्यता पर टिके हुए हैं, मृणाल इन सबके बीच अकेली खड़ी है, नादान, भोली, नासमझ, फिर भी दृढ़ हठी।
समाज के पाखंड का सामना: मृणाल को समाज के पाखंडी चेहरे का सामना करना पड़ता है। यौन शुचिता के नाम पर उसे दंडित किया जाता है, भले ही वह गलत न हो। पतिव्रता धर्म के बंधन में जकड़ी, मृणाल को अपने पति के प्रति समर्पित रहना पड़ता है, भले ही वह उसके साथ गलत व्यवहार करता हो।
सत्यवादी: मृणाल एक सत्यवादी महिला है इसी कारण मृणाल ने शीला के भाई से अपने संबंधों की सारी सच्चाई अपने पति को बता दी थी। यही सच्चाई और ईमानदारी उसकी शत्रु बन जाती है परन्तु वह अंत तक संबंधों में ईमानदार ही रहती है ।
निष्कर्ष: मृणाल का जीवन पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ एक मौन विद्रोह है। उसकी पीड़ा और सामाजिक बहिष्कार महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर गहरा सवाल उठाते हैं।
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