'तौलिये एकांकी' के नायक बसंत का चरित्र चित्रण: उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित एकांकी "तौलिये" में बसंत प्रधान पात्र/नायक है। वह मधु का पति है जिससे उसक
'तौलिये एकांकी' के नायक बसंत का चरित्र चित्रण
उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित एकांकी "तौलिये" में बसंत प्रधान पात्र/नायक है। वह मधु का पति है जिससे उसका सफाई को लेकर विवाद हो जाता है। बसंत का जन्म और पालन-पोषण एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उसने जीवन में विपन्नता भी देखी है। बसन्त ने जीवन में विपन्नता भी देखी है। वह छ: भाई थे और एक ही तौलिये से अपना शरीर पोंछते थे। उसने जीवन में और कठोर परिश्रम किया है। कई बार उसने ऐसे दिन देखे जब उसे कई दिन तक बनियान बदलने और धोने का भी अवसर नहीं मिला।
बसंत की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
स्वच्छता का समर्थक: बसंत स्वच्छता का समर्थक है, लेकिन सफाई की सनक से उसे चिढ़ है। मधु के तौलिये और बनियान के प्रति अतिवादी विचारों को उसने स्वीकार कर लिया है। बसन्त को बनियानें बदलने हर बार एक नई तौलिया प्रयोग करने, बार-बार हाथ-पैर मुँह धोने की आदत नहीं है। जो तौलिया बसन्त जो हाथ में आ जाता है, वह उसी तौलिये को लेकर इस्तेमाल कर लेता है। बसंत मधु से कहता है, "बनियानों और तौलियों की कैद मैंने मान ली, किंतु यदि मैं गलती से बनियान न बदल पाऊँ, या गलत तौलिया ले लूँ तो इसका यह मतलब तो नहीं कि मैं स्वभाव से गंदा हूँ"
सरल और स्वाभाविक: बसन्त स्वाभाविक तथा प्राकृतिक जीवन को अच्छा मानता है। वह स्वाभाविक जीवन पर सभ्यता का बनावटी पर्दा नहीं डालता। वह रजाई में मित्रों के साथ बैठकर चाय पीता और गपशप करता था। इससे उनमें असीम आत्मीयता रहती थी। बसंत के अनुसार, "यदि हमें जीवन का सामना करना है तो रोज गन्दगी से दो-चार होना पड़ेगा, फिर इससे घृणा कैसी?" एक अन्य दृश्य में वह मधु से कहता है, "तुम मनुष्य की प्राकृतिक भावनाओं को बाँधकर रखना चाहती हो कठिन सिद्धान्तों की बेड़ियों में।"
प्रेम करने वाला पति: बसंत मधु का पति है, उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ है. मधु बसन्त को तथा बसन्त मधु को खूब चाहते हैं. बसन्त मधु की बातों पर हँसकर टालने का प्रयास करता है। वह चाहता है कि मधु दिखावे की जिंदगी से बाहर निकले और स्वस्थ जीवन जिए। मधु की गिरती सेहत को लेकर उसे समझाता है, "सेहत-दुनिया में जो कुछ है सेहत है। जीवन में तुम्हारी यह सफ़ाई और सुघड़ता, ये नज़ाकतें इतना काम न देंगी, जितना सेहत। यदि यही ठीक नहीं रहती तो ये सब किस काम कीं और अगर ठीक है तो फिर इनकी कोई ज़रूरत नहीं।"
हँसमुख और शिष्ट: बसंत एक हँसमुख और प्रसन्नचित्त व्यक्ति है, जो जीवन का आनंद लेता है। शिष्टाचार के नाम पर अनावश्यक निषेध उसको पसन्द नहीं है। बसंत अनावश्यक रीति-रिवाजों और पाखंड से दूर रहता है। वह उन रीति-रिवाजों को पसंद नहीं करता जो वास्तविकता से परे हैं और लोगों को बोझिल बनाते हैं।
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