तौलिये एकांकी का सारांश: उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित "तौलिए" एक मनोवैज्ञानिक एकांकी है। बसन्त और मधु एकांकी के प्रमुख पात्र हैं। बसंत एक मध्यमवर्गीय,
तौलिये एकांकी का सारांश (Tauliye Ekanki ka Saransh)
उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित "तौलिए" एक मनोवैज्ञानिक एकांकी है। बसन्त और मधु एकांकी के प्रमुख पात्र हैं। बसंत एक मध्यमवर्गीय, व्यावहारिक और यथार्थवादी युवक है। जबकि मधु जोकि बसंत की पत्नी है, सफाई को बहुत महत्व देती है। यह एकांकी साधारण तौलिये के माध्यम से पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों पर होने वाले विवादों को उजागर करती है।
पहला दृश्य: कहानी की शुरुआत बसंत के कमरे से होती है। नवंबर 1943 का समय है। बसंत हजामत के बाद मदन के तौलिये से अपना चेहरा पोंछ लेता है। यह देखकर मधु नाराज हो जाती है और उसे अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तौलिये इस्तेमाल करने के लिए कहती है। बसंत उसकी बात को हँसकर टालने की कोशिश करता है।
यहाँ से दोनों के बीच तौलिये को लेकर बहस शुरू हो जाती है। बसंत अपने बचपन का उदाहरण देते हुए बताता है कि वह छह भाइयों के साथ एक ही तौलिये का इस्तेमाल करते थे और कभी बीमार नहीं हुए। वह मधु के संस्कारों को ऐरिस्टोक्रेटिक बताता है, जिससे मधु चिढ़ जाती है।
बसंत मधु को समझाना चाहता है कि स्वच्छता महत्वपूर्ण है, लेकिन अत्यधिक सफाई भी नुकसानदायक हो सकती है। वह चूहा सैदनशाह का उदाहरण देकर बताता है कि जोहड़ का पानी साफ नहीं है, फिर भी वहां के लोग स्वस्थ रहते हैं। उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है क्योंकि वे गंदगी और संक्रमण के संपर्क में आते हैं। जबकि मधु बाहरी स्वच्छता को भी महत्वपूर्ण मानती है।
विवाद बढ़ता जाता है और मधु गुस्से में अपने पिता के घर जाने की धमकी देती है। तभी बसंत को बनारस जाने का आदेश मिलता है। वह मधु से बाद में सामान बांधने और पहले उसे जाने की तैयारी करने के लिए कहता है।
दूसरा दृश्य: दो महीने बाद, जनवरी 1944 में कहानी मधु के शयनकक्ष में स्थानांतरित होती है। कड़ाके की सर्दी में मधु उदास बैठी है। उसकी सहेलियां सुरो और चिन्ती आती हैं और परेशानी का कारण पूछती हैं। मधु बताती है कि बसंत उससे नाराज होकर गया है और कोई खबर भी नहीं ली। मधु उनको अपने पास बुला लेती है तथा अपने पास ही रजाई में बैठने को कहती है। वे बिस्तर गन्दे होने की बात कहती हैं किन्तु मधु उनसे सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार करती है और आग्रह पूर्वक रजाई में ही बैठा लेती है। वह मंगला से उनके लिए चाय बनवाती है तथा बिस्तर पर बैठकर उनके साथ चाय पीती है। कुछ देर रुककर वे चली जाती हैं।
वह मंगला से कहती है कि बसंत को खुश करने के लिए उसने खुद को बदल लिया है, अब वह साफ-सफाई के प्रति उतनी सख्त नहीं है। तभी बसंत अचानक आ जाता है। मधु खुशी से उसका स्वागत करती है और उसे बताती है कि वह उसके स्वभाव के अनुसार ढल गई है। बसंत उसे आश्वस्त करता है कि वह उससे नाराज नहीं है और उसने पत्र भी लिखा था। सर्दी के बावजूद बसंत हाथ-मुंह धोने जाता है। लौटकर वह उसी तौलिये से मुंह पोंछ लेता है, जिसका इस्तेमाल कुछ देर पहले सुरो और चिन्ती ने किया था। यह देख मधु फिर से क्रोधित हो जाती है और उनके बीच बहस छिड़ जाती है। कहानी इसी तनावपूर्ण वातावरण में समाप्त होती है।
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