रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर शंकर का चरित्र चित्रण: जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में शंकर का चरित्र समाज में व्याप्त समस्या
रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर शंकर का चरित्र चित्रण कीजिए
शंकर का चरित्र चित्रण: जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में शंकर का चरित्र समाज में व्याप्त समस्याओं का एक दर्पण है। वह इस एकांकी का गौण पात्र है। जहाँ उमा का चरित्र साहसी, सशक्त और आत्मसम्मान से लबरेज है, वहीं शंकर का चरित्र एक कमजोर, अपरिपक्व और चरित्रहीन युवक के रूप में सामने आता है। उसके चरित्वर की विशेषताएं निम्हनलिखित हैं:-
कमजोर और अनुत्तरदायी: शंकर का चरित्र कमजोर और अनुत्तरदायी होने के कारण कहानी में एक दयनीय स्थिति में प्रस्तुत होता है। वह अपने पिता के आश्रित के रूप में दिखाई देता है, जो विवाह के लिए लड़की देखने की प्रक्रिया में भी अपने विचार व्यक्त करने में असमर्थ है। जब उमा उनके चरित्र का पर्दाफाश करती है, तो वह न सिर्फ शर्म से झुक जाता है बल्कि अपने कृत्यों के लिए कोई जवाबदेही लेने में भी असफल रहता है। उसकी यह चुप्पी न केवल कायरता का बल्कि परिपक्वता की कमी का भी संकेत देती है।
अपरिपक्वता और सामाजिक अनाचार: शंकर का चरित्र समाज में व्याप्त अनाचार और परिपक्वता की कमी को भी उजागर करता है। लड़कियों के हॉस्टल के आस-पास घूमना और उन्हें परेशान करना उसके चरित्र की नैतिक पतन का प्रमाण है। यह दृश्य समाज में निहित उन रूढ़ियों पर भी प्रहार करता है, जो लड़कियों को वस्तु के रूप में देखती हैं, जिनके सम्मान और भावनाओं को कोई महत्व नहीं दिया जाता।
विवाह प्रथा की आलोचना: शंकर का चरित्र विवाह प्रथा की उन जड़ जम चुकी परंपराओं पर भी व्यंग्य करता है, जहाँ लड़कियों को उनकी शिक्षा, खूबसूरती और घरेलू गुणों के आधार पर परखा जाता है। उमा द्वारा शंकर के चरित्र के खुलासे के बाद वकील गोपाल प्रसाद की प्रतिक्रिया भी इसी प्रथा की आलोचना है। उनका भागने का प्रयास इस बात को रेखांकित करता है कि समाज केवल लड़कियों की जांच-पड़ताल करता है, जबकि लड़कों के चरित्र और व्यवहार को नजरअंदाज कर देता है।
रीढ़ की हड्डी का प्रतीक: उमा के अंतिम वाक्य, "जाए! पता लगाइए कि आपके बेटे की रीढ़ की हड्डी है या नहीं," शंकर के चरित्र का सार प्रस्तुत करते हैं। "रीढ़ की हड्डी" न केवल शारीरिक संरचना का बल्कि आत्मविश्वास और नैतिकता का भी प्रतीक है। शंकर का चरित्र इन दोनों गुणों से रहित है। वह न तो अपने कार्यों के लिए खड़ा होने का साहस रखता है और न ही उचित व्यवहार करने की रीढ़ की हड्डी उसमें दिखाई देती है।
निष्कर्ष:
शंकर का चरित्र समाज में व्याप्त कमजोरियों और नैतिक पतन का द्योतक है। वह एकांकी के केंद्रीय विषय - विवाह पूर्व लड़कियों के चयन की प्रक्रिया में व्याप्त भेदभाव को मजबूत करता है। यह चरित्र पाठकों को सामाजिक रूढ़ियों पर प्रश्न उठाने और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
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