‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर मुगल सम्राट अकबर का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित ‘राजमुकुट’ नाटक में मुगल सम्राट अकबर एक महत्वपूर्ण पा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर मुगल सम्राट अकबर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
मुगल सम्राट अकबर का चरित्र-चित्रण: श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित ‘राजमुकुट’ नाटक में मुगल सम्राट अकबर एक महत्वपूर्ण पात्र है। नाटककार ने अकबर को केवल एक योद्धा के रूप में ही चित्रित नहीं किया है, बल्कि उनके चरित्र को जटिल और बहुआयामी बनाया है। वह महत्वाकांक्षी सम्राट है, जो विशाल साम्राज्य का निर्माण करना चाहता है। अकबर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं—
1. कुशल कूटनीतिज्ञ
अकबर एक सफल सम्राट होने के साथ ही एक कुशल कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी नेता भी हैं। युद्धक्षेत्र में बाहुबल से अधिक, वह कूटनीति का सहारा लेना पसंद करते हैं। शक्तिसिंह के क्रोध को भड़काकर उसे मेवाड़ के विरुद्ध खड़ा करना उनकी चतुराई का ही परिचायक है।
2. महत्त्वाकांक्षी सम्राट
अकबर की महत्वाकांक्षा उन्हें केवल दिल्ली के सुल्तान बनकर नहीं रहने देती। उनका दृष्टि मेवाड़ पर भी है, जिसे अपने साम्राज्य में मिलाना उसका लक्ष्य है। लेकिन वे जानते हैं कि बलपूर्वक विजय प्राप्त करना कठिन है। इसलिए वे चतुराई से शक्तिसिंह के क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला को भड़काते हैं और उसे मेवाड़ को कमजोर करने का हथियार बना लेते हैं। स्वयं अकबर के शब्दों में, "मैं अपने जीवन के उस अभाव को पूरा करूंगा, मेवाड़ के गौरवमय भाल को झुकाकर अपने साम्राज्य की प्रभुता बढ़ाऊँगा।"
3. मानवीयता की गहरी समझ
अकबर केवल एक कुशल शासक ही नहीं हैं। उनके पास मानवीय स्वभाव को समझने की गहरी दृष्टि भी है। नाटक में वह शक्तिसिंह, मानसिंह और राणा प्रताप के चरित्र को बारीकी से परखते हैं और उनकी ताकत और कमजोरियों को भलीभांति समझते हैं। "एक प्रताप है, जो मातृभूमि के लिए प्राण हथेली पर लिये फिरता है और एक तुम हो, जो मातृभूमि के सर्वनाश के लिए खाइयाँ खोदते फिरते हो।"
4. सद्गुणों का सम्मान
अकबर का व्यक्तित्व सिर्फ राजनीति और युद्धनीति तक सीमित नहीं है। वह अपने विरोधियों के भी सद्गुणों की सराहना करने से नहीं चूकते। उनके भीतर मानवीयता भी मौजूद है। वह अपने शत्रु राणा प्रताप की वीरता और अडिग संकल्प को सराहना करते हैं। नाटक में एक जगह वह राणा प्रताप को "मानवता की अखण्ड ज्योति" तक कहकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। यह गुण उन्हें एक महान नेता के रूप में स्थापित करता है।
5. सांप्रदायिक सद्भावना के समर्थक
अकबर धर्म के नाम पर होने वाले संघर्षों को खत्म करना चाहते हैं। 'दीन-ए-इलाही' मत की स्थापना इसी विचारधारा का प्रतीक है। नाटक में वह राणा प्रताप से मित्रता का हाथ बढ़ाते हुए हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते हैं। अकबर महाराणा से कहते हैं, "“हमारा और आपका मिलन ! यह दो व्यक्तियों का मिलन नहीं महाराणा ! दो धर्म-प्रवाहों का मिलन है, जिससे इस देश की संस्कृति सुदृढ़ तथा पुष्ट होगी।" वह मानते हैं कि साम्राज्य की मजबूती विभिन्न धर्मों के लोगों के सहयोग से ही संभव है।
निष्कर्ष:
'राजमुकुट' नाटक के माध्यम से अकबर का चरित्र एक महत्वाकांक्षी सम्राट, दूरदर्शी नेता, कुशल रणनीतिकार और कूटनीतिज्ञ के रूप में सामने आता है। लेकिन साथ ही, वह मानवीयता को समझने वाला, शत्रु के पराक्रम का सम्मान करने वाला और धार्मिक सद्भावना का पक्षधर भी है। नाटककार ने अकबर के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उकेर कर उसके वास्तविक स्वरूप को दर्शाने का प्रयास किया है।
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