राजमुकुट नाटक में आधार पर चन्दावत’ का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित ऐतिहासिक नाटक 'राजमुकुट' में राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत का चर
राजमुकुट नाटक में आधार पर चन्दावत का चरित्र-चित्रण कीजिए।
चन्दावत’ का चरित्र-चित्रण: श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित ऐतिहासिक नाटक 'राजमुकुट' में राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत का चरित्र आदर्श देशभक्त, कर्मठ राज पुरोहित और निडर सलाहकार के रूप में उभर कर सामने आता है. उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ नाटक में प्रमुख रूप से दर्शाई गई हैं:
अटूट देशभक्ति: चन्दावत जी मेवाड़ और भारत के प्रति अगाध प्रेम रखते हैं। उनके सभी कार्य राष्ट्र के हित को ध्यान में रखकर ही किए जाते हैं। नाटक के प्रथम अंक में राणा जगमल के विलासी जीवन से असंतुष्ट होकर वे उन्हें राजधर्म का पालन करने की सीख देते हैं। साथ ही, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि मेवाड़ का मुकुट वीर और सक्षम शासक राणा प्रताप को ही सौंपा जाए।
निडरता और सत्यनिष्ठा: चन्दावत जी सच बोलने से कभी नहीं डरते। चाहे वह बात कितनी भी कठोर क्यों न हो। वे राणा जगमल को उनकी गलतियों का स्मरण कराने में संकोच नहीं करते। यह उनकी निष्ठावान और सत्यनिष्ठ राजपुरोहित होने का प्रमाण है।
अदम्य वीरता: चन्दावत केवल सलाहकार या राजपुरोहित ही नहीं बल्कि एक वीर योद्धा भी हैं। हल्दीघाटी के युद्ध में वे प्रताप की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ते हैं और अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं। उनकी वीरता नाटक में एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में सामने आती है।
कर्मठता और नीतिज्ञता: चन्दावत जी कर्मठ राज पुरोहित हैं। वे मेवाड़ के हित के लिए निरंतर कार्य करते हैं। साथ ही, वे एक नीतिज्ञ व्यक्ति भी हैं। वे राणा प्रताप को एक कुशल और न्यायप्रिय शासक बनाने में सहायता करते हैं।
समझदारी और दूरदर्शिता: नाटक में कई जगह चन्दावत जी की दूरदर्शिता का भी पता चलता है। उदाहरण के लिए, वे राणा प्रताप को मानसिंह से मिलने से मना करते हैं, जो बाद में अकबर से जा मिलता है। उनकी समझदारी का ही परिचय है कि वे राणा प्रताप को एक योग्य उत्तराधिकारी के रूप में पहचानते हैं।
निष्कर्ष:
राष्ट्रनायक चन्दावत 'राजमुकुट' नाटक में एक आदर्श और प्रेरणादायक चरित्र हैं। वे अपने देशभक्ति, निडरता, वीरता, कर्मठता और नीतिज्ञता से पाठकों और दर्शकों को प्रभावित करते हैं। उनका चरित्र हमें सिखाता है कि हमें सदैव अपने देश के हित को सर्वोपरि रखना चाहिए, सत्य बोलने से डरना नहीं चाहिए और वीरता एवं नीति के साथ जीवन जीना चाहिए।
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