राजेन्द्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास 'सारा आकाश' के आधार पर बाबू जी का चरित्र-चित्रण कीजिए: राजेन्द्र यादव के उपन्यास 'सारा आकाश' में बाबू जी एक जटिल औ
राजेन्द्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास 'सारा आकाश' के आधार पर बाबू जी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
बाबू जी चरित्र-चित्रण: राजेन्द्र यादव के उपन्यास 'सारा आकाश' में बाबू जी एक जटिल और विवादास्पद चरित्र हैं। बाबू जी, धीरज, समर, अमर, कुँवर और मुन्नी के पिता हैं। वे पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक बदलावों के बीच संघर्ष करते हैं। वे एक ऐसे पिता के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं जो अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं, लेकिन अपनी रूढ़िवादिता और क्रोध के कारण वे गलतफहमी और संघर्ष पैदा करते हैं। बाबू जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. रूढ़िवादी सोच और क्रोध:
बाबू जी रूढ़िवादी सोच के धनी हैं। वे समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं। बाबू जी का मानना है कि विवाह जल्दी हो जाना चाहिए और महिलाओं को घर के कामों तक सीमित रहना चाहिए। वे अपनी बेटी मुन्नी की पढ़ाई बीच में ही रोक देते हैं और उसका विवाह कर देते हैं। समर को भी वे इसी सोच के आधार पर शादी के लिए तैयार करते हैं।
उनका क्रोध भी रूढ़िवादी सोच से जुड़ा है। जब कोई उनकी रूढ़ियों को चुनौती देता है या उनकी बात नहीं मानता है, तो वे क्रोधित हो जाते हैं। वे समर को अक्सर पीटते हैं और प्रभा को भी उसके घूँघट न निकालने के लिए डांटते हैं। प्रभा जब धूप में बाल सुखाने छत पर जाती है तो बाबूजी ऐसा ही क्रोध उस पर करते हैं- “अरे तुम से पर्दा नहीं होता तो मत करो। छाती पर पत्थर रखकर उसे भी सह लेंगे, लेकिन बेशर्मी की ऐसी हद तो मत करो। ऊपर जाकर सिर धोते समय तुम्हें दीखा नहीं कि चारों तरफ लोग क्या कहेंगे ...?"
2. आर्थिक तंगी और निराशा:
बाबू जी आर्थिक रूप से तंगी का सामना करते हैं। उनकी पेंशन और बेटे धीरज की तनख्वाह से परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है। यह उनकी निराशा और चिड़चिड़ापन का कारण बनता है। बाबू जी कहते हैं- “धीरज की माँ, बड़ा खर्च होने लगा है। बेचारा धीरज भी क्या करे? करते-करते तो मरा जाता है उसका कसूर भी क्या ? कुनबा छोटा है ? अब तो जैसे-तैसे समर इण्टर करके कहीं लग लगा जाए तो बेचारे को साँस आए।" जब समर बाबू जी से अपनी फीस जमा करने के लिए उनसे 25 रुपये माँगता है तो वह खीझ से भर उठते हैं।
3. कठोर स्वभाव:
बाबू जी का स्वभाव कठोर और क्रोधी है। वे अपनी बातों को मनवाने के लिए डांट-फटकार और मारपीट का सहारा भी लेते हैं। समर को बचपन में उनकी मार सहनी पड़ी थी और प्रभा को भी उनके डर का सामना करना पड़ता है।
4. वात्सल्य और दायित्वबोध:
रूढ़िवादी सोच के बावजूद, बाबू जी में वात्सल्य और दायित्वबोध की भावना भी प्रबल है। वे अपने बच्चों से प्यार करते हैं और उनके भविष्य के लिए चिंतित रहते हैं। वे समर को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उसकी शादी के लिए भी प्रयास करते हैं। वे प्रभा को भले ही कठोर नियंत्रण में रखते हों, पर उनकी संवेदनाएँ प्रभा के साथ हैं। वे समर से प्रभा के प्रति वात्सल्य भाव की चर्चा करते हुए कहते हैं- "बड़ी देर लगा देते हो समर, आखिर बहू खाने को भी तो बैठी रहती है। खाना-वाना खाकर ही घूमने निकल जाया करो न। फिर ठण्डा खाना शरीर को लगता भी तो नहीं है।"
मुन्नी के दारुण दाम्पत्य जीवन के बारे में जानकर वे रो पड़ते हैं। यह उनके वात्सल्य और दायित्वबोध की भावना को दर्शाता है। वे एक जिम्मेदार गृहस्थी हैं जो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
5. दहेज प्रथा का समर्थक
बाबू जी दहेज प्रथा में विश्वास रखते हैं। समर के मामा से बातचीत करते हुए वे अपनी निराशा व्यक्त करते हैं कि उन्हें दहेज में कुछ नहीं मिला। अमर के विवाह के प्रस्ताव पर भी वे दहेज की अपेक्षा रखते हैं। वे स्पष्ट संकेत कहते हैं- “पास फेल तो लगा ही रहता है। इसके लिए कोई जिंदगी रुकती है? हाँ तो चंदन जी, बुरा मानने की बात तो है नहीं समर की शादी की तरह गोल-मोल बात हम इस बार नहीं रखना चाहते। लेन-देन की बात साफ़ होगी...."
निष्कर्ष:
बाबू जी "सारा आकाश" के एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे एक ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो रूढ़िवादी सोच से जूझ रहा है, लेकिन साथ ही उनमें वात्सल्य और दायित्वबोध की भावना भी प्रबल है। उनकी कहानी पाठकों को रूढ़िवादी सोच और सामाजिक बदलावों के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।
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