पुरस्कार' कहानी में मधुलिका का चरित्र चित्रण: जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'पुरस्कार' कहानी में मधुलिका एक महत्वपूर्ण पात्र है। कहानी की विषयवस्तु और मुख
पुरस्कार' कहानी में मधुलिका का चरित्र चित्रण
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'पुरस्कार' कहानी में मधुलिका एक महत्वपूर्ण पात्र है। कहानी की विषयवस्तु और मुख्य भाव को देखते हुए, उसे कहानी की नायिका माना जा सकता है। मधुलिका का चरित्र देशभक्ति, त्याग, स्वाभिमान, परिश्रम और प्रेम जैसे गुणों से युक्त है। आइए, मधुलिका के चरित्र के विभिन्न विशेषताओं को गहराई से समझते हैं: —
1. देशभक्त बालिका:
मधुलिका सिंहमित्र, कोशल के पराक्रमी सेनापति की बेटी है। वह अपने पिता की तरह ही देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है। अपने पिता की मृत्यु के बाद, वह अकेली रह जाती है और एक छोटे से खेत में कृषि करके अपना जीवन-यापन करती है। जब राजा परंपरा के अनुसार उसका खेत लेता है, तो वह बिना किसी प्रतिरोध के उसे सौंप देती है, लेकिन बदले में कोई अन्य भूमि या धन स्वीकार नहीं करती।
2. स्वाभिमानी बालिका:
मधुलिका में स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा है। वह अपनी भूमि के बदले में राजा से न तो दूसरी भूमि स्वीकार करती है और न ही धन। राजकुमार अरुण द्वारा उसकी भूमि वापस दिलाने का प्रस्ताव भी ठुकरा देती है क्योंकि वह किसी की दया या सहानुभूति पर निर्भर नहीं रहना चाहती। आरंभ में वह अरुण के प्रेम प्रस्ताव को भी इसलिए अस्वीकार कर देती है क्योंकि उसे लगता है कि राजकुमार उससे प्रेम नहीं करता, बल्कि उसके प्रति दया दिखा रहा है।
3. परिश्रमी:
मधुलिका अत्यंत परिश्रमी है। पिता की मृत्यु के बाद अनाथ होने पर भी वह किसी की सहायता नहीं लेती। वह अपने छोटे से खेत में मेहनत करके अपना जीवन-यापन करती है। राजकीय सहायता भी स्वीकार नहीं करती। निर्धनतापूर्वक जीवन जीने के लिए वह निर्जन प्रदेश में एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगती है।
4. प्रेमी हृदय की स्वामिनी:
मधुलिका में प्रेम की भावना प्रबल है। प्रथम दृष्टया ही वह राजकुमार अरुण के प्रति मोहित हो जाती है। विद्रोही राजकुमार अरुण के प्रेम में बंधकर वह देशद्रोह करने को भी तैयार हो जाती है।
5. प्रेम और कर्तव्य के बीच द्वंद्व:
प्रेम और कर्तव्य का द्वंद्व: कहानी में मधुलिका के मन में प्रेम और कर्तव्य का द्वंद्व भी चलता रहता है। कहानी की शुरुआत में वह अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखते हुए अपनी जमीन राजा को दान कर देती है। राजकुमार अरुण के प्रेम प्रस्ताव को भी पहले वह स्वीकार नहीं करती। लेकिन बाद में परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं कि वह प्रेम के जाल में फँसने लगती है। मगर कहानी के अंत में वह कर्तव्य के मार्ग पर लौट आती है और अपने प्रेम का बलिदान दे देती है।
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