ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर मिहिरदेव का चरित्र-चित्रण कीजिए। मिहिरदेव का चरित्र-चित्रण: आचार्य मिहिरदेव की महिमामयी तेजस्वी मूर्ति का साक्षात्कार 'ध
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर मिहिरदेव का चरित्र-चित्रण कीजिए।
मिहिरदेव का चरित्र-चित्रण: आचार्य मिहिरदेव की महिमामयी तेजस्वी मूर्ति का साक्षात्कार 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक में एक ही स्थल पर विशेष रूप से होता है, फिर भी दार्शनिक बुद्धि से उनकी जीवन-परख निर्भीकता सरल प्राकृतिक जीवन, अनुराग तथा व्यक्तित्व की अमिट छाप सामाजिकों के हृदय पर डाल जाता है। मिहिरदेव ऐसे सात्विक विचार और आचरण वाले पुरुष का जीवनान्त बड़ी ही दुःखद और शोचनीय स्थिति में हो जाता है। वे कोमा के साथ ध्रुवस्वामिनी के पास शकराज का शव लेने जाते हैं। वहीं से लौटते हुए मार्ग में रामगुप्त के आदेश से उसके सैनिक कोमा और मिहिरदेव को शक जाति का होने के कारण क्रूरतापूर्वक मार डालते हैं। कोमा, मिहिरदेव की पालिका पुत्री है। उस पर उनका सहज अनुराग है। उसकी कामना पूर्ति में मिहिरदेव का शरीर अर्पण कर देना उनके व्यक्तित्व को ऊँचा उठा देता है। परमार्थ-हित आत्म- बलिदान मानव-जीवन को गौरव प्रदान करता है। इसे नाते मिहिरदेव का चरित्र पूर्णतया गौरव मण्डित है।
मिहिरदेव के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. आत्मसम्मान की दीप्ति से परिपूर्ण - आचार्य मिहिरदेव आत्मसम्मान की ज्योति से पूर्णत: शोभित हैं। वे शकराज के सामने भी आत्मसम्मान को बनाये रखते हैं और जब उनकी ही पोषित पुत्री कोमा उनके साथ चलने में आनाकानी करती है तो उनका आत्मसम्मान का भाव मुखर हो उठता है - "पागल लड़की ! अच्छा मैं फिर आऊँगा। तू सोच ले, विचार ले (जाता है)।" ध्रुवस्वामिनी के पास जब कोमा अपने प्रेमी शकराज का शव माँगने के लिए जाती है और बदले में उसे कठोर उत्तर मिलता है तो मिहिरदेव का आत्मसम्मान जाग उठता है और वे कोमा को लगभग डाँटते हुए कहते हैं- “पागल लड़की हो चुकी न ? अब भी तू न चलेगी।" मिहिरदेव के चरित्र की यह विशेषता कि वे आत्मसम्मानी हैं- स्पष्ट उभरकर हमारे समक्ष आती है ।
2. न्याय के समर्थक और अन्याय के विरोधी - मिहिरदेव के चरित्र की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे न्याय पक्ष का प्रबल समर्थन करते हैं और दूसरी ओर अवसर पड़ने पर अन्याय का विरोध भी करते हैं। कोमा का तिरस्कार करके शकराज ध्रुवस्वामिनी को अपने निवास में बुलाना चाहता था तो मिहिरदेव ने उसके इस अन्यायपूर्ण कृत्य का विरोध किया और कोमा के न्यायपूर्ण पक्ष का समर्थन किया। वे निर्भीक और स्पष्ट स्वरों में शकराज को उत्तर देते हैं- "ऐसे काम में तो आपत्ति होनी ही चाहिए राजा ! सभी का सम्मान नष्ट करके तुम भयानक अपराध करोगे, उसका फल क्या अच्छा होगा।"
3. शांति के उपासक - आचार्य मिहिरदेव की हार्दिक इच्छा तो यही है कि विश्व में सर्वत्र शांति रहे, कहीं भी अशांति न रहे। सम्भवत: इसीलिए वे शांति की स्थापना के प्रयास करते दीख पड़ते हैं। कोमा से जो वे अपनी अभिलाषा व्यक्त करते हैं उसमें भी उनकी शांतिप्रियता झलकती है । वे कहते हैं- "हम लोग अखरोट की छाया में बैठेंगे-झरनों के किनारे, दाख के कुंजों में विश्राम करेंगे। जब नीले आकाश में मेघों के टुकड़े, मानसरोवर जाने वाले हंसों का अभिनय करेंगे, तब तू अपनी तकली पर ऊन कातती हुई कहानी कहेगी और मैं सुनूँगा।" उक्त कथन से स्पष्ट पता चला जाता है कि मिहिरदेव शांति के कितने इच्छुक हैं।
4. नारी की महत्ता के समर्थक - नर-नारी के संबंध को आचार्य मिहिरदेव बड़ा महत्व देते हैं । नर नारी पर अत्याचार करे, यह उन्हें सह्य नहीं । कोमा के सम्मान को पद - दलित करने वाला शकराज इसीलिए उनसे फटकार पाता है। वे नारी - सम्मान के समर्थक हैं, इसीलिए शकराज से वे स्पष्ट कहते हैं- "स्त्री का सम्मान नष्ट करके तुम जो भयानक अपराध करोगे, उसका फल क्या अच्छा होगा।"
5. प्रेम की महत्ता के समर्थक - मिहिरदेव प्रेम को महत्व देते हैं, क्योंकि वे प्रेम को नारी हृदय का सर्वोत्तम परिणाम मानते हैं। उनका विश्वास है कि वे हृदय धन्य हैं, जिनमें प्रेम की ज्योति का निवास है, प्रेमपूर्ण हृदय मिला है, वे धन्य हैं और जो प्रेमपूर्ण हृदय को खो देता है, वह बड़ा अभागा है। शकराज के प्रति अपने इस कथन में वे इस धारणा को व्यक्त करते हैं- "इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को खो देना सबसे बड़ी हानि है।" उनका तो विश्वास है - "दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास है।"
6. भविष्यद्रष्टा - आचार्य मिहिरदेव के चरित्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे भविष्यद्रष्टा हैं। शकराज को भविष्य की स्थिति से वे ही अवगत कराते हैं। कोमा जब शकराज के दुर्ग से बाहर निकलने में हिचकिचाती है तो वे प्रकाश में स्थित धूमकेतु को दिखाकर दुर्ग के भीषण भविष्य के बारे में कहते हुए उसे सावधान करते हैं—“तू नहीं मानती । वह देख नील लोहित रंग का धूमकेतु अविचल भाव से इस दुर्ग की ओर कैसा भयानक संकेत कर रहा है।"
वास्तव में उनकी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध होती है। दुर्ग में चंद्रगुप्त के द्वारा शकराज का वध होता है और इस प्रकार वह मारा जाता है।
इस प्रकार आचार्य मिहिरदेव एक सत प्रकृति के निर्लिप्त मनुष्य हैं। वे मानवता को राजनीति से भी ऊपर मानते हैं। उच्च कोटि के संतों में जो गुण होते हैं वे उनमें विद्यमान हैं। इस नाटक में उनका चरित्र संक्षिप्त रूप में ही व्यक्त हुआ है, किन्तु अपने संक्षिप्त रूप में ही उनके चरित्र से दर्शक अभिभूत हुए बिना नहीं रहते ।
ध्रुवस्वामिनी नाटक के अन्य चरित्र चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चंद्रगुप्त का चरित्र-चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर शकराज का चरित्र चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार कोमा का चरित्र-चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक की नायिका ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण कीजिये
COMMENTS