कुहासा और किरण नाटक के आधार पर सुनंदा का चरित्र चित्रण: विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित नाटक "कुहासा और किरण" में सुनंदा एक प्रमुख नारी-पात्र है। वह देशभक्
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर सुनंदा का चरित्र चित्रण
विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित नाटक "कुहासा और किरण" में सुनंदा एक प्रमुख नारी-पात्र है। वह देशभक्ति और सत्यनिष्ठा का प्रतीक है, जो भ्रष्टाचार के घने कोहरे को चीरती हुई निकलती है। सुनंदा के चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
भ्रष्टाचार विरोधी: सुनंदा उन तमाम युवाओं का प्रतिनिधित्व करती है, जो देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। समाज में फैले पाखंडियों का पर्दाफाश करने के लिए वह अमूल्य के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। वह मुखौटाधारी भ्रष्टाचारियों को सीधी चुनौती देते हुए कहती है, "मैं पुकार-पुकार कर कहूंगी कि आप सब भ्रष्ट हैं, नीच हैं, देशद्रोही हैं। आज नहीं तो कल आपको समाज के सामने जवाब देना होगा।"
जागरूक नवयुवती: 25 वर्षीय सुनन्दा केवल कृष्ण चैतन्य की सचिव नहीं, बल्कि समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर रखने वाली जागरूक नागरिक है। वह जानती है कि समाचार पत्र समाज का दर्पण होते हैं और इनमें जनता को सशक्त करने की अपार शक्ति है। सुनन्दा के अपने शब्दों में - "शक्ति-संचालन का सूत्र जितना समाचार-पत्रों के हाथ में है, उतना और किसी के नहीं।"
वाक्पटु: तेजस्वी वाणी और व्यंग्य का शस्त्र: सुनन्दा की वाणी तेजस्वी है और उसका व्यंग्य एक शस्त्र की तरह है। वह अपनी बातों को प्रभावी ढंग से रखती है। उमेशचंद्र और कृष्ण चैतन्य के गठजोड़ को उजागर करते हुए उसका यह कथन गौर करने लायक है - "आकाश जैसे पृथ्वी को आवृत्त किये है, वैसे ही आप उनको (कृष्ण चैतन्य को) आवृत्त किये हैं। आकाश के कारण ही पृथ्वी अन्नपूर्णा होती है।" यह कथन कृष्ण चैतन्य की जनता के ऊपर बनाए गए पाखंड के फरेब को उजागर करता है।
देशद्रोहियों की कट्टर विरोधी: सुनंदा देशद्रोहियों की कट्टर विरोधी है। चाहे वह विपिन बिहारी हो या कृष्ण चैतन्य, वह उनका पर्दाफाश करने से नहीं हिचकिचाती। वह विपिन बिहारी को उनकी असलियत बताती है - "क्या आपको अब भी पता नहीं कि कृष्ण चैतन्य वह नहीं हैं जो दिखाई देते हैं। वह मुखौटाधारी देशद्रोही हैं।"
निडर तथा साहसी: सुनंदा निडर होकर न्याय के लिए लड़ती है)। वह हर उस मौके का फायदा उठाती है, जहाँ वह भ्रष्टाचार का पर्दाफाश कर सके। वह गायत्री द्वारा लिखे गए पत्र को पुलिस को सौंपना चाहती है, क्योंकि इससे भ्रष्टाचारियों की मुश्किलें बढ़ सकती थीं। वह उमेशचंद्र अग्रवाल को ललकारते हुए कहती है, "मुझे घिनौने चेहरों से सख्त नफरत है। गायत्री माँ के बलिदान के पीछे जो उदात्त भावना है, वह जनता तक पहुँचनी ही चाहिए।"
अमूल्य की सहयोगी: सुनन्दा, अमूल्य के संघर्ष में उसकी मजबूत सहयोगी है। वह उसकी लाचारी को समझती है और जब उसे झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया जाता है, तो अन्याय के खिलाफ लड़ने में उसका साथ देती है।
"कुहासा और किरण" नाटक में सुनन्दा का चरित्र प्रगतिशीलता, साहस, देशभक्ति और न्यायप्रियता का प्रतीक है। वह उन नवयुवतियों की प्रेरणा बनती है जो समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने और सकारात्मक बदलाव लाना चाहती हैं।
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