कुहासा और किरण नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र चित्रण: विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित "कुहासा और किरण" नाटक में कृष्ण चैतन्य एक ऐसा पात्र है जो अप
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र चित्रण
विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित "कुहासा और किरण" नाटक में कृष्ण चैतन्य एक ऐसा पात्र है जो अपने नकारात्मक स्वभाव के कारण नाटक का खलनायक बन जाता है। वह अवसरवादी, स्वार्थी, भ्रष्ट, मित्रद्रोही होने के साथ ही चतुर, दूरदर्शी, प्रभावशाली और कुशल वक्ता भी है। कृष्ण चैतन्य के चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
अवसरवादी: कृष्ण चैतन्य एक पक्का अवसरवादी है। वह अपने स्वार्थ के लिए गिरगिट की तरह रंग बदल सकता है। पहले वह अंग्रेजों का दलाल बनकर काम करता है, फिर कांग्रेसी नेता बन जाता है। उसके लिए सिर्फ अपना फायदा मायने रखता है, देशहित या समाजसेवा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती।
देशद्रोही: "मुलताने षड्यन्त्र" की मुखबिरी करके कृष्ण चैतन्य देशद्रोही साबित हो जाता है। वह न सिर्फ देश के साथ गद्दारी करता है, बल्कि समाज को भी धोखा देता है। इस कारण शेष चार साथियों चन्द्रशेखर, राजेन्द्र, चन्दर, तथा हाशमी को कठोर कारावास मिला।
पाखंडी: कृष्ण चैतन्य एक पाखंडी नेताहै। वह देशसेवा की बातें करता है, लेकिन असल में धन, दौलत और शक्ति ही उसका लक्ष्य है। सुनन्दा के शब्दों में उसकी असलियत स्पष्ट है - "आप मुखौटा लगाये एक देशद्रोही हैं।"
भ्रष्टाचारी: कृष्ण चैतन्य भ्रष्टाचार का प्रतीक है। वह ब्लैकमेलिंग, रिश्वतखोरी और अन्य भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त है। उसके लिए नैतिकता या कानून का कोई मोल नहीं है। अपनी वास्तविकता को प्रकट हुआ देख कृष्ण चैतन्य, अमूल्य को फँसाने का प्रयास करता है। यातनाओं के कारण अमूल्य आत्महत्या करने का भी प्रयास करता हैं।
मित्रद्रोही: कृष्ण चैतन्य अपने दोस्तों के प्रति भी विश्वासघात करता है। वह अपने साथियों की मुखबिरी करके उन्हें पकड़वा देता है। उसकी मित्रद्रोही प्रवृत्ति दर्शाती है कि वह किसी पर भी भरोसा नहीं करता और केवल अपनी रक्षा के बारे में सोचता है।
प्रभावशाली व्यक्तित्व: कृष्ण चैतन्य का प्रभावशाली व्यक्तित्व है। उसकी वाक्पटुता और चालाकी के कारण लोग उससे प्रभावित होते हैं। उसके इसी गुण के कारण सरकार व प्रशासन पर उसका पर्याप्त प्रभाव है।
दूरदर्शी: कृष्ण चैतन्य दूरदर्शी व्यक्ति है। वह जानता है कि भविष्य में क्या होगा और उसी के अनुसार योजना बनाता है। अपनी इसी दूरदर्शिता के कारण ही वह अपना नाम ‘कृष्णदेव’ से बदलकर ‘कृष्ण चैतन्य’ रख लेता है। विपिन बिहारी के यहाँ अमूल्य की नियुक्ति उसकी दूरदर्शिता का ही परिचायक है।
नाटक के अंत में जब गायत्री की मौत हो जाती है और कृष्ण को अपने किए का पछतावा होता है, तब वह कहता है, "चलिए टमटा साहब, मैंने देश के साथ जो गद्दारी की है, उसकी सजा मुझे मिलनी चाहिए।" यह पछतावा भले ही नाटकीय लगे, लेकिन यह दर्शाता है कि कृष्ण चैतन्य के भीतर कहीं ना कहीं अच्छाई की एक किरण बाकी है।
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