खून का रिश्ता कहानी का सारांश: 'खून का रिश्ता' कहानी के लेखक भीष्म साहनी हैं। चाचा मंगलसेन भतीजे वीरजी की सगाई में जाने के स्वप्न में मग्न थे कि नौकर
खून का रिश्ता कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए
'खून का रिश्ता' कहानी के लेखक भीष्म साहनी हैं। चाचा मंगलसेन भतीजे वीरजी की सगाई में जाने के स्वप्न में मग्न थे कि नौकर सन्तू ने उनकी भावनाओं पर यह कहकर तुषारापात कर दिया कि वे सगाई के लिए नहीं ले जाये जाऐगें। ऊपर रसोईघर में बहस चल रही थी कि वीरजी की सगाई का कार्यक्रम क्या होगा ? वीरजी ने अपने बाबूजी से दो टूक कह दिया था कि सगाई में बाबूजी के अतिरिक्त कोई नहीं जायेगा और सवा रुपये के शगुन के साथ सगाई सम्पन्न हो जायेगी। मंगलसेन के आग्रह पर बाबूजी उसे साथ ले जाने पर सहमत हो गये। अब मंगलसेन के बारे में व्यवस्थित रूप से जानना आवश्यक है। मंगलसेन वीरजी और मनोरमा के दूर के चाचा हैं जो कभी फौज में रह चुके हैं और आज भी यथासंभव उसी फौजी वेशभूषा में रहना पसन्द करते हैं। वीरजी के धनिक पिता गाहे-बगाहे मंगलसेन का अपमान करते रहते हैं और उनकी हैसियत नौकर से ज्यादा नहीं आँकते। आज भी उन्हें मंगलसेन की आवश्यकता भाई के तौर पर कम सामान ढोने वाले नौकर के तौर पर ज्यादा थी। मंगलसेन की कायाकल्प की गयी और बड़े चाव के साथ वे बाबूजी के साथ वीरजी की सगाई लेने गये। वहाँ भी चाचा मंगलसेन की खूब आवभगत हुई और उन्होंने अभिभावक के तौर पर लड़की के बारे में पूछ-ताछ भी करते हैं। बाबूजी अपनी सवा रुपये की माँग समारोहपर्यन्त दोहराते रहते हैं और अन्ततः चाँदी की थाल, चाँदी की तीन कटोरी तथा चम्मच के शगुन के साथ बाबूजी तथा मंगलसेन सगाई सम्पन्न करा कर वापस घर लौटते हैं। घर लौटते ही मनोरमा चाचा मंगलसेन द्वारा ढोकर लाये गये तिलक के सामान पर झपट पड़ती है जिसकी पड़ताल में चाँदी का एक चम्मच गायब मिलता है। बिना किसी जाँच पड़ताल के इसका इल्जाम चाचा मंगलसेन के माथे मढ़ दिया जाता है और इसी उधेड़बुन में चाचा मंगलसेन झूठे आरोप को सहन न कर पाने के कारण बेहोश हो जाते हैं। तभी वीरजी की ससुराल से एक लड़का गिरा हुआ चाँदी का चम्मच वापस करने आता है और इस भूल की माफी माँग कर चला जाता है। सन्तू पंखा झलकर चाचा की बेहोशी दूर करने का असफल प्रयास कर रहा है- इसी बिन्दु पर कहानी समाप्त होती है।
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