ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण कीजिये: जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक "ध्रुवस्वामिनी" की नायिका, ध्रुवस्वामिनी, हिंदी साहित्य में एक विद्रोही नारी की
ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण कीजिये (Dhruvswamini ka Charitra Chitran)
- ध्रुवस्वामिनी के चरित्र की दो विशेषताएं बताइए
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक "ध्रुवस्वामिनी" की नायिका, ध्रुवस्वामिनी, हिंदी साहित्य में एक विद्रोही नारी की अविस्मरणीय छवि है। जहाँ उनके पति रामगुप्त कायर, विलासी और मद्यप थे, वहीं ध्रुवस्वामिनी एक सच्ची योद्धा थीं, जो अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए हर संघर्ष करने को तैयार थीं। 'प्रसाद' के अपने समय की नारी चेतना की पूरी अनुगूँज उसके चरित्र में मिलती है। ध्रुवस्वामिनी के चरित्र में नारी मन का मनोविज्ञान और आधुनिक युग की बौद्धिक चेतना का बड़ा ही स्वाभाविक मेल हुआ है। ध्रुवस्वामिनी के चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
साहसी: ध्रुवस्वामिनी का जीवन विवाह के पश्चात् ही विषम परिस्थितियों में घिर जाता है। पति रामगुप्त की कायरता और उपेक्षा उनके स्वभिमान पर गहरी चोट करती है। जहाँ एक ओर वह एक रानी के रूप में सम्मान की आकांक्षा रखती हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपमानित दासी जैसा व्यवहार सहना पड़ता है। किंतु ये परिस्थितियां उनके साहस को कुचल नहीं पातीं, बल्कि और प्रज्वलित करती हैं। शकराज को सौंपने के आदेश पर वह हार मानने वाली नहीं है। वह विद्रोह का बिगुल बजाती है और स्वयं अपनी रक्षा का बीड़ा उठाती है। आत्महत्या का प्रयास उनकी असहायता नहीं, बल्कि परिस्थितियों से लोहा लेने का एक साहसी कदम है। चंद्रगुप्त के आगमन से भले ही उन्हें राहत मिलती है, किंतु यह उनके साहस की ज्वाला को कम नहीं करता।
वाक्चातुर्य: ध्रुवस्वामिनी केवल साहसी ही नहीं, अपितु एक कुशाग्र बुद्धि की धनी भी हैं। रामगुप्त और शकराज जैसे शक्तिशाली पुरुषों को वे अपनी वाणी से चुनौती देती हैं। व्यंग्यबाणों से वह उनकी कमजोरियों को बेधती हैं। रामगुप्त को उनकी उपेक्षा का दंश दिखाने के लिए वे कूटनीतिक सवाल करती हैं, "यह तो बताओ, तुम्हारे राजकुल में नियम क्या है? पहले अमात्य की मंत्रणा सुननी पड़ती है, तब राजा से भेंट होती है?" शकराजा को उपहार स्वरूप भेजे जाने के प्रस्ताव पर उनका गुस्सा तर्कसंगत विद्रोह का रूप ले लेता है। वे कहती हैं, "मैं केवल यही कहना चाहती हूँ कि पुरुषों ने स्त्रियों को अपनी पशु संपत्ति समझ कर उन पर अत्याचार करने का अभ्यास बना लिया है, वह मेरे साथ नहीं चल सकता।"
बौद्धिक चातुर्य: ध्रुवस्वामिनी केवल साहसी ही नहीं बल्कि बुद्धिमान भी हैं। चंद्रगुप्त को शकराज के संधि प्रस्ताव की सूचना देते समय वह अपनी बुद्धि का परिचय देती हैं। चतुराई से यह कहती हैं किं जिस तरह वह उसे उसके पिता के घर से लाया था उसी तरह शक शिविर तक पहुँचाने भी जाना होगा।
आत्मसम्मान से परिपूर्ण: ध्रुवस्वामिनी के चरित्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है उनका अटूट आत्मसम्मान। वे किसी भी परिस्थिति में अपना सम्मान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। रामगुप्त की उपेक्षा सहते हुए भी वे न तो टूटती हैं और न ही विनम्रता का नाटक करती हैं। पत्नी के तौर पर अपने अधिकारों की मांग करती हैं, "मैं जानना चाहती हूँ कि किसने सुख-दुख में मेरा साथ न छोड़ने की प्रतिज्ञा अग्निदेव के सामने की है?" वे स्पष्ट रूप से कहती हैं कि पत्नी को उपहार स्वरूप देना रामगुप्त के लिए स्वयं का अपमान करना है। शकराज के समक्ष भी वे न तो झुकती हैं और न ही भयभीत होती हैं।
अंतर्द्वंद्व: ध्रुवस्वामिनी के चरित्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है उनके भीतर चलने वाला अंतद्वंद्व। चंद्रगुप्त के प्रति उनका प्रेम है, लेकिन विवाह रामगुप्त से हो जाता है। असहाय अवस्था में चंद्रगुप्त की सहायता का प्रस्ताव मिलने पर स्नेह जाग उठता है। सामाजिक बंधनों और हृदय की भावना का द्वंद्व उनके मन में चलता है।
उदाहरण: "कुमार! तुमने वही किया जिसे मैं बचाती रही। तुम्हारे उपकार और स्नेह की वर्षा से मैं भीगी जा रही हूँ। ओह, (हृदय पर उँगली रख कर ) इस वक्षस्थल में दो हृदय है क्या? जब अंतरंग 'हाँ' करना चाहता है, तब ऊपरी मन 'ना' क्यों कहला देता है?"
हालांकि, अंत में वह रूढ़ियों को तोड़कर न्याय की माँग करती हैं और पूछती हैं कि उनकी वास्तविक हैसियत क्या है।
कर्तव्यनिष्ठ: ध्रुवस्वामिनी के हृदय में प्रेम और कर्तव्य का एक द्वंद्व भी चलता रहता है। चंद्रगुप्त के प्रति उनका प्रेम स्पष्ट है, परंतु परिस्थितियों के कारण उनका विवाह रामगुप्त से हो जाता है। रामगुप्त की उपेक्षा के बावजूद क्या वे पत्नी के कर्तव्य का पालन करें? यह सवाल उन्हें सालता है। चंद्रगुप्त की सहायता स्वीकार करना उनके मन में सामाजिक बंधनों को लेकर द्वंद्व खड़ा करता है। किंतु, आखिरकार उनका आत्मसम्मान ही विजयी होता है। वे स्पष्ट रूप से कहती हैं, "मैं दासी नहीं हूँ, जिसे कोई भी खरीद ले। मेरा अपना अस्तित्व है, अपना सम्मान है।" प्रेम और कर्तव्य के द्वंद्व में वे प्रेम को त्याग नहीं करतीं, बल्कि उसे परिस्थितियों से ऊपर उठाकर एक महान बलिदान का रूप देती हैं।
निष्कर्ष:
ध्रुवस्वामिनी हिंदी साहित्य में एक ऐसी नारी की प्रतिमूर्ति हैं, जो सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ती है और अपने अधिकारों के लिए लड़ती है। वे प्रेम करती हैं और बलिदान भी देती हैं। उनका चरित्र न केवल साहस और बुद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आत्मसम्मान ही वह शक्ति है जो हमें किसी भी परिस्थिति में जीवन का सामना करने का बल प्रदान करती है। ध्रुवस्वामिनी की कहानी सदियों बाद भी प्रासंगिक है और पाठकों को अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए प्रेरित करती रहती है।
ध्रुवस्वामिनी नाटक के अन्य चरित्र चित्रण
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चंद्रगुप्त का चरित्र-चित्रण
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