आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर अम्बिका का चरित्र चित्रण कीजिए: मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' में मुख्य नायिका मल्लिका की माँ अम्बिका
आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर अम्बिका का चरित्र चित्रण कीजिए।
- आषाढ़ का एक दिन' नाटक के आधार पर अम्बिका की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' में मुख्य नायिका मल्लिका की माँ अम्बिका है। अम्बिका युवावस्था में ही विधवा हो गयी थी। उसकी एकमात्र पुत्री मल्लिका है। वह जीवन भर अपनी बेटी का भविष्य सुखी बनाने के लिए कार्य करती है। अम्बिका यथार्थ में जीती है और पुत्री को भी कल्पना और भावनाओं के लोक से यथार्थ में लाना चाहती है। अम्बिका का चरित्र चित्रण निम्नलिखित हैं-
यथार्थवादी: अम्बिका जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करने वाली एक यथार्थवादी महिला हैं। उन्होंने जीवन में अनेक संघर्षों का सामना किया है, जिसके फलस्वरूप उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक और यथार्थवादी हो गया है। वह मल्लिका को भी समझाती है कि भावनाओं का काल्पनिक लोक छोड़कर यथार्थ में जीना सीखे।
ममतामयी माँ: अम्बिका का मातृत्व अत्यंत प्रेमपूर्ण और त्यागशील है। मल्लिका उनकी एकमात्र संतान है और वे अपनी सारी ममता और स्नेह उसी पर बरसाती हैं। वे मल्लिका के सुख और दुःख को अपना मानती हैं और उसकी हर संभव सहायता करने के लिए तत्पर रहती हैं। वह मल्लिका को कष्ट नहीं देना चाहती इसलिए घर के सारे काम भी वह खुद करती है।
कर्मवादी: नाटक के प्रारंभ से ही वह कर्म करती हुई ही नजर आती है। मल्लिका से बात करते-करते भी वह अपने कार्य करती रहती है। वह कर्म को भावना से बढ़कर मानती है और मल्लिका को भी आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती हैं।
दूरदर्शी: अम्बिका जीवन के प्रति गहन समझ रखती हैं। उनके अनुभवों ने उन्हें लोगों और परिस्थितियों को बखूबी समझने का हुनर प्रदान किया है। वह कालिदास को जैसा समझती थी, वह वैसा ही निकलता है।
समझाने वाली माँ: अम्बिका अपनी पुत्री से बहुत प्यार करती है, पर साथ ही उसे सही-गलत का भेद भी समझाना चाहती है। वह उसे समझाती है- "तुम जिसे भावना कहती हो वह केवल छलना है और आत्म-प्रवंचना है भावना ने भावना का वरण किया है। ........ मैं पूछती हूँ कि भावना का वरण क्या होता है? उससे जीवन की आवश्यकताएँ किस प्रकार पूरी होती हैं ?"
सच्चाई की पारखी: जीवन को कड़वी सच्चाइयों को झेलने के कारण उसकी दृष्टि सबकी विशेषताओं और कमजोरियों को भाँप लेती हैं। तभी तो वह कहती है- "गाँव के अन्य लोग कालिदास को उतना नहीं जानते जितना मैं। "
इस प्रकार अम्बिका की चारित्रिक विशेषताएँ उसकी परिस्थितियों की देन हैं तथा नाटक को आगे बढ़ाने में सहायक हैं।
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