आषाढ़ का एक दिन' नाटक इतिहास और कल्पना का मिश्रण है, सिद्ध कीजिए: आषाढ़ का एक दिन" नाटक इतिहास और कल्पना का एक अनूठा मिश्रण है। यह नाटक संस्कृत के महा
आषाढ़ का एक दिन' नाटक इतिहास और कल्पना का मिश्रण है, सिद्ध कीजिए।
साहित्य जगत सदियों से इतिहास के धागों से कथा का सुंदर वस्त्र बुनता रहा है। नाटककार अक्सर ऐतिहासिक घटनाओं और पात्रों को लेकर नाट्य रूप देते हैं। ऐसे ही मशहूर नाटककार मोहन राकेश का नाम नाटक जगत में अग्रणीय है। उनके द्वारा रचित "लहरों के राजहंस" और "आषाढ़ का एक दिन" नाटक ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं।
"आषाढ़ का एक दिन" नाटक इतिहास और कल्पना का एक अनूठा मिश्रण है। यह नाटक संस्कृत के महान कवि कालिदास के जीवन से प्रेरणा लेता है। हालाँकि, कालिदास एक ऐतिहासिक व्यक्ति जरूर हैं, उनके जन्म, स्थान और जीवन के प्रारंभिक दौर के बारे में कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। समाज में उनके जीवन के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कुछ उन्हें बंगाली मानते हैं, तो कुछ विदर्भ का रहने वाला, वहीं कुछ उन्हें कश्मीरी पंडित बताते हैं। मोहन राकेश ने नाटक में कालिदास को ऐतिहासिक महापुरुष के रूप में कम, बल्कि एक साधारण व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है, जिसमें गुण और अवगुण दोनों विद्यमान हैं। वे किसी विवाद में न पड़ते हुए कालिदास को पर्वतीय क्षेत्र का निवासी बताते हैं, जो संभवतः उज्जयिनी के उत्तर में स्थित हो सकता है।
नाटक में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कल्पना का भी खूबसूरत समावेश किया गया है। प्रियंगुमंजरी के कथन से पता चलता है कि कालिदास के गाँव से दूर तक पर्वतमालाएँ दिखाई देती हैं। साथ ही, नाटक में उल्लिखित औषधियाँ, पर्वतीय श्रृंखलाएँ और हिरणों के बच्चों का वर्णन भी कालिदास के गाँव के वातावरण की कल्पना को साकार करता है। यह विवरण इस बात का संकेत देता है कि कालिदास का गाँव उज्जयिनी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हो सकता है।
इतिहास के कुछ प्रमाण बताते हैं कि कालिदास विक्रमादित्य की राजसभा में नवरत्नों में से एक थे। साथ ही, उनके काव्य में वर्णित वैभव का चित्रण गुप्तकालीन समाज से मेल खाता है। अतः यह तर्कसंगत है कि कालिदास गुप्तकाल के राज्याश्रित कवि रहे होंगे। नाटककार राकेश ने भी इसी तथ्य को नाटक में दर्शाया है। हालाँकि, उन्होंने गुप्त सम्राट का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है, परन्तु दन्तुल का यह कथन कि सम्राट ने "ऋतुसंहार" पढ़ा है और उसकी प्रशंसा भी की है, इस बात का संकेत देता है कि वह गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ही थे।
प्रचलित किंवदंतियों में कालिदास को बचपन में मूर्ख परंतु सुंदर बालक के रूप में चित्रित किया गया है। उनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था और उनका पालन-पोषण उनके मामा ने किया था। मोहन राकेश ने इस तथ्य को अपने नाटक में ज्यों का त्यों स्वीकार किया है। उन्होंने कालिदास को गायें चराते हुए और उपेक्षित जीवन जीते हुए दिखाया है। राकेश यह स्पष्ट करते हैं कि कालिदास का मन गायों को चराने के बजाय मेघों में खोया रहता था।
हालांकि, कुछ किंवदंतियों में कालिदास को अत्यधिक मूर्ख बताया गया है और उनके विवाह का श्रेय आचार्य वररुचि के छल को दिया जाता है। वहीं, मोहन राकेश ने कालिदास को मूर्ख नहीं, बल्कि एक स्थानीय कवि के रूप में चित्रित किया है। नाटक में यह भी बताया गया है कि राजकवि का सम्मान प्राप्त करने से पूर्व कालिदास ऋतुसंहार की रचना कर चुके थे। मोहन राकेश का यह कथन प्रचलित किंवदंतियों से अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है।
इतिहास के पन्नों में कालिदास के अंतिम दिनों को लेकर भी कई कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जीवन के अंतिम समय में उन्होंने राजकुमारी को छोड़ दिया और एक वेश्या के जाल में फंस गए, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। "आषाढ़ का एक दिन" नाटक में कालिदास के जीवन के अंतिम चरणों को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया है। नाटक में केवल इतना बताया गया है कि कालिदास कश्मीर से निराश होकर जब अपनी प्रेमिका मल्लिका के पास लौटते हैं, तो उसे विलोम के साथ देखकर वापस चले जाते हैं। यह संभव है कि उनके जीवन का अंत किसी धोखे या जाल में फंसकर हुआ हो।
मोहन राकेश ने नाटक की रचना के लिए कालिदास से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों और साहित्यिक स्रोतों का सहारा लिया। उन्होंने इन तथ्यों को आधार बनाकर अपनी कल्पना का रंग भरते हुए एक भावनात्मक नाटक की रचना की। नाटक में कालिदास, प्रियंगुमंजरी और मातुल के अतिरिक्त अन्य पात्र काल्पनिक हैं। नाटक की अधिकांश घटनाएँ भी पूर्ण रूप से कल्पना पर आधारित हैं, जैसे- कालिदास और मल्लिका की प्रेम कहानी, विलोम और अम्बिका से जुड़ी घटनाएँ, प्रियंगुमंजरी और मल्लिका का मिलन, मल्लिका द्वारा विलोम की कन्या को जन्म देना, और कालिदास व मल्लिका की अंतिम भेंट।
हालाँकि, मोहन राकेश ने ऐतिहासिक और काल्पनिक तत्वों को इस कुशलता से नाटक में पिरोया है कि उन्हें अलग-अलग पहचानना कठिन हो जाता है। इसी वजह से "आषाढ़ का एक दिन" को न तो पूरी तरह से ऐतिहासिक और न ही पूरी तरह से काल्पनिक नाटक कहा जा सकता है। यह नाटक इतिहास और कल्पना के सुंदर सम्मिलन का एक बेजोड़ उदाहरण है। राकेश जी ने कालिदास के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर कर दर्शकों को उनके जीवन और कृतित्व के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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