अंधेर नगरी नाटक के आधार पर चौपट राजा का चरित्र चित्रण: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने चौपट राजा के माध्यम से तत्कालीन रजवाड़ों के शासकों के चरित्र को अतिरंज
अंधेर नगरी नाटक के आधार पर चौपट राजा का चरित्र चित्रण
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने चौपट राजा के माध्यम से तत्कालीन रजवाड़ों के शासकों के चरित्र को अतिरंजित और अस्वाभाविक ढंग से प्रकट करने का प्रयास 'अंधेर नगरी' में किया है। बिहार के किसी रजवाड़े को संकेत कर के चौपट राजा के चरित्र को गढ़ा गया है। जिसके द्वारा वह तत्कालीन कुछ मूर्ख शासकों की मूढ़ता, दुराचरण, नशे की प्रवृत्ति, विवेकहीनता, अन्याय, दण्ड विधान सनकी ओर झक्की स्वभाव को प्रकट कर सके। इसके माध्यम से अंग्रेजी शासन के भ्रष्ट व्यवहार, अन्याय, शासन व्यवस्था आदि को भी प्रतीकात्मक शिकार बनाया गया है। चौपट राजा वर्ग पात्र है इसलिए अपने वर्ग को अन्य लोगों की अच्छी-बुरी आदतों और स्वभाव को प्रकट करने का वही आधार है। वही इस नाटक का मुख्य पात्र है और उसी की गतिविधियों को प्रकट करने के लिए इसकी कल्पना की गई है। नाटक के आधार पर चौपट राजा की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. विवेकहीनता: चौपट राजा मूर्ख है, विवेकहीन है तथा उसमें सामान्य स्तर की बुद्धि का भी अभाव है। वह किसी भी प्रकार से सामान्य नहीं है। उसे अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य, दोषी - निर्दोषी, अपने-पराए का ज्ञान नहीं है। उसे जो कुछ भी कोई दूसरा व्यक्ति कह देता है वह उसे मान लेता है। वह हर बात पर दूसरों की बुद्धि का सहारा लेखा है। कल्लू बनिए की दीवार गिरने से किसी व्यक्ति की बकरी उसके नीचे कुचली गई और मर गई। मन्दबुद्धि राजा दीवार को ही दरबार में पेश करने का आदेश देता है। दीवार के भाई, पुत्र, दोस्त और सगे-सम्बन्धियों को वह वहां बुलाना चाहता है। इसी संदर्भ में वह कल्लू बनिए, कारीगर, चूने वाला, भिश्ती, कसाई और कोतवाल को दरबार में बुलाया जाता है और निरपराध कोतवाल को फाँसी की सज़ा सुना दी जाती है क्योंकि सभी अपना-अपना अपराध दूसरों के सिर मड़ते जाते हैं। मूर्ख और अविवेकी राजा अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए अन्त में स्वयं ही फाँसी के फंदे पर जा खड़ा होता है ताकि वह उस घड़ी मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग जा सके।
2. नशेबाज: चौपट राजा नशा करने वाला व्यक्ति है। नशे में चूर होने की अवस्था में उसे कुछ भी अच्छा-बुरा नही सूझता। दरबार में वह नशे की अवस्था में विराजमान है और तब भी बार-बार शराब पीना चाहता है। राज सभा में जब एक नौकर उसे पान देना चाहता है तो नशे के कारण वह नहीं समझ पाता कि वह क्या चाहता है। नशा मानव-बुद्धि को कुण्ठित कर देता है। इस अवस्था में उसकी इन्द्रियां ठीक प्रकार से काम नहीं कर पातीं। वह कहना कुछ चाहता है और कहता कुछ है। शराब के नशे में चौपट राजा बकरी को बरकी, लरकी, कुबरी आदि नामों से पुकारता है। वह कल्लू को मल्लू कहता है। तो चूने वाले चुन्नीलाल और खैर-सोपाड़ी चूने वाला कह कर पुकारता है। कहीं-कहीं तो वह पूरा-पूरा वाक्य ग़लत बोल जाता है। क्योंकि नशे ने उसकी बुद्धि कुण्ठित कर दी है। जैसे--
- क्यों बे भिश्ती ! गंगा-जमुना की किश्ती ! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई ?
- कयों बे कोतवाल ! तैने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गडरिए ने घबराकर बड़ी भेड़ बेची जिससे बकरी गिर कर कल्लू बनिया दब गया ?
3. निर्णय विहीनता: चौपट राजा मूर्ख है और उसकी अपनी बुद्धि काम नहीं करती इसलिए वह मन्त्रियों के हाथ की कठपुतली है। वह उसे जैसे नचाना चाहते हैं वह वैसे ही नाचता है। मंत्री के मुख से निकली बात ही वह पूरी करता है। नाटक में गड़रिए की बात सुनकर जब मन्त्री को लगता है कि मूर्ख राजा सारे नगर को ही कहीं फूंक देने या फाँसी पर लटका देने का आदेश न दे दे तो उसका पूरा ध्यान कोतवाल की ओर मोड़ देता है जिस कारण कोतवाल को फाँसी की सज़ा सुना दी जाती हैं।
4. अव्यवहारिकता: राजा चौपट पूर्ण रूप से अव्यवहारिक है। वह नहीं जानता कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। वह उल्टी-सीधी बातें करता है, तर्कहीन संवाद रचता है, मूर्खो सी चेष्टाएं करता है और तरह-तरह की मुख मुद्राएं बनाता है। अपनी अव्यवहार कुशलता के कारण ही वह स्वयं को फाँसी के तख्ते पर खड़ा कर देता है। उसके व्यवहार और स्वभाव को कोई नहीं समझता।
5. अव्यवस्था: किसी भी राज्य में राजा को ही न्याय अन्याय का निर्णय करना होता है लेकिन चौपट राजा को न्याय-अन्याय की कोई समझ नहीं है। एक तो वह मूर्ख है और दूसरा सदा शराब के नशे में चूर रहता है— एक करेला दूसरा नीम चढ़ा। बकरी मरी दीवार गिरने से और फाँसी की सज़ा सुनाई गई कोतवाल को। कोतवाल को इसलिए छोड़ दिया गया कि उसकी गर्दन पतली है जो फाँसी के फंदे में नहीं आती और बेकसूर गोवर्धन दास को फाँसी पर इसलिए लटकाने का निर्णय किया गया क्योंकि उसकी गर्दन मोटी है और फंदे में पूरी आ जाती है। नगर के लोग उसकी न्याय व्यवस्था से सदा डरते रहते हैं क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब उन पर मुसीबत आ जाए। एक प्यादा गोवर्धनदास को इस विषय में कहता है, “नगर भर में राजा के न्याय के डर से कोई मुटाता ही नहीं।" चौपट राजा का न्याय किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है।
6. अशिष्टता: चौपट राजा को छोटी-छोटी बात पर अकारण गाली देने की आदत है। गुस्से में ही नहीं बल्कि सामान्य और सहज स्थिति में भी वह गाली देता रहता है। अपने नौकर को वह दुष्ट, लुच्चा, पाजी आदि गालियां देता है जबकि उसका दोष नहीं था। बिना किसी कारण वह उसे कोड़ों की सज़ा सुना देता है।
7. डरपोक: चौपट राजा बहुत डरपोक है। वह तो अपने साये से भी डरने वाला है। राजसभा में जब एक सेवक ने उसे चिल्ला कर कहा था, "पान खाइए, महाराज !" तो वह यह समझकर सुपनखा आई है-- अपना सिंहासन छोड़ कर भाग खड़ा हुआ था और मन्त्री ने उसे समझा कर वापिस उसके स्थान पर बिठाया था।
8.अन्धविश्वासी: चौपट राजा अन्धविश्वासी है। अन्धविश्वास के कारण ही वह फाँसी के फंदे पर अपनी इच्छा से चला गया था। महन्त जी द्वारा बताई गई शुभ घड़ी में मृत्यु को प्राप्त कर के वह बैकुण्ठ की कामना करता है और मंत्री, कोतवाल आदि से स्पष्ट शब्दों में कह देता है, “चुप रहो, सब लोग। राजा के रहते और कौन बैकुण्ठ जा सकता है। हम को फाँसी चढ़ाओं जल्दी जल्दी। "
वास्तव में राजा चौपट मूर्ख और अविवेक है जिस कारण अन्य सभी दुर्गुण उसमें अपने आप ही आ मिले हैं। उसे किसी भी प्रकार समाज के लिए उपयोगी पात्र नहीं माना जा सकता। उसकी सृष्टि तो मात्र विशेष उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए की गई है।
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