कालजयी लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा अंधेर नगरी नाटक को लिखने का उद्देश्य अंग्रेज़ी शासन के कारण भारत की दुर्दशा को चित्रित करना है। भारतेंदु कहना च
अंधेर नगरी नाटक का उद्देश्य - Andher Nagri Natak ka Uddeshya
कालजयी लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा अंधेर नगरी नाटक को लिखने का उद्देश्य अंग्रेज़ी शासन के कारण भारत की दुर्दशा को चित्रित करना है। भारतेंदु कहना चाहते हैं कि अंग्रेज़ों ने अपनी नीतियों से भारत को अंधेर नगरी बना दिया, न यहाँ पर किसी नियम का पालन किया जाता है, न ही कोई न्याय व्यवस्था है। देश की जनता अंग्रेज़ी व्यवस्था के कुचक्र में फँसी हुई है। इसी वातावरण के संकेत इस नाटक के प्रत्येक दृश्य में हैं। बाज़ार के दृश्य में घासीराम चनेवाला, हलवाई, चूरनवाला, बनिया - ये सब संवादों के माध्यम से स्थितियों पर व्यंग्य करते हैं। कहने को तो सब आवाज़ लगा लगाकर अपना सामान बेच रहे हैं, लेकिन बीच-बीच में उन सब पर व्यंग्य करते हैं, जो निकम्मी शासन व्यवस्था के अंग हैं।
नाटक में दिखाया गया है कि जो नगर दूर से सुंदर दिखता है, वह भीतर से कितना कुरूप हो रहा है। जिस नगर के लोग ऊपर-ऊपर से मालदार लगते हैं, वे भीतर-भीतर से निर्धन हो रहे हैं। इन सबकी ज़िम्मेदार गुलाम बना लेने वाली व्यवस्था है। लेखक के अनुसार जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था तब ऐसी ही अव्यवस्था थी। इस व्यवस्था में सब चीजें टके सेर मिलती हैं। यह अंधेर नगरी है अर्थात् इसमें कोई कानून व्यवस्था नहीं। इसका राजा चौपट है अर्थात् संवेदनहीन, कुछ भी न समझने- बूझने वाला। ऐसी अंधेर नगरी की असलियत को इसमें रहने के जोखिम को महंत जानता है। वह जानता है कि ऐसी व्यवस्था में जहाँ हरेक चीज़ का मोल एक ही है, अर्थात् शरीफ़ और बदमाश में कोई भेद नहीं किया जाता, वहाँ किसी के जुर्म की सजा किसी को भी मिल सकती है। नाटक के अंत में हम ऐसा होते हुए देख भी सकते हैं । इसीलिए महंत गोबरधनदास से पहले ही कह देता है- "ऐसी अंधेर नगरी में हज़ार मन मिठाई मुफ़्त की मिले तो किस काम की ? यहाँ एक क्षण नहीं रहना।" इस अंधेर नगरी की न्याय प्रक्रिया के आडंबर को नाटक में बहुत ही मनोरंजक तरीके से चित्रित किया गया है।
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