देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार पर दो नागरिकों के मध्य संवाद दृश्य: शाम ढलने के समय, एक टूटी-फूटी पार्क की बेंच पर दो बुजुर्ग, रमेश और श्याम, ...
देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार पर दो नागरिकों के मध्य संवाद
दृश्य: शाम ढलने के समय, एक टूटी-फूटी पार्क की बेंच पर दो बुजुर्ग, रमेश और श्याम, चाय की चुस्की ले रहे हैं।
रमेश: (आह भरते हुए) ये चाय भी कितनी फीकी लगती है, श्याम! पहले जैसा स्वाद नहीं रहा।
श्याम: (होंठ हिलाते हुए) स्वाद की तो बात ही छोड़ो रमेश, ये सारा देश ही फीका पड़ गया है। भ्रष्टाचार का जाल फैला है हर तरफ।
रमेश: (गुस्से से) ये तो सच है! सालों बीत गए, सरकारें बदल गईं, पर भ्रष्टाचार का काला धब्बा ज्यों का त्यों लगा है।
श्याम: याद है रमेश, बचपन में स्कूल में पढ़ते थे - "हमारे ईमानदार..." अब वही देश तरसता है ईमानदार नेताओं के लिए।
रमेश: (निराश होकर) कितने सपने देखे थे हमने, कितनी उम्मीदें थीं! पर ये भ्रष्टाचार का दानव हर तरक्की को निगल जाता है।
श्याम: (सिर हिलाते हुए) सच है। अस्पताल में इलाज के लिए रिश्वत, दफ्तर में काम के लिए रिश्वत, पढ़ाई के लिए रिश्वत... ये ज़हर हर जगह घुला हुआ है।
रमेश: कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या भ्रष्टाचार कभी खत्म होगा?
श्याम: (एक लंबी साँस लेते हुए) ये आसान नहीं है, रमेश। ये लड़ाई पीढ़ी दर पीढ़ी लड़नी पड़ेगी। हमें तो बस इतना करना है कि मशाल जलाए रखें, उम्मीद की किरण जगाए रखें।
देश में बढ़ते भ्रष्टाचार पर दो नागरिकों के बीच संवाद लिखिए
रमेश: (अखबार का पन्ना पलटते हुए) ये देखो श्याम भाई, एक और घोटाला! लगता है भ्रष्टाचार का ये जहर देश की रगों में समा चुका है।
श्याम: (हताश स्वर में) वही तो रमेश बाबू, सालों से यही देखते आ रहे हैं। लगता है ये सिलसिला कभी थमेगा ही नहीं।
रमेश: हां, और सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जाब ईमानदार लोग भी इस भ्रष्टाचार के दलदल में फँसने लगते हैं।
श्याम: (गुस्से से) ये सब नेताओं और अफसरों की लालच का ही नतीजा है। अपने स्वार्थ के लिए वो देश के भविष्य को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं।
रमेश: (सिर हिलाते हुए) बिल्कुल ठीक कहते हो। अफसर से लेकर सरकार, सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
श्याम: हाँ, चुनाव के समय तो सभी नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगाते हैं, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
रमेश: कभी लगता है, क्या कभी ये खत्म होगा?
श्याम: (हताश स्वर में) और हम क्या कर सकते हैं रमेश भाई? विरोध किया, आवाज़ उठाई, पर ये सब रेत में पानी डालने जैसा लगता है।
रमेश: (थोड़ी उम्मीद के साथ) यदि हम अपने बच्चों, पोतों को ईमानदारी का पाठ पढ़ाएँ। उन्हें सिखाएँ कि भ्रष्टाचार का रास्ता कितना कांटेदार है।
श्याम: (हमेंशा से) और हाँ, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना भी ज़रूरी है। शायद एक दिन ये आवाजें इतनी बुलंद होंगी कि भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देंगी।
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