आज के नेतागण खुले आम जनता को लूट रहे हैं इस विषय पर दो नागरिकों की बातचीत लिखिए: अर्जुन: राहुल, ये चुनाव देखकर तो मन ऊब जाता है। हर बार वही वादे, वही
आज के नेतागण खुले आम जनता को लूट रहे हैं इस विषय पर दो नागरिकों की बातचीत लिखिए
अर्जुन: राहुल, ये चुनाव देखकर तो मन ऊब जाता है। हर बार वही वादे, वही जुमले, और चुनाव जीतने के बाद फिर वही लूट-खसोट।
राहुल: बिल्कुल अर्जुन! आजकल के नेता तो बस अपनी जेब भरने में लगे रहते हैं। जनता की कोई परवाह नहीं होती।
अर्जुन: याद है, पिछले चुनाव में जिस नेता ने जीत हासिल की थी, उसने कितने बड़े-बड़े वादे किए थे? शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सबके लिए बेहतर जीवन... पर क्या हुआ?
राहुल: हाँ यार, याद है ना! उन्होंने कहा था कि वे किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। पर आज भी किसानों की हालत जस की तस है। गरीब और गरीब होते जा रहे हैं, अमीर और अमीर।
अर्जुन: और ये भ्रष्टाचार! हर जगह घूसखोरी, बेईमानी। नेता जी तो बस अपनी संपत्ति बढ़ाने में लगे हुए हैं।
राहुल: हाँ यार, इन नेताओं के लिए जनता सिर्फ एक वोट बनकर रह गई है। वोट लेकर कुर्सी हासिल कर लेते हैं, फिर जनता को भूल जाते हैं।
अर्जुन: तो क्या हम हमेशा ऐसे ही नेताओं का चुनाव करते रहेंगे? क्या हम कभी बदलाव नहीं ला सकते?
राहुल: बिल्कुल ला सकते हैं यार! बस हमें थोड़ा जागरूक होना होगा। हमें ऐसे नेताओं को चुनना होगा जो ईमानदार हों, जनता के लिए काम करने वाले हों।
अर्जुन: हाँ यार, इस बार हमें सोच समझकर वोट देना होगा। हमें उन नेताओं को चुनना होगा जो हमारे दर्द को समझते हों, हमारे हितों के लिए काम करते हों।
भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं के विषय पर दो नागरिकों के मध्य संवाद / बातचीत लिखिए
अर्जुन: (अखबार को रमेश बाबू की तरफ बढ़ाते हुए) रमेश बाबू, ये पढ़िए। ऊपर से नीचे तक सिर्फ घोटालों और भ्रष्टाचार की खबरें। (गुस्से से) ये नेता तो जनता के विश्वास की भीख मांगते हैं, पर खुद उसे हर रोज तार-तार करते हैं।
रमेश: (अखबार नीचे रखते हुए) हाँ बेटा, पढ़ा। ये तो रोज़ का तमाशा हो गया है। करोड़ों के घोटाले, फर्जी योजनाएं, फाइलों में ही विकास... ये सब सुनते-सुनते लोग थक चुके हैं।
अर्जुन: (गुस्से से) मैं तो ये देखकर आश्चर्यचकित हूँ कि ये सब खुलेआम हो रहा है और हम सब मूक दर्शक बने हुए हैं।
रमेश: हाँ बेटा, ये तो रोज़ का सिलसिला है. पहले सुनते थे, अब तो देखते भी हैं. (हताश स्वर में) इतने सालों में कुछ नहीं बदला.
अर्जुन: रोज़ का सिलसिला! रोज़ लूट होगी और हम मूक दर्शक बने रहेंगे? ये खुलेआम हो रहा है और सत्ता के गलियारों में बैठे हुए लोग बेखबर हैं!
रमेश: गुस्सा होना वाजिब है बेटा, लेकिन उस गुस्से को सही दिशा देनी होगी। चीजों को तोड़ना, जलाना उपद्रव करना समस्या का हल नहीं हैं। इससे तो सिर्फ माहौल बिगड़ेगा।
अर्जुन: (कुछ सोचकर) तो रास्ता क्या है रमेश जी? हम कैसे लड़ें इस जंग में?
रमेश: बेटा, याद करो महात्मा गाँधी को। सादा जीवन, उच्च विचार, अहिंसात्मक विरोध...उनके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही हम भ्रष्टाचार को मिटा सकते हैं।
अर्जुन: (सिर हिलाते हुए) हाँ बेटा। छोटे-छोटे कदम मिलकर एक क्रांति ला सकते हैं। गांधीजी ने अकेले लड़ाई शुरू की थी, पर धीरे-धीरे पूरा देश उनके साथ हो गया।
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