तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद का चरित्र चित्रण: तुमुल खण्डकाव्य के रचयिता श्यामनारायण पाण्डेय ने लक्ष्मण- मेघनाद युद्ध की घटना को इस खण्डकाव्य की
तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद का चरित्र चित्रण
तुमुल खण्डकाव्य के रचयिता श्यामनारायण पाण्डेय ने लक्ष्मण- मेघनाद युद्ध की घटना को इस खण्डकाव्य की कथावस्तु बनाया है। यदि लक्ष्मण को तुमुल खण्डकाव्य का नायक माना जाए तो मेघनाद इस खण्डकाव्य का प्रतिनायक माना जा सकता है। उसके चरित्र के उल्लेखनीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) परिचयात्मक विवरण: मेघनाद राक्षसराज रावण का पुत्र है । वह भी नामक लक्ष्मण की भाँति ही नीतिज्ञ, योद्धा और शीलवान है। यदि लक्ष्मण संजीवनी की सहायता से जीवित न हुए होते तो राम पक्ष की विजय संदिग्ध ही थी ।
(2) वीर: मेघनाद अप्रतिम वीर हैं। वीरता और साहस का उसमें सुन्दर सम्मिश्रण है। पिता की आज्ञा पाते ही वह तत्काल उत्साह से पूरित होकर युद्ध की तैयारियाँ करने लगता है। भय तो मेघनाद को छूता तक नहीं, काल भी मेघनाद का सामना करने में समर्थ नहीं, चन्द्रमा और सूर्य भी अपना धैर्य खो देते हैं। रावण भी मेघनाद की वीरता को स्वीकारता है।
(3) तेजस्वी: मेघनाद अत्यन्त तेजस्वी प्रभावशाली पुरुष है। जब वह रावण की सभा में उपस्थित होता है तो सभाभवन उसके मुखमण्डल के आलोक से प्रकाशित हो उठता है। सम्पूर्ण सभासद उसके मुखमण्डल को देखते के देखते ही रह जाते हैं । युद्ध के मैदान में उसकी कान्ति को लक्ष्मण भी सूर्य की कान्ति के समान कहते हैं।
(4) पितृभक्त तथा विवेकी वीर: मेघनाद अपने पिता रावण के प्रति पूर्ण भक्ति रखता है। वह अपने पिता को चिन्तामग्न देखकर स्वयं भी व्याकुल हो जाता है। अपने पिता को धैर्य प्रदान करने के लिए वह गर्वोक्ति करता है। वह कहता है कि मैं सिंह के समान युद्ध में उहूँगा और संग्राम में विजयी होकर रहूँगा। मेघनाद परिस्थिति को समझनेवाला विवेकी वीर है। लक्ष्मण द्वारा अपने व्यक्तित्व की प्रशंसा सुनकर भी वह अपने निश्चय से विचलित नहीं होता और युद्ध करने के लिए ही तत्पर रहता है। मेघनाद लक्ष्मण से कहता है-
अतएव मानूँगा नहीं, सन्नद्ध अब हो जाइए।
हे वीरवर ! मेरी विनय से, बद्ध अब हो जाइए।।
(5) दृढ़ प्रतिज्ञ: मेघनाद अपने वचन का पक्का है। जब उसका पिता रावण उसे मकराक्ष वध का प्रतिकार करने के लिए प्रेरित करता है तो मेघनाद निःसंकोच उस चुनौती को स्वीकार कर लेता है और प्रतिज्ञा करता है - "यदि मैं आज आपके कष्ट को न हर लूँगा तो फिर कभी घनुष धारण नहीं करूँगा।" यह उसकी गर्वोक्ति मात्र नहीं है, लक्ष्मण को मर्छित कर वह अपनी इस प्रतिज्ञा को पूर्ण कर दिखाता है।
(6) याज्ञिक: मेघनाद यज्ञ क्रिया में अटूट विश्वास रखता है। उसने यज्ञ करके अनेक दिव्य अस्त्र तथा शक्तियाँ प्राप्त कर ली थीं। मकराक्ष का प्रतिकार करने के लिए जब वह राम की सेना पर आक्रमण करता है तो युद्ध में जाने से पहले यज्ञ करता है। लक्ष्मण - मूर्च्छा के पश्चात् युद्ध में पूरी तरह विजय पाने की कामना से भी वह यज्ञ करता है। वास्तव में मेघनाद को मन्त्रों की अपूर्व शक्ति प्राप्त थी।
मेघनाद के चरित्र का बस एक दुर्बल पक्ष यही है कि वह रावण का पुत्र है। इसके अतिरिक्त उसका चरित्र सभी दृष्टियों से उज्ज्वल है। रावण का सहयोगी पुत्र होने से उसका पक्ष अन्याय एवं अनाचार का है। उसमें आत्मविश्वास भी है। युद्ध में लक्ष्मण की बातों को वह बड़े ध्यान से सुनता है और फिर व्यंग्यपूर्वक हँसकर बिना कहे ही सब कुछ कह देता है-
जो जो कहा उसको उन्होंने ध्यान से तो सुन लिया।
पर गर्व से घननाद ने सौमित्र को लाख हँस दिया ।।
इस प्रकार मेघनाद का चरित्र भी कवि ने गरिमापूर्ण ढंग से उभारा है । उसके चरित्र को प्रस्तुत करने में कवि को पूर्ण सफलता भी मिली है। इसे स्वीकार किया जा सकता है।
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