तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण: श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित 'तुमुल' खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र अथवा प्रधान नायक लक्ष्मण
तुमुल' खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण
श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित 'तुमुल' खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र अथवा प्रधान नायक लक्ष्मण को माना जाता है। प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है। कवि ने लक्ष्मण तेजस्वी चरित्र-व्यक्तित्व को अपने काव्य का केन्द्रबिन्दु बनाया है। तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर इसके प्रमुख पात्र लक्ष्मण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
1. नायक - लक्ष्मण 'तुमुल' खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र तथा नायक हैं। वे भगवान राम के छोटे भाई राजा दशरथ के पुत्र हैं। उनमें नायकोचित वीरता, धीरता और उदारता है। वे मेघनाद के ललकारनें पर युद्ध करते हैं। यद्यपि प्रथम बार वे मेघनाद के शक्तिप्रहार से मूर्छित हो जाते हैं, परन्तु अन्त में विजय उन्हीं की होती है।
2. तेजस्वी एवं सौन्दर्यशाली व्यक्तित्व - लक्ष्मण के व्यक्तित्व में तेजस्विता, सहजकोमलता एवं स्वभाव में नम्रता है। उनके अधरों पर सहज मुस्कान खेलती है। मेघनाद भी उन्हें 'लावण्ययुक्त ब्रह्मचारी' कहकर सम्बोधित करता है-
लावण्यधारी ब्रह्मचारी, आप बुद्धि निधान हैं।
संसार में अत्यन्त वीर, पराक्रमी महान् हैं।
सभी लक्ष्मण के सौन्दर्य को देखते ही रह जाते हैं। वे जब बोलते हैं तो अत्यन्त मधुर तथा कर्णप्रिय संगीत कानों में घोल देते हैं। कवि उनके सौन्दर्य की प्रशंसा इस प्रकार करता हैं-
थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।
3. अतुलनीय शक्ति सम्पन्न एवं विनयशील वीर - लक्ष्मण विनयशील वीर है। लक्ष्मण केवल शक्तिसम्पन्न ही नही हैं, बल्कि वीरों के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मेघनाद के सौन्दर्य एवं तेज की प्रशंसा भी की है। उन्होंने संकल्प करके जिससे भी युद्ध किया, उसे युद्ध में परास्त ही किया-
रण ठानकर जिससे भिड़े, उससे विजय पायी सदा।
संग्राम में अपनी ध्वजा, सानन्द फहरायी सदा।।
जब मेघनाद उनकी बाते सुनकर हँस पड़ता है, तब उनकी क्रोधाग्नि में मानों घी पड़ जाता है। युद्ध में उनके प्रलयंकारी रूप को देखिये-
आकाश को अपने निशित नाराच से भरने लगे।
उस काल देवों के सहित देवेन्द्र भी डरने लगे।
4. विनम्र एवं शीलवान - बाल्यकाल से ही लक्ष्मण दयालु एवं उदार हैं। उनका अन्तःकरण भी सरल, शुद्ध तथा कोमल है। वे अपने भाई राम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं। वे युद्धभूमि में अपने शत्रु मेघनाद के सौन्दर्य और ओज को देखकर मुग्ध होकर दयार्द्र हो जाते है-
आके, आँखों से तुझे देख के तो, इच्छा होती युद्ध की ही नहीं हैं। कैसे तेरे साथ में मैं लडूंगा, कैसे बाणों से तुझे मैं हलूंगा ।।
लक्ष्मण के हृदय में कोमलता है। निःशस्त्र मेघनाद को यज्ञ करते देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है।
5. शत्रुओं को परास्त करने वाले - लक्ष्मण अपने पराक्रम से, अपने बाहुबल से और अपने युद्ध कौशल से शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। यद्यपि वे यज्ञभूमि में निःशस्त्र मेघनाद का वध करते हैं, परन्तु मेघनाद को मारने की शक्ति भी उन्हीं में थी । राम उनकी पीठ पर ठोंकते हुए कहते हैं - “मैं जानता था तुम्ही मार सकते हो मेघनाद को।”
6. मानवीय गुणों के भण्डार - लक्ष्मण के व्यक्तित्व में मानवीय गुण विशेष रूप से भरे पड़े हैं । कवि के शब्दों में-
निशि दिन क्षमा में क्षिति बसी, गम्भीरता में सिन्धु था।
था धीरता में अद्रि, यश में खेलता शरदिन्दु था।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि लक्ष्मण परम शीलवान, विनम्र, पराक्रमी, अतुलनीय शक्तिसम्पन्न एवं अजेय योद्धा थे । वस्तुतः नायक होने के लिए जितने भी गुण किसी व्यक्ति के चरित्र में होने चाहिए, वे सभी गुण लक्ष्मण में मौजूद हैं। वे तुमुल खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र तथा नायक एवं मानव मात्र के लिए आदर्श हैं।
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