महाराणा प्रताप का चरित्र-चित्रण: 'राजमुकुट' नाटक के नायक 'महाराणा प्रताप' हैं। नाटक में महाराणा प्रताप के चरित्र का मूल्यांकन - राज्याभिषेक से लेकर मृ
राजमुकुट नाटक के नायक महाराणा प्रताप का चरित्र चित्रण कीजिये
महाराणा प्रताप का चरित्र-चित्रण: 'राजमुकुट' नाटक के नायक 'महाराणा प्रताप' हैं। नाटक में महाराणा प्रताप के चरित्र का मूल्यांकन - राज्याभिषेक से लेकर मृत्यु तक की घटनाएं हैं। महाराणा प्रताप के चारित्रिक विशेषताएं निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत प्रकट किया जा सकता है-
1. प्रजा की आकांक्षाओं के आधार - महाराणा प्रताप को मेवाड़ की प्रजा इस आशा से मुकुट पहनाती है कि वे देश की तथा उनकी रक्षा करेगें । 'प्रताप' प्रजा की आशा के अनुकूल सच्चे हितैषी सिद्ध होते हैं। "वह देश में छायी हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हंसेगा । उसका पौरूष गेय है। वह महीमाता का है। भारत माता की साधना का फल है, अमरफल है ।" इस आशा और विश्वास के साथ मेवाड़ की प्रजा प्रता को मुकुट धारण कराती है।
2. भारतीय आदर्श नायक - महाराणा प्रताप के चरित्र में वे सभी गुण विद्यमान हैं, जो भारतीय नाट्यशास्त्र में आदर्श नायक के गुण के विषय में बताया गया है। प्रताप उच्च कुल में उत्पन्न हुए वीर, साहसी तथा संयमी व्यक्ति हैं। प्रताप 'धीरोदात्त नायक' का आदर्श चरित्र हैं ।
3. जन्मभूमि के अनन्य भक्त - देश की दासता और प्रजा की दुर्दशा से व्यथित प्रताप मातृभूमि के अनन्य भक्त है । "सारा देश विदेशियों के अत्याचारों से विकम्पित हो चुका है। देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक असन्तोष राग अलाप रहा है।....... चित्तौड़ का युद्ध भारत का युद्ध होगा ।"
4. कर्तव्यनिष्ठ तथा दृढ़प्रतिज्ञ - महाराणा प्रताप अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान् तथा दृढ़ निश्चयी हैं। राजमुकुट धारण करने के अवसर पर प्रताप के शब्द हैं- “मेरा जयनाद ! मुझे महाराणा बनाकर मेरा जयनाद न बोलो साथियों! जय बोलो भारत की, मेवाड़ की । मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि प्राणों में सांस रहते हुए प्रजा - प्रभु की दी हुई इस भेंट को मलिन न करूंगा। जब तक सारे भारत को दासता से मुक्त न कर लूंगा, सुख की नींद न सोऊँगा । "
5. निराभिमानी एवं सन्तालिप्सा से दूर - स्वतंत्रता के दीवाने, राणा देशभक्त हैं। मेवाड़ के महाराणा 'राणा प्रताप' महान देशभक्त हैं। परन्तु उन्हें अभिमान बिल्कुल नहीं हैं । महान होकर भी वे स्वयं को महान नहीं समझते। वे कहते हैं- “ मेवाड़ का राणा मैं ! नहीं, नहीं कृष्णजी ! आप भूल रहे हैं। मेवाड़ के महाराणा का पद महान है, बहुत महान है। "
6. स्वतंत्रता के लिए दृढ़ संकल्प - प्रताप जीवनपर्यन्त स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे । हल्दी घाटी में वे अकबर से युद्ध करते हैं । अकबर के सामने वे अपना सब कुछ खोकर भी नहीं झुकते । बच्चे भूखे मर जाते हैं फिर भी यह लौह पुरुष अडिग रहता है । मृत्यु के | समय भी राणा की एक ही इच्छा है कि वह मेवाड़ को स्वतंत्र कराना चाहते हैं।
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