कर्ण' खण्डकाव्य के 'कर्ण वध' नामक षष्ठ सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए: कर्ण' खण्डकाव्य के 'कर्ण वध' नामक षष्ठ सर्ग में महाभारत का युद्ध आरंभ होने
कर्ण' खण्डकाव्य के 'कर्ण वध' नामक षष्ठ सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
कर्ण' खण्डकाव्य के 'कर्ण वध' नामक षष्ठ सर्ग में महाभारत का युद्ध आरंभ होने से लेकर कर्ण के मृत्यु तक की कथा का वर्णन है। पाँच दिन बाद महाभारत का युद्ध हुआ। भीष्म पितामह कौरवों के सेनापति बनाए गए। वे इस शर्त पर सेनापति बने कि वे कर्ण का सहयोग नहीं लेंगे; क्योंकि वह कपटी, अत्याचारी, अधिरथी तथा अभिमानी है। कर्ण ने उनका प्रण सुनकर प्रतिज्ञा की कि वह भीष्म पितामह के जीवित रहते शस्त्र ग्रहण नहीं करेंगे अन्यथा सूर्य पुत्र नहीं कहलाएँगे। भीष्म प्रतिदिन अकेले दस सहस्त्र वीरों को मारते थे, किंतु दसवें दिन बाणों से घायल होकर वे शर शय्या पर गिर पड़े। कर्ण ने भीष्म पितामह के पास पहुँचने पर उन्होंने कर्ण को भर आँख निहारने की इच्छा प्रकट की, उसे जल के भँवर में नाव खेने वाला कहा तथा उसे दानवीर, धर्मवीर और महावीर बतलाया-
घूर्ण्य काल - जल में बस तू ही नौका खेने वाला।दानवीर तू, धर्मवीर तू, तू संबल आरत का ।जो कभी बुझ सकता, वह दीप महाभारत का ॥
भीष्म पितामह ने कहा कि मैंने तेरा सूत पुत्र कहकर तिरस्कार किया, केवल इसलिए कि तुम किसी भी तरह इस युद्ध से विरत हो जाओ और दुर्योधन अपने इस युद्धरूपी कांड में सफल न हो सके। उन्होंने पुन: कहा कि तुम यह संदेश छोड़ दो कि तुम सूत-पुत्र हो। तुम भी अर्जुन आदि की तरह कुंती के ही पुत्र हो। हमारी इच्छा यही है कि तुम पांडवों से मिल जाओ। कर्ण ने अपने को प्रतिज्ञाबद्ध बताते हुए ऐसा करने से मना कर दिया। उसने पितामह से कहा कि विधि के लिखे हुए को कौन बदल सकता है? मुझसे भी मेरा मन यही कहता है कि मैं अपनी मृत्यु की कहानी स्वयं लिख रहा हूँ। किंतु यह भी सत्य है पितामह कि मैं अपना साहस नहीं छोडूंगा। भले ही उस ओर कृष्ण हों, किंतु अर्जुन को मारने हेतु मैं हर प्रयास करूँगा। यह सुनकर पितामह ने कर्ण की जय-जयकार की और उसके मार्ग के समस्त अमंगलों को दूर होने की कामना की। उसे अपने शस्त्रास्त्र उठाकर दुर्योधन का स्वप्न पूर्ण करने के लिए कहा।
भीष्म के बाद द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया गया। पन्द्रहवें दिन वे भी वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध के सोलहवें दिन कर्ण कौरव दल के सेनापति बने। उनकी भयंकर बाण - वर्षा से पांडव विचलित होने लगे, तभी भीम का पुत्र घटोत्कच भयंकर मायापूर्ण आकाश युद्ध करता हुआ कौरव सेना पर टूट पड़ा। घटोत्कच के भीषण प्रहार से कौरव सेना में त्राहि- त्राहि मच गई। उन्होंने रक्षा के लिए कर्ण को पुकारा। कर्ण ने अमोघ शक्ति का प्रहार कर घटोत्कच को मार डाला। इस अमोघ शक्ति का प्रयोग वह केवल अर्जुन पर करना चाहता था, किंतु परिस्थितिवश उसे उसका प्रयोग घटोत्कच पर करना पड गया। वह सोचने लगा, यह सब कुछ कृष्ण की माया है, अब अर्जुन की विजय निश्चित है। थोड़ा-सा दिन शेष था। अचानक कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में धँस गया। सारथी प्रयास करने पर भी रथ का पहिया न निकाल सका, तब कर्ण रथ से उतरकर स्वयं पहिया निकालने लगा। तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को प्रहार करने के लिए आदेश दिया; क्योंकि युद्ध में धर्म-अधर्म का विचार किए बिना शत्रु को परास्त करना चाहिए। आदेश पाते ही अर्जुन ने निःशस्त्र कर्ण का बाण - प्रहार से वध कर दिया। कर्ण की मृत्यु पर श्रीकृष्ण भी अश्रुपूर्ण नेत्रों से रथ से उतर 'कर्ण! हाय वसुसेन वीर' कहकर दौड़ पड़े।
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