कर्ण' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग (द्यूतसभा में द्रौपदी) का सारांश लिखिए: कर्ण' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग में अर्जुन द्वारा मत्स्य वेध से लेकर द्रौपदी के
कर्ण' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग (द्यूतसभा में द्रौपदी) का सारांश लिखिए।
कर्ण' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग में अर्जुन द्वारा मत्स्य वेध से लेकर द्रौपदी के चीर हरण तक का कथानक वर्णित है। द्रौपदी के स्वयंवर में ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन ने मत्स्य वेध करके द्रौपदी का वरण कर लिया। बाद में जब भेद खुला तो अन्य राजागण ईर्ष्या से प्रेरित हो गए, किंतु द्रौपदी अर्जुन को पाकर धन्य थी। द्रौपदी पाँचों पांडवों की वधू बनकर आ गई। विदुर के समझाने- बुझाने पर युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का आधा राज्य मिल गया।
युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञ में आमंत्रित दुर्योधन उनके यश-वैभव और राज्य की सुव्यवस्था देखकर ईर्ष्या व द्वेष से जलने लगा। दुर्योधन ने जैसे ही सभाभवन में प्रवेश किया तो उसे जहाँ जल भरा था, वहाँ स्थल का और जहाँ स्थल था, वहाँ जल का भ्रम हो गया। इस पर द्रौपदी ने व्यंग्य किया, जिस पर दुर्योधन क्षोभ से भर गया।
वापस आकर उसने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर शकुनि की सलाह से द्यूत-क्रीड़ा की योजना बनाई और पांडवों को आमंत्रित किया । इस द्यूतक्रीड़ा में युधिष्ठिर; सारा राजपाट, भाइयों और अंत में द्रौपदी को भी हार बैठे। दुर्योधन की आज्ञा से दुःशासन द्रौपदी को भरी सभा में बाल पकड़कर घसीटता हुआ लाया। द्रौपदी ने बहुत अनुनय-विनय की, परंतु इस दुष्कृत्य को देखकर भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, पांडव तथा सभी सभासद मौन रह गए। कर्ण और दुर्योधन की प्रसन्नता का ठिकाना न था।
कर्ण ने बदले का उपयुक्त अवसर जानकर दुःशासन को उत्तेजित किया और द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का कहा। विकर्ण से यह अन्याय सहन नहीं हुआ, उसने अन्याय का विरोध किया, परंतु कर्ण को अपना प्रतिशोध लेना था। वह बोला - विकर्ण, यह कुलवधू नहीं, दासी है। पाँच पतियों वाली कुलवधू कैसी ? उसने दुःशासन को आज्ञा दी -
दुःशासन मत ठहर, वस्त्र हर ले कृष्णा के सारे।वह पुकार ले रो-रोकर, चाहे वह जिसे पुकारे॥
कर्ण ने दुःशासन को इस प्रकार उत्तेजित तो किया परंतु बाद में अपने इस दृष्कृत्य के लिए वह आजीवन पछताता रहा।
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