कर्ण' खंडकाव्य के आधार पर भीष्म पितामह का चरित्र चित्रण कीजिए: भीष्म पांडव और कौरवों के पूज्य एवं परमादरणीय पितामह थे। कौरव और पांडव दोनों ही उन्हें श
कर्ण' खंडकाव्य के आधार पर भीष्म पितामह का चरित्र चित्रण कीजिए।
भीष्म पांडव और कौरवों के पूज्य एवं परमादरणीय पितामह थे। कौरव और पांडव दोनों ही उन्हें श्रद्धा से पितामह कहते थे। भीष्म पितामह की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. परम नीतिज्ञ: भीष्म पितामह कर्तव्यपरायण होने के साथ-साथ बड़े नीतिज्ञ भी थे। वे पूर्ण मन से कौरवों का साथ नहीं दे पा रहे थे, क्योंकि वे जानते थे कि कौरव अनीति के मार्ग पर चल रहे हैं। वे नहीं चाहते थे कि युद्ध में जीत कौरवों की हो। कर्ण को वे नीच, अर्धरथी और अभिमानी इसीलिए कहते हैं जिससे कर्ण का तेज कम हो जाए, क्योंकि वे उसकी युद्ध कुशलता और दुर्योधन के प्रति पूर्ण निष्ठा को भली-भाँति जानते थे। उनकी इस नीति का प्रभाव भी हुआ; क्योंकि कर्ण ने यह प्रतिज्ञा की कि पितामह के जीते जी वह युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएगा।
2. शौर्य तथा पराक्रम के प्रेमी: शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह कर्ण के शौर्य और वीरता की बड़ी प्रशंसा करते हैं। तथा कर्ण के प्रति कहे गए अपमानजनक शब्दों पर पश्चात्ताप करते हैं। वे वीर और पराक्रमी योद्धा का बड़ा ही सम्मान करते हैं, कर्ण की प्रशंसा वे इन शब्दों में करते हैं-
तेरे लिए फूल आदर के, खिलते मेरे मन में।देखा तुझ सा महावीर, मैंने न कभी जीवन में।
3. वीर शिरोमणि: भीष्म पितामह बड़े वीर और पराक्रमी योद्धा थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने प्रतिदिन दस हजार सैनिकों को मारने की शपथ ली थी। कौरव तथा पांडव दोनों ही उनकी वीरता के सम्मुख नतमस्तक थे।
4. न्याय एवं धर्म के समर्थक: भीष्म पितामह परिस्थितियोंवश ही कौरवों की ओर से युद्ध करते हैं। वे नहीं चाहते कि युद्ध में दुर्योधन की विजय हो। वे पांडवों से अति प्रसन्न हैं; क्योंकि पांडव सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चल रहे हैं। वे अनीति तथा अन्याय से घृणा करते हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भीष्म पितामह का चरित्र एक वीर, पराक्रमी और न्यायवादी धर्म-प्रिय योद्धा का चरित्र है।
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