कर्ण खण्डकाव्य के आधार पर कुंती का चरित्र चित्रण कीजिये: कविवर केदारनाथ मिश्र "प्रभात" द्वारा रचित "कर्ण" खण्डकाव्य में कुंती प्रमुख स्त्री पात्र है।
कर्ण खण्डकाव्य के आधार पर कुंती का चरित्र चित्रण कीजिये
कुंती का चरित्र चित्रण: कविवर केदारनाथ मिश्र "प्रभात" द्वारा रचित "कर्ण" खण्डकाव्य में कुंती प्रमुख स्त्री पात्र है। वह महाराज पाण्डु की पत्नी और पाण्डवों की माता है। खण्डकाव्य से कुंती के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं:
1. लोकलाज से भयभीत माँ: कुंती लोकलाज से भयभीत नारी का प्रतीक है, जो सामाजिक निन्दा और भय से व्याकुल है। कुंती लोकलाज से भयभीत नारी का प्रतीक है किशोरावस्था में सूर्य से उत्पन्न नवजात शिशु को वह लोकनिंदा के भय से मंजूषा में रखकर गंगा नदी की धारा में बहा देती है। इस बात को वह स्वयं कर्ण के सम्मुख स्वीकारती है:-
मञ्जूषा में धर वज्र कर मन को,
धारा मी आई छोड़ ह्रदय के धन को
2. दुःखिया माता: कुंती दुःखी है क्योंकि उनके पुत्रों को उनका राज्यांश नहीं मिल रहा है तथा विवश होकर उनको कौरवों से युद्ध करना पड़ा। कुंती इससे भयभीत तथा दु:खी थी। वह कर्ण के पास जाती है और उस पर उसकी माँ होने का पुरा राज खोल देती है। परन्तु कर्ण ताने मारता हुआ, दुर्योधन का साथ न छोड़ने तथा अर्जुन का वध करने की अपनी प्रतिज्ञा को दोहराता है। अन्ततः उदास तथा दुःखी होकर कुंती वापस लौट आती है।
3. ममतामयी माँ: कुंती परिस्थितियों की मारी एक सच्ची माँ है, जो अपनी ममता को गहरा दफनाकर भी दफना नहीं पाती। उसको मातृरूप कई रूपों में हमारे सामने आता है। जब वह देखती है कि भाई-भाई ही एक-दूसरे को मारने के लिए तत्पर हैं, तब वह अपने पाण्डवों की रक्षा के लिए कर्ण के पास जाती है
सुत की शोभा को देख मोद में फूली,
कुंती क्षण-भर को व्यथा-वेदना भूली.
भर कर ममता-पय से निष्पलक नयन को,
वह खड़ी सींचती रही पुत्र के तन को
वह कर्ण से अपमानित भी होती है। फिर भी कर्ण के प्रति उसका वात्सल्य भाव रोके नहीं रुकता। जो भारतीय नारी की सामाजिक और पारिवारिक विवशताओं को मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान करता है।
4. अंतर्द्वंद से ग्रसित: जब कुंती के ही पुत्र परस्पर शत्रु बने हुए है तब कुंती के ह्रदय में अंतर्द्वंद की भीषण आंधी उठ रही है। पांचो पांडव और कर्ण में से किसी की भी हानि हो, पर वास्तविक हानि तो कुंती की ही होगी।
निष्कर्ष: कुंती का चरित्र एक जटिल और बहुआयामी चरित्र है। वह एक ममतामयी माता, लोकलाज से भयभीत माँ, और दुःखिया नारी के रूप में हमारे सामने आती है। कवि ने कुंती के चरित्र के माध्यम से स्त्री-मन की जटिलता और मातृत्व की भावना को बखूबी चित्रित किया है।
कुंती का चरित्र-चित्रण (Kunti ka Charitra Chitran)
'कर्ण' खण्डकाव्य की रचना कविवर केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' ने महाभारत के महादानी, वीर कर्ण को केन्द्र में रखकर की है । कुन्ती कर्ण की एवं पाण्डवों की माता है । कुन्ती के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ अग्र शीर्षकों में निरूपित की जा सकती हैं-
(1) परिचयात्मक विवरण- कुन्ती कुरु राजकुमार पाण्डु की पत्नी थी तथा कृष्ण की बुआ थी । कुन्तिभोज के यहाँ उनका लालन-पालन हुआ था। एक ऋषि की कृपा से उन्हें मन्त्र शक्ति प्राप्त हुई । वे जिस देवता का आह्वान करेंगी वह उनके समक्ष उपस्थित होगा और उससे उन्हें पुत्र प्राप्त होगा ।
(2) अभिशप्त माता - कुन्ती ने कौमार्यावस्था में ही उस मन्त्रशक्ति को परखने हेतु सूर्य का आह्वान किया और सूर्य से उन्हें एक पुत्र कर्ण प्राप्त हुआ। लोकलाज के भय से उन्होंने उसे गंगा में बहा दिया। जिसका पालन-पोषण अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने किया और इस प्रकार कर्ण क्षत्रिय होते हुए भी सूतपुत्र कहलाया । कुन्ती एक अभिशप्त माता है। नवजात पुत्र को उसने लोकलाज से त्याग तो दिया, किन्तु उसका हृदय अपने पुत्र के प्रति ममत्व से भरा हुआ है।
(3) चिन्तित माता - महाभारत के युद्ध में कुन्ती एक चिन्तित माता के रूप में सामने आती हैं । उसे लगा कि पाण्डव केवल पाँच हैं जबकि कौरव सौ हैं। यही नहीं भीष्म, द्रोण कर्ण जैसे वीर कौरवों के पक्ष में अतः पाण्डवों की पराजय निश्चित है । कुन्ती कर्ण के पास उसे मनाने गयी कि वह कौरवों का साथ छोड़कर पाण्डवों के पक्ष में आ जाए तब कर्ण उससे कहता है- "आज पाण्डवों पर विपत्ति आती दिखी तो मुझे कहने चली आईं। जब सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान किया जा रहा था तब तुम कहाँ थीं ? तुमने माँ होकर भी मेरे साथ विश्वासघात किया है, किन्तु तुमने मुझे अपना पुत्र कहा है इसलिए मैं वचन देता हूँ कि मैं युद्ध में अर्जुन को छोड़कर तुम्हारे किसी पुत्र को नहीं मारूँगा। अर्जुन और कर्ण में से तुम्हारे एक पुत्र की मृत्यु निश्चित है। तब भी माता तुम्हारे पाँच पुत्र रहेंगे। यदि मैं मर गया तो अर्जुन तुम्हारा पुत्र है और भाई अर्जुन मारा गया तो मैं तुम्हारा पुत्र रहूँगा।" यह सुनकर कुन्ती अश्वस्त होकर चली गयी।
(4) एक दुखिया माँ - कर्ण खण्डकाव्य में कुन्ती को एक दु:खी माँ के रूप में दिखाया है उनके पुत्र पाण्डवों को उनका राज्य नहीं मिला है तथा विवश होकर पाण्डवों को कौरवों से युद्ध करना पड़ रहा है, अतः कुन्ती इससे भयभीत तथा दुःखी है। वह जब कर्ण के पास जाती है और उसकी माँ होने का पूरा राज खोल देती है तो कर्ण उसे ताना मारता है तथा अर्जुन का वध करने की अपनी प्रतिज्ञा को भी दोहराता है, अतः उदास तथा दुःखी होकर कुन्ती वापस लौट आती है।
इस प्रकार कर्ण खण्डकाव्य में कुन्ती के मातृत्व की बहुपक्षीय दिखाई देती है। अपने पुत्र पाण्डवों की रक्षा के लिए उसका चिन्तित होना स्वाभाविक है, किन्तु कर्ण से उसे तिरस्कार ही मिला कुन्ती परिस्थितियों से विवश एक सच्ची माँ के रूप में इस खण्डकाव्य में चित्रित की गई है और सबकी सहानुभूति पाने में सफल रही है।
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