‘ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य के नायक पं. जवाहरलाल नेहरू का चरित्र चित्रण: ज्योति जवाहर खण्डकाव्य के नायक हमारे राष्ट्रनायक पं. जवाहरलाल नेहरू हैं। वे स्वय
‘ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य के नायक पं. जवाहरलाल नेहरू का चरित्र चित्रण
ज्योति जवाहर खण्डकाव्य के नायक हमारे राष्ट्रनायक पं. जवाहरलाल नेहरू हैं। वे स्वयं राष्ट्रीय एकता के प्रतीक, धीरोदात्त नायक के सभी गुणों से युक्त हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ ‘ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य में लक्षित हैं-
युगावतार— कवि ने पं. जवाहरलाल नेहरू को युगावतार का रूप दिया है। उनके व्यक्तित्व में समस्त भारतीय महापुरुषों तथा सांस्कृतिक विशेषताओं का समन्वय पाया जाता है। उनमें गाँधी जी का सत्य, अहिंसा और प्रेम, चाणक्य की नीति, चन्द्रगुप्त की वीरता विद्यमान है। शक्ति, शील और सौन्दर्य का समन्वित रूप, दया, क्षमा, समता, देशप्रेम, त्याग, विश्वबन्धुत्व एवं राष्ट्रीय भावात्मक एकता आदि श्रेष्ठ गुणों का संतुलन नेहरू जी के व्यक्तित्व का अंग हैं। वे अपने युग के अवतार हैं। इसी कारण उनके जन्म लेने पर मथुरा, वृन्दावन तथा अवध प्रदेश में गली- गली में यह चर्चा होने लगी कि द्वापर और त्रेता के महाबली ने आज नवीन रूप में अवतार लिया है।
महान वीर- हमारे राष्ट्रनायक में वीरता का महान गुण है। उनमें अपार उत्साह है। बड़ी से बड़ी कठिनाई में भी वे घबराते नहीं, बाधाओं और आपत्तियों का साहस के साथ सामना करते हुए आगे बढ़ते जाना ही उनकी सफलता का रहस्य है। वे बैरी के समक्ष कभी भी झुक नहीं सकते हैं-
"मुझमें कोमलता है लेकिन कायरता मेरा धर्म नहीं ।
बैरी के सम्मुख झुक जाना, मेरे जीवन का धर्म नहीं ॥"
वे अत्याचारी के चरणों में झुकने को हिंसा नहीं भारी हिंसा मानते हैं-
“अत्याचारी के चरणों पर, झुक जाना भारी हिंसा है ।
पापी का शीश कुचल देना, जो हिंसा नहीं अहिंसा है ॥"
भावात्मक एकता - पं. जवाहरलाल नेहरू में राष्ट्रीय भावात्मक एकता सुदृढ़ रूप में मौजूद है। भारत की समस्त भाषाएँ, सारे धर्म, समस्त महापुरुष, सभी महत्त्वपूर्ण स्थान उन्हें प्रिय हैं। सब धर्म उनके लिए समान हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र को उन्होंने एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया है।
त्याग की भावना - नेहरू जी का जीवन त्याग और बलिदान से पूर्ण है। उन्होंने अपना तन-मन-धन सब कुछ देश के लिए अर्पित कर दिया। जो देश का हो गया अथवा जिसने सारे देश को ही अपना समझ लिया, उसके व्यक्तिगत वैभव अथवा ऐश्वर्य का प्रश्न ही नहीं उठता।
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