अग्रपूजा के नायक श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्री रामबहोरी शुक्ल कृत खण्डकाव्य 'अग्रपूजा' में श्रीकृष्ण का चरित्र ही सम्पूर्ण खण्डकाव्य पर आच्छा
अग्रपूजा के नायक श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।
श्री रामबहोरी शुक्ल कृत खण्डकाव्य 'अग्रपूजा' में श्रीकृष्ण का चरित्र ही सम्पूर्ण खण्डकाव्य पर आच्छादित है। श्रीकृष्ण पाण्डवों के शुभचिंतक होने के साथ राजसूय यज्ञ के मुख्य सूत्रधार भी हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
लीलाधर योगेश्वर- श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व की अभ्यर्थना करते हुए कवि ने मंगलाचरण में ही उनके विष्णु रूप की वन्दना की है। वस्तुतः श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में भोग तथा योग का सन्तुलन कल्याणकारी रूप में जगत् पर अभिव्यक्त होता है। संसार में रहकर भी संसार से अनासक्ति ही उन्हें योगेश्वर बनाती है और सर्वसम्मति से सर्व पूजनीय होने के कारण श्रीकृष्ण को राजसूय यज्ञ में 'अग्रपूजा' के लिए चुना जाता है।
विनम्र एवं शिष्टाचारी - श्रीकृष्ण स्वभाव से विनम्र व शिष्टाचारी हैं। बड़ों और छोटों को यथोचित सम्मान देने वाले श्रीकृष्ण राजसूय यज्ञ में स्वेच्छा से पत्तल उठाने तथा ब्राह्मणों के चरण धोने का काम अपने सिर लेते हैं।
आकर्षक सौन्दर्य के स्वामी- श्रीकृष्ण का सौन्दर्य अप्रतिम है। उनके आकर्षक व्यक्तित्व तथा सौन्दर्य की चुम्बकीय शक्ति जन- समुदाय को अपनी ओर खींचती है तथा उनके साँवले सलोने मुखचन्द्र पर तो कामदेव के अनेक रूप न्यौच्छावर करता जनमानस मंत्रमुग्ध हो उनके रूप का रसास्वादन करना चाहता है।
देखा सुना न पढ़ा कहीं भी, ऐसा अनुपम रूप अनिन्द।
ऐसी मृदु मुस्कान न देखी, सचमुच गोविन्द सम गोविन्द॥
पाण्डवों के परम हितैषी - श्रीकृष्ण पाण्डवों के सबसे बड़े शुभचिन्तक हैं। खाण्डव वन दाह हो, लाक्षागृह प्रकरण हों, द्रौपदी का स्वयंवर हो या राजसूय का आयोजन - प्रत्येक अवसर तथा परिस्थिति में पाण्डवों के साथ पूरी दृढ़ता से खड़े परिलक्षित होते हैं।
वीरता तथा संयम की प्रतिमूर्ति - श्रीकृष्ण वीरता तथा संयम के क्षेत्र में अनन्य हैं। बाल्यकाल में ही पूतना, बकासुर, वृषभासुर, व्योमासुर, मुष्टिक व चाणूर जैसे दुष्टों का वध करने वाले श्रीकृष्ण के न्याय से तो मामा कंस भी नहीं बच पाये। जरासन्ध के वध की योजना के सूत्रधार भी श्रीकृष्ण ही थे । राजसूय यज्ञ में भी शिशुपाल के सौ अपराधों को श्रीकृष्ण क्षमा करते हैं किन्तु उसके पश्चात् उसका वध कर उसे उसके अपराधों का दण्ड भी देते हैं।
निष्कर्षतः श्रीकृष्ण के चरित्र में वीरता, संयम, योग, भोग, आध्यात्मक, धर्मनिष्ठता, कर्तव्यपरायणता इत्यादि गुणों का अद्भुत समन्वय है। सम्भवतः इसी कारण संसार उन्हें योगेश्वर की उपाधि देता है।
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