100 दिवसीय सुधार: चीन में 100 दिवसीय सुधार 1898 में सम्राट कुआंग हसू द्वारा किए गए थे। इन सुधारों का उद्देश्य चीन को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने और पश्चिम
100 दिवसीय सुधार का वर्णन कीजिए (Sau Divasiya Sudhar ka Varnan Kijiye)
100 दिवसीय सुधार: चीन में 100 दिवसीय सुधार 1898 में सम्राट कुआंग हसू द्वारा किए गए थे। इन सुधारों का उद्देश्य चीन को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने और पश्चिमी देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाना था। चीन में 100 दिवसीय सुधार, 11 जून से 22 सितंबर, 1898 तक चला था। इसे वूक्सू सुधार भी कहा जाता है।
दो अफीम युद्धों ने चीन की स्वर्गिक साम्राज्य की प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया। विदेशियों की सफलता को देखते हुए चीन का एक वर्ग यह मानने लगा था कि चीन को सशक्त बनाने के लिए परम्परागत संस्थाओं में परिवर्तन किया जाना आवश्यक है।
चीन में 2 दल थे। एक सम्राट कुआंग हसू और उसके मुख्य शिक्षक वेंग-शुंग का था । इस दल में सन्यात सेन, कांग-यू-वेई जैसे लोग थे जो संवैधानिक राजतन्त्र की स्थापना करना चाहते थे। सम्राट कुआंग हसू 1887 में वयस्क हो गया था एवं वह सुधारकों के प्रभाव में चीन के उत्थान के लिये पाश्चात्य शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान को अतिआवश्यक मानता था।
दूसरा दल राजमाता त्सूहसी और उसके समर्थकों का था, जो रूढ़िवादी एवं सुधारों का विरोधी था। इन परिस्थितियों में सम्राट ने 11 जून, 1898 को सुधारों की आवश्यकता की घोषणा की। इन्हें 100 दिन के सुधार भी कहा जाता है जो इस प्रकार हैं-
- प्रशासन तन्त्र का यूरोपीय नमूने का पुनः संगठन किया जाये।
- प्रशासकीय अधिकारियों के चयन और नियुक्ति के लिये परीक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाया जाय।
- यूरोपीय विज्ञान तथा प्राचीन यूनानी साहित्य के अध्ययन के लिये एक शाही विद्यालय स्थापित किया जाये।
- आधुनिक स्कूल और कॉलेज के खोले जाने का आदेश जारी किया जाये।
- उपयोगी पाश्चात्य ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किये जाने के आदेश दिये।
- आवागमन के आधुनिक साधनों की वृद्धि के लिये पीकिंग में एक परिवहन एवं खान मण्डल स्थापित करने के आदेश दिये।
- यूरोपीय ढंगों से केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल स्थापित किये जाने को कहा गया है।
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