जी. वी. के. राव समिति (1985) और उसकी सिफारिशें बताइए: जी. वी. के. राव समिती की नियुक्ति योजना आयोग द्वारा 1985 में की गई थीं। इसका प्रमुख कार्य पंचायत
जी. वी. के. राव समिति (1985) और उसकी सिफारिशें बताइए
जी. वी. के. राव समिती की नियुक्ति योजना आयोग द्वारा 1985 में की गई थीं। इसका प्रमुख कार्य पंचायती राज संस्थाओं के विभिन्न पहलुओं को देखना तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रशासनिक प्रबंधों को देखना था। राव समिति ने अपने प्रतिवेदन में पंचायतों की आर्थिक, उनके निर्वाचन तथा कार्यकलापों पर प्रकाश डाला था। समिति का यह भी कहना था कि राज्य सरकारें लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के प्रति उदासीन रही हैं। वी. के. राव समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत एवं सुदृढ़ बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिया। इस समिती की प्रमुख सिफारिशों में शामिल थींः पंचायती राज संस्थाओं को सभी स्तरों पर जिला, तालुक एवं ग्राम स्तर पर आवश्यक समर्थन प्रदान करना, स्थानीय योजना-कार्य की जिम्मेदारी देना, तथा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की निगरानी एवं कार्यान्वयन करना।
जी. वी. के. राव समिति (1985) की सिफारिशें
• विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं का सृजन करने, निर्णय लेने तथा उसको मूर्त रूप देने का दायित्व पंचायतों को सौंपा जाना चाहिए क्योंकि पंचायती संस्थाएं जनता के अधिक सन्निकट हैं।
• राव समिति ने जिला स्तर पर विशेष रूप से विकेंद्रीकरण करने की अनुशंसा की थी। जिला परिषद् के एक सदस्य को 30,000 से 40,000 की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। इनका कार्यकाल 8 वर्ष का होना चाहिए। बैंकों, शहरी - स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के प्रतिनिधि, विधायकों एवं संसद सदस्यों को भी जिला परिषद् से संबंधित करने की अनुशंसा समिति ने की थी।
• राव समिति ने कृषि पशुपालन, सहकारिता, लघु सिंचाई, प्राथमिक एवं प्रौढ़ शिक्षा, लोक स्वास्थ्य, ग्रामीण जलापूर्ति, जिले की सड़कें, लघु एवं ग्रामोद्योग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का कल्याण, समाज एवं महिला कल्याण और सामाजिक वानिकी जैसे कार्यों को जिला परिषदों को हस्तांतरित करने की अनुशंसा की थी।
• जिला स्तर पर सभी कार्यालय जिला परिषद् के अधीन होने चाहिए। कार्यों के संपादन के लिए जिला परिषदों की विभिन्न समितियों का गठन किया जाना चाहिए।
• पंचायती संस्थाओं को पर्याप्त मात्रा में आवश्यक वित्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य विकास परिषद् का गठन किया जाना चाहिए।
• जिला स्तर के नीचे जिला परिषद् सदृश्य संरचना वाली पंचायत समिति या मंडल पंचायतों का गठन होना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रत्येक गांव में ग्राम सभा का गठन होना चाहिए।
• राव समिति ने पंचायत या ग्राम एवं मंडल पंचायत स्तर पर बच्चे / महिलाओं एवं प्रौढ़ों के कल्याणार्थ, एक उप-समिति के गठन की अनुशंसा की थी। इस उप-समिति में महिला सदस्यों का बहुमत होना चाहिए।
समिति की सिफारिशों को काफी हद तक स्वीकार किया गया है। 1992 में, संविधान में 73वां और 74वां संशोधन किया गया, जिससे पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता मिली। जी. के. वी. राव समिति की रिपोर्ट पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस रिपोर्ट ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता देने और उन्हें पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया।
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