प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध: पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं। बाढ़, सूखा,
प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध - Essay on Natural Disaster in Hindi
प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध: पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप, ज्वालामुखी तथा तूफान आदि प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। जब प्राकृतिक आपदा आती है तब जान-माल की बहुत हानि होती है। यातायात, संचार सेवाएँ ठप्प हो जाती हैं, मकान गिर जाते हैं, मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षी एवं अन्य जीव-जंतु भी मारे जाते हैं।
जब अधिक वर्षा होती है तब बाढ़ आती है। जहाँ-जहाँ नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर बहने लगता है वहाँ-वहाँ फसलें नष्ट हो जाती हैं। अनेक गाँव, नगर और बस्तियाँ डूब जाती हैं। बिजली, पानी और संचार की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। रेल की पटरियाँ उखड़ जाती हैं, रेलगाड़ियाँ रद्द हो जाती हैं। जहाँ-जहाँ बाढ़ का प्रकोप होता है वहाँ-वहाँ जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
समुद्री तूफान भी एक बड़ा प्राकृतिक संकट है। इससे तटीय क्षेत्र अधिक प्रभावित होते हैं। जब ऊँची-ऊँची समुद्री लहरें आती हैं तब तट के इलाके जलमग्न हो जाते हैं। संचार और परिवहन व्यवस्था चौपट हो जाती है। समुद्री तूफान के पूर्व नाविकों और मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी रेडियो, दूरदर्शन, सार्वजनिक घोणा अथवा अन्य जन संचार माध्यमों द्वारा दी जाती है।
धरती की आंतरिक हलचल के कारण भूकंप आता है। जिस जगह भूकंप का केंद्र होता है उस जगह भूकंप का दुष्ट प्रभाव अधिक दिखाई देता है। जब भूकंप आता है तब मकान या घरों से निकलकर खुली जगह में जाना चाहिए क्योंकि इमारतें, कच्चे घर, मकान आदि गिर जाते हैं और बड़ी संख्या में लोग हताहत होते हैं। जहाँ-जहाँ भूकंप अधिक आते हैं। वहाँ-वहाँ लकड़ी के या भूकंपरोधी मकान बनाए जाने चाहिए ताकि जान-माल की अधिक हानि न हो।
ज्वालामुखी में जिस समय धरती के भीतर का गरम लावा फूटकर बाहर आ जाता है उस समय गाँव के गाँव गर्म लावे में दब जाते हैं। ज्वालामुखी प्रभावित इलाके में लोग हर समय भय और आतंक में अपना जीवन बिताते हैं। यह संतो- की बात है कि ज्वालामुखी की दृष्टि से हमारा देश काफ़ी सुरक्षित है।
इन प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य अपनी सावधानी से काफ़ी हद तक बच सकता है। जंगलों की कटाई रोकने से बाढ़ के संकट को कम किया जा सकता है । भूकंप से बचाव के लिए भूकंपरोधी या लकड़ी के मकान बनाए जाने चाहिए। सुनामी आदि से बचाव के लिए तटों पर सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। जहाँ-जहाँ प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं वहाँ-वहाँ सरकार, विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं एवं संगठनों को भी आपदा प्रबंधन के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए।
जहाँ एक ओर प्रकृति मनुष्य की मित्र है वहीं दूसरी ओर अपने रौद्र रूप में शत्रु भी है । हमें चाहिए कि हम ऐसी आपदाओं के लिए सावधान रहें। जहाँ तक संभव हो हम हमेशा तत्पर एवं जागरूक रहें क्योंकि ये आपदाएँ अपने पीछे अनेक महामारियाँ छोड़े बिना नहीं जाती हैं । मनुष्य के विजेता होने के बावजूद प्रकृति हर बार उसे एक नई चुनौती देती है। प्रत्येक चुनौती का सामना करने में ही मनुष्य की पहचान छुपी है और सामना किए बिना आपदाओं से बचना संभव नहीं।
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