पुस्तकालय पर निबंध: 'पुस्तकालय' का अर्थ होता है 'किताबों का घर' यानी वह स्थल जहाँ सारी पुस्तकें हों और जिन्हें कुछ नियमित पढ़ने वाले हों। आजकल ऐसे पुस
पुस्तकालय पर निबंध - Essay on Library in Hindi
'पुस्तकालय' का अर्थ होता है 'किताबों का घर' यानी वह स्थल जहाँ सारी पुस्तकें हों और जिन्हें कुछ नियमित पढ़ने वाले हों। आजकल ऐसे पुस्तकालय अच्छे शहरों के अलावा कस्बों, एवं गाँवों में भी होते हैं। अब तो इसका विस्तार गाँव-गाँव में किया जा रहा है। पुस्तकालय प्रायः सार्वजनिक ही होते हैं। इधर सरकार द्वारा चल - पुस्तकालयों की भी व्यवस्था की गई है।
पुस्तकालय का निर्माण किसी केन्द्रीय स्थान पर किया जाता है। ऐसे भवन का चुनाव किया जाता है, जिसमें कम-से-कम दो तीन या अधिक कमरे हों। उनमें एक कमरा जो प्रायः और कमरों से छोटा और किनारे पर आगे की ओर होता है, पुस्तकालय के कार्यालय का काम करता है। शेष कमरों में लोहे की या लकड़ी की उनकी क्षमता के मुताबिक अलमारियाँ सजी होती हैं। इनमें पुस्तकें अक्षरानुक्रम से सजाई जाती हैं। कई बार इनका विषयवार वर्गीकरण भी कर दिया जाता है। अच्छे पुस्तकालयों में एक सार्वजनिक अध्ययन कक्ष होता है, जहाँ बीच में ऊँचे चौड़े टेबुल सजे होते हैं और उनके दोनों ओर बैठकर पढ़ने के लिए कुर्सियाँ या बेंच। बीच के टेबुलों पर प्रायः पत्र-पत्रिकाएँ रखी होती हैं। ये पत्र- पत्रिकाएँ विभिन्न प्रकार की दैनिक साप्ताहिक, पाक्षिक मासिक, त्रैमासिक बगैरह होती हैं। ये विभिन्न स्थानों से प्रकाशित होती हैं। अच्छे पुस्तकालयों में मनोरंजन के कुछ साधन जुटाए जाते हैं।
प्रत्येक विद्यालय, चाहे प्राथमिक हो या महाविद्यालय, में एक पुस्तकालय होता ही है। इस पुस्तकालय में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त और बहुत-सी पुस्तकें होती हैं। यहाँ आकर छात्र कहानी, कविता, उपन्यास, चुटकुले, विज्ञान, सामान्य ज्ञान आदि की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। स्कूल के पुस्तकालयों में पुस्तकों के अतिरिक्त समाचार-पत्र और साप्ताहिक या मासिक पत्रिकाएँ भी आती हैं। हम ऐसी पत्रिकाओं को वहाँ जाकर पढ़ते हैं।
शहरों में आज बड़े-बड़े और अनेक अच्छे-अच्छे पुस्तकालय हैं, पर गाँव में अच्छे पुस्तकालयों का सर्वथा अभाव है। गाँव में भी अच्छे पुस्तकालयों की व्यवस्था होनी चाहिए। ग्रामीणों में शिक्षा के प्रसार के लिए पुस्तकालय का होना आवश्यक है।
पुस्तकालय वस्तुतुः ज्ञान के घर हैं। वहाँ सदस्य ज्ञानार्जन के लिए आते हैं। इसी उद्देश्य से वहाँ पुस्तकें निर्गत कराते और घर ले जाकर पढ़ा करते हैं। पर, यह उद्देश्य भली-भाँति तभी पूरा हो सकता है जब पुस्तकालय के पदाधिकारी शालीन तथा पढ़ा लिखा हो। पुस्तकालय के लिए हमेशा अच्छी पुस्तकों का चुनाव किया जाना चाहिए।
पुस्तकालयों को जहाँ राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव से परिचय प्राप्त करने का केन्द्र बनाया जाना चाहिए वहाँ उनके माध्यम से राष्ट्रीय भावना का प्रचार-प्रसार भी होते रहना चाहिए। ऐसा होने में पुस्तकालयों की महती सार्थकता है।
COMMENTS