बलवंत राय मेहता समिति (1957) और उसकी सिफारिशें:
बलवंत राय मेहता समिति (1957) और उसकी सिफारिशें
बलवंत राय मेहता समिति: भारत सरकार द्वारा 16 जनवरी 1957 को बलवंत राय जी. मेहता की अध्यक्षता में सामुदायिक विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय विस्तार सेवा का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया।बलवंत राय मेहता समिति ने 24 नवम्बर 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और भारत में पंचायती राज के नाम से ग्रामीण स्थानीय शासन की त्रिस्तरीय व्यवस्था पद्धिति की सिफारिश की। इस रिपोर्ट का सारांश यह था कि स्थानीय शासन की इस त्रिस्तरीय व्यवस्था में पंचायत समीति सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था है। मुख्य कार्य पंचायत समीति को ही सोंपे गये हैं और जिला परिषद का कार्य ही पंचायत सदस्यों के कार्य संचालन की देखभाल एवं उनमें साम्यजस रखना है। इसी रिपोर्ट को 1958 में सिफारिशें स्वीकार करके राजस्थान राज्य से 2 अक्टूबर 1959 को नागौर जिले से शुभारम्भ किया गया तथा 11 अक्टूबर 1959 को आन्ध्राप्रदेश मे शुरू की व 1960 के दशक के मध्य में पूरे देश में इसको संचालित किया गया।
बलवंत राय मेहता समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नवत् हैं-
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लिए ग्राम, खंड तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय ढांचा स्थापित करने की अनुशंसा की।
- पंचायतों के कार्यों के संबंध में समिति ने सिफारिश की कि पंचायत समिति के कार्यों में सभी रूपों में कृषि विकास, पशुओं का सुधार, स्थानीय उद्योग, जन स्वास्थ्य एवं कल्याणकारी कार्यों का उत्थान, प्राथमिक पाठशालाओं की व्यवस्था तथा आंकड़ों का संग्रह समाविष्ट होना चाहिए।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण तथा सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं का गठन किया जाए।
बलवंत राय मेहता समिति की अनुशंसा के बाद विधानमंडलों द्वारा पारित पंचायती राज अधिनियमों के अंतर्गत राज्य सरकारों ने आवश्यक समितियों का गठन किया। इस प्रकार लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और विकास कार्यक्रमों में जनता का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से पंचायती राज की शुरुआत की गई। पंचायती राज में जो भावना या उद्देश्य निहित है, वह यह है कि गांव के लोग अपने शासन का उत्तरदायित्व स्वयं संभाले। वे अपनी आवश्यकताओं के विषय में स्वयं निर्णय लें और उनको क्रियान्वित करें। ध्यातव्य है कि इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बलवंत राय समिति ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की अनुशंसा की थी। इसके क्रियान्वयन के लिए पंचायती राज अधिनियमों का गठन किया गया। राजस्थान और आंध्र प्रदेश ने सर्वप्रथम 2 अक्टूबर, 1959 को ग्रामीण स्थानीय शासन की पंचायती राजपद्धति को अपनाया। परंतु इसके बावजूद पंचायती संस्थाओं के पतन का दौर शुरू हो गया तथा सरकारें भी इसके प्रति उदासीन हो गईं। जिला स्तरीय पंचायती संस्थाओं पर राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों का दबदबा कायम हो गया और इस कारण खंड तथा ग्राम समितियां भी युक्तिसंगत नहीं बन पाईं। यहां तक कि पंचायती राज निकायों के चुनाव स्थगित कर दिए गए।
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