समन्वय का अर्थ और महत्व पर संक्षिप्त टिपण्णी कीजिये: प्रत्येक संगठन में विभिन्न प्रकार के कार्यों का निष्पादन विभिन्न समूह करते हैं तथा किसी एक समूह क
समन्वय का अर्थ और महत्व पर संक्षिप्त टिपण्णी कीजिये।
समन्वय का अर्थ - प्रत्येक संगठन में विभिन्न प्रकार के कार्यों का निष्पादन विभिन्न समूह करते हैं तथा किसी एक समूह के लिए संभव नहीं है कि वह पूरे संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विभिन्न समूहों एवं विभागों के कार्यों में समरूपता हो। प्रबंध के इस कार्य को समन्वय कहते हैं ।
समन्वय का महत्व
एक कार्य के रूप में समन्वय का महत्व इस तथ्य से उजागर होता है कि जिस कार्य के लिए संगठन की स्थापना की गई है, विभिन्न समूह, इकाई अथवा विभागों द्वारा किये कार्य उसका एक अभिन्न अंग हैं। बिना समरूप प्रयत्न अथवा कार्यों की एकता के कुछ विभागों के लक्ष्यों की प्राप्ति दूसरे विभागों के प्रतिकूल जा सकती है। कभी-कभी यह उपलब्धि समय बीत जाने पर महत्त्वहीन हो जाती है। कार्यों में एकता लाने के लिए अन्तः विरोधी क्रियाओं के विरोधाभास को रोकना होगा। कार्यों के आकार एवं पैमाने की वृद्धि के साथ समन्वय का महत्व अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके कारण निम्नलिखित हैं:
(1) जब कार्य का आकार तथा मात्रा बढ़ती है तो अधिक कर्मचारी तथा कार्य-समूहों की आवश्यकता होती है। इसलिए लोगों के एक दूसरे के उलट कार्य करने की अधिक सम्भावनाएं होती हैं। क्योंकि इकाई अथवा उप इकाई के उद्देश्यों को संगठन के उद्देश्यों से अधिक महत्वपूर्ण समझा जाने लगता है। यही नहीं, बड़े आकार में पर्यवेक्षण एवं सम्प्रेषण की समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार एक बड़े संगठन के कार्यों का समन्वय प्रबन्धकों का बड़ा दायित्व बन जाता है।
(2) साधारणतया बड़े संगठनों की गतिविधियां अलग-अलग स्थानों पर होती हैं जिसके कारण व्यक्तियों का आपसी सम्पर्क नहीं हो पाता। इसीलिये समन्वय की अधिक आवश्यकता होती है और वह प्रबन्धकों का बड़ा उत्तरदायित्व बन जाता है।
(3) व्यवसाय के आकार में वृद्धि साधारणतया उसकी क्रियाओं में विविधता से जुड़ी होती है । कभी-कभी वर्तमान उत्पादों के साथ उनसे संबंधित न होने वाले उत्पाद भी मिला दिए जाते हैं। परिणामस्वरूप क्रियाओं का विभाजन व उप-विभाजन हो जाता है। जिससे प्रबंधकीय स्तरों में वृद्धि होती है तथा दायित्वों का लम्बवत् विभाजन हो जाता है। यह समन्वय को न केवल जटिल बनाता है बल्कि उसको और अधिक महत्त्वपूर्ण बना देता है।
संगठन में समन्वय के महत्व के कारण कभी-कभी इसे 'प्रबन्ध का सार' के नाम से भी पुकारते हैं। यह सभी विभागों, संगठन की शाखाओं एवं प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर प्रबन्धकों का कार्य है। अंततोगत्वा यह लक्ष्यों में तालमेल, व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ण रूपेण उपलब्धि, विभिन्न समूहों में पारम्परिक समरसतापूर्ण सम्बन्ध तथा संगठन में लागत में कमी एवं कार्य क्षमता में वृद्धि को सुनिश्चित करता है।
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