साझेदारी फर्म तथा सीमित देयता साझेदारी में अंतर: साझेदारी फर्म पर भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 लागू होता है। जबकि सीमित देयता साझेदारी पर सीमित देयता
साझेदारी फर्म तथा सीमित देयता साझेदारी में अंतर
आधार | साझेदारी फर्म | सीमित देयता साझेदारी |
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अधिनियम | साझेदारी फर्म पर भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 लागू होता है। | सीमित देयता साझेदारी पर सीमित देयता साझेदारी अधिनियम 2008 लागू होता है। |
परिभाषा | साझेदारी को व्यवसाय से लाभ कमाने के लिए शामिल हुए व्यक्तियों के एक संघ के रूप में परिभाषित किया गया है, जो सभी भागीदारों या सभी भागीदारों की ओर से किसी एक भागीदार द्वारा किया जाता है। सीमित देयता भागीदारी व्यवसाय संचालन का एक रूप है जो एक साझेदारी और एक निकाय कॉर्पोरेट की विशेषताओं को जोड़ती है। | एलएलपी एक व्यावसायिक रूप है जो एक साझेदारी और एक कंपनी के संयुक्त लाभ प्रदान करता है। साझेदारी व्यवसाय, व्यवसाय का प्रचलित प्रारूप है जिसमें काफी लचीलापन होता है और संचालन की दृष्टि से आसान भी। |
स्थायी उत्तराधिकार | साझेदारी में स्थायी उत्तराधिकार संभव नहीं है। एक सीमित देयता भागीदारी का क्रमिक उत्तराधिकार होता है जबकि एक साझेदारी किसी भी समय भंग हो सकती है। | एलएलपी में स्थायी उत्तराधिकार संभव है क्योंकि भागीदार एलएलपी में आ सकते हैं और जा सकते हैं। |
संपत्ति | साझेदारी फर्म अपने नाम पर संपत्ति नहीं रख सकती है। | एलएलपी को अपने नाम पर संपत्ति रखने की अनुमति है। |
अनुबंध दस्तावेज़ | साझेदारी व्यवसाय का अनुबंध दस्तावेज़ पार्टनरशिप डीड होता है। | एलएलपी का अनुबंध दस्तावेज़ एलएलपी समझौता होता है। |
पंजीयन | साझेदारी फर्म का पंजीयन कराना अनिवार्य नहीं है। | सीमित देयता साझेदारी का पंजीयन / समामेलन कराना अनिवार्य है। |
निर्माण | इसका जन्म साझेदारों के बीच आपसी ठहराव से होता है। | इसका जन्म अधिनियम में दी गयी प्रक्रिया का पालन करने से होता है। |
पृथक अस्तित्व | साझेदारी फर्म एवं साझेदारों का अस्तित्व पृथक-पृथक नहीं होता है चाहे फर्म पंजीयन ही क्यो नकरा लिया जाय। | सीमित देयता साझेदारी तथा इसके साझेदारों पृथक-पृथक अस्तित्व होता है। |
दायित्व | साझेदारी फर्म के सभी साझेदार फर्म के दायित्वों के लिए बाट्टा पक्षकारों के प्रति पृथक पृथक एवं संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते है। | सीमित देयता फर्म के साझेदारी फर्म के दायित्वों के लिए बाह्य पक्षकारों के प्रति उत्तरदायी नही होते है। केवल फर्म की सम्पत्तियां ही उत्तरादायी होती है। |
साझेदारी फर्म और सीमित देयता साझेदारी के बीच के कुछ अतिरिक्त अंतर निम्नलिखित हैं:
- साझेदारी फर्म में, भागीदारों को व्यवसाय के संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेने की आवश्यकता होती है। एलएलपी में, भागीदारों को व्यवसाय के संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
- साझेदारी फर्म में, सभी भागीदारों को व्यवसाय के प्रबंधन में समान अधिकार होते हैं। एलएलपी में, भागीदारों को व्यवसाय के प्रबंधन में समान अधिकार नहीं होते हैं।
- साझेदारी फर्म में, सभी भागीदारों को व्यवसाय से लाभ प्राप्त करने का समान अधिकार होता है। एलएलपी में, सभी भागीदारों को व्यवसाय से लाभ प्राप्त करने का समान अधिकार नहीं होता है।
साझेदारी फर्म और सीमित देयता साझेदारी दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। साझेदारी फर्म एक अधिक लचीला संगठनात्मक रूप है, लेकिन इसमें सीमित देयता साझेदारी की तुलना में अधिक जोखिम शामिल होता है। सीमित देयता साझेदारी एक अधिक सुरक्षित संगठनात्मक रूप है, लेकिन इसमें साझेदारी फर्म की तुलना में अधिक विनियमन शामिल होता है।
साझेदारी फर्म के फायदे:
- लचीला संगठनात्मक रूप
- सरल स्थापना प्रक्रिया
- कम विनियमन
- कर लाभ
साझेदारी फर्म के नुकसान:
- भागीदारों की सामान्य देयता
- भागीदारों के बीच विवादों की संभावना
- सीमित पूंजी जुटाने की क्षमता
सीमित देयता साझेदारी के फायदे:
- भागीदारों की सीमित देयता
- विवादों की संभावना कम
- अधिक पूंजी जुटाने की क्षमता
सीमित देयता साझेदारी के नुकसान:
- कम लचीला संगठनात्मक रूप
- अधिक जटिल स्थापना प्रक्रिया
- अधिक विनियमन
- कर लाभ कम
साझेदारी फर्म बनाम सीमित देयता साझेदारी का चुनाव
साझेदारी फर्म बनाम सीमित देयता साझेदारी का चयन व्यवसाय की विशिष्ट आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। यदि व्यवसाय को अधिक लचीलेपन और कम विनियमन की आवश्यकता है, तो साझेदारी फर्म एक अच्छा विकल्प हो सकती है। यदि व्यवसाय को अधिक सुरक्षा और अधिक पूंजी जुटाने की क्षमता की आवश्यकता है, तो सीमित देयता साझेदारी एक अच्छा विकल्प हो सकती है।
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