प्रदत्त प्रस्थिति और अर्जित प्रस्थिति में अंतर तथा संबंध बताइए: प्रदत्त प्रस्थिति समाज स्वयं व्यक्ति को प्रदान करता है। जबकि अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति
प्रदत्त प्रस्थिति और अर्जित प्रस्थिति में अंतर तथा संबंध बताइए
प्रस्थिति मानव जीवन से जुड़ा एक सम्मानित पद है। आज के समय में प्रदत्त एवं अर्जित दोनों प्रकार की प्रस्थितियाँ समाज में अपना-अपना महत्व रखती हैं। वैसे दोनों एक-दूसरे की विरोधी प्रतीत होती हैं, परन्तु दोनों अंतर होने के साथ-साथ संबंध भी हैं जो इस प्रकार हैं :-
प्रदत्त प्रस्थिति और अर्जित प्रस्थिति में अंतर
अंतर का आधार | प्रदत्त प्रस्थितियाँ | अर्जित प्रस्थितियाँ |
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प्राप्ति | प्रदत्त प्रस्थिति समाज स्वयं व्यक्ति को प्रदान करता है। | अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति अपनी योग्यता, कुशलता प्रयत्न एवं प्रतिस्पर्द्धा के आधार पर प्राप्त करता है। |
स्रोत | प्रदत्त प्रस्थिति का स्रोत समाज की प्रथाएँ, परंपराएँ एवं संस्कृति आदि हैं। | अर्जित प्रस्थिति का स्रोत स्वयं व्यक्ति और उसके गुण हैं। |
निर्धारण | प्रदत्त प्रस्थिति का निर्धारण जन्म, लिंग, आयु, जाति, प्रजाति, नातेदारी, परिवार आदि के आधार पर होता है। | अर्जित प्रस्थिति का निर्धारण शिक्षा, आय, संपत्ति, व्यवसाय, व्यक्तिगत योग्यता, कुशलता, राजनीतिक अधिकार, कलात्मक गुण, आविष्कार की क्षमता आदि के आधार पर होता है। |
स्थायित्व | प्रदत्त प्रस्थिति के आधार अपेक्षाकृत स्थायी हैं, उनमें परिवर्तन न के बराबर या बहुत कम होते हैं। इसलिए उनके द्वारा प्राप्त रहती हैं। प्रस्थितियाँ भी अपेक्षतया स्थायी होती हैं। | अर्जित प्रस्थितियों के आधारों के परिवर्तनशील होने से अर्जित प्रस्थितियाँ भी बदलती रहती हैं। |
स्पष्टता | प्रदत्त प्रस्थितियाँ अनिश्चित होती हैं तथा उनका अधिकार क्षेत्र अधिक स्पष्ट नहीं होता। उदाहरणार्थ, पिता के अधिकारों की सीमा निर्धारित नहीं है, त्वचा की सुंदरता को अंशों में मापा नहीं जा सकता, नातेदारों से प्राप्त अधिकार एकदम स्पष्ट नहीं हैं। | अर्जित प्रस्थितियाँ अधिक निश्चित एवं स्पष्ट होती हैं। एक जज, प्राचार्य और राष्ट्रपति के क्या अधिकार हैं, यह कानून और संविधान द्वारा स्पष्ट हैं। |
महत्व | प्रदत्त प्रस्थितियों का आदिम परंपरागत समाजों में अधिक महत्त्व पाया जाता है क्योंकि यहाँ प्रथाओं एवं परंपराओं का अधिक प्रभाव होता है। | अर्जित प्रस्थितियों का आधुनिक समाजों में अधिक महत्व है क्योंकि वहाँ व्यक्ति का मूल्यांकन उसके गुणों द्वारा होता है। |
सामंजस्यता | प्रदत्त प्रस्थिति और उससे संबंधित भूमिका में सामंजस्य होना आवश्यक नहीं है। | अर्जित प्रस्थितियों में अधिकांशत: दोनों में सामंजस्य पाया जाता है। |
प्रदत्त प्रस्थिति और अर्जित प्रस्थिति में संबंध (Relation between Ascribed and Achieved)
प्रदत्त और अर्जित प्रस्थितियों में अंतर होने के बाद भी इनमें संबंध है। दोनों ही समाज के लिए उपयोगी हैं। अर्जित स्थिति को प्राप्त करने के लिए प्रदत्त गुणों की आवश्यकता है। जैसे शिक्षक का पुत्र अपने पिता या बड़ों से प्रदत्त गुणों को प्राप्त कर समाज में उच्च प्रस्थिति को प्राप्त कर सकता है।
1) प्रदत्त प्रस्थिति अर्जित प्रस्थिति के लिए साधन और सीमाओं को निर्धारित करती है। जैसे–पाकिस्तान में कोई हिन्दू व्यक्ति प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का पद प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि वहां हिन्दुओं को दूसरे दर्जे की नागरिकता प्राप्त है । अतः इस प्रकार व्यक्ति की अर्जित प्रस्थिति के लिए साधन और सीमाओं को प्रदत्त प्रस्थिति द्वारा निर्धारित किया जाता है ।
2) अर्जित प्रस्थिति कभी-कभी प्रदत्त प्रस्थिति की संरचना में उतार-चढ़ाव लाती है। अर्जित प्रस्थिति में व्यक्ति चाहे उसकी प्रदत्त प्रस्थिति कोई भी हो में गुणों, क्षमताओं में मेहनत से विकास कर अपनी प्रस्थिति को उच्चता के मुकाम पर ले जाता है। जैसे- निम्न जातियों के लोगों में शिक्षा, व्यवसाय और राजनीति के क्षेत्र में उन्नति कर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और कई ऊंचे प्रतिष्ठित पदों पर पहुंच गये हैं। इसलिए अपनी ही जातीय संरचना में इनकी स्थिति काफी ऊंची हो गयी है। इस प्रकार हर जातियों की जातीय संरचना में काफी उतार-चढ़ाव दिखाई देता है
3) प्रदत्त प्रस्थितियों के लिए अर्जित प्रस्थिति की भांति कुछ न कुछ प्रशिक्षण आवश्यक होता है, जैसे- जाति से ब्राह्मण व्यक्ति को कर्मकाण्ड करने और कराने के लिए अपने पिता या बड़ों से सीखना होता है तभी वह पुरोहित की तरह कर्मकाण्ड कर सकता है।
4) नातेदारी जैसी सहज प्रस्थितियों के दायित्व निभाने के लिए भी व्यावहारिक कुशलता, योग्यता प्रयास आदि की आवश्यकता होती है वास्तव में कुशल व योग्य माता-पिता ही अपने बच्चों को अच्छा संस्कार दे सकते हैं। जो आगे चलकर बच्चों की अर्जित प्रस्थिति का आधार बनते हैं और व्यक्तित्व का विकास करने में सहायक होते हैं।
5) व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति की रूपरेखा प्रदत्त स्थिति द्वारा निर्मित होती है और अर्जित प्रस्थिति उसके व्यक्तित्व के वास्तविक रूप का निर्माण करती है।
इस तरह अर्जित प्रस्थिति एवं प्रदत्त प्रस्थिति के बीच संबंध होता है दोनों एक-दूसरे से पृथक नहीं, बल्कि दोनों ही प्रस्थितियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं। इन्हें एक-दूसरे के संदर्भ में ही समझा जा सकता है।
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